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समाज और परम सुख

समाज

जीवन में सक्रियता अच्छी बात है, लेकिन व्यक्ति अगर स्वयं को समझ नहीं रहा है या अपने बारे में नहीं सोच रहा है अथवा वह अपनी क्षमताओं एवं सीमाओं से अवगत नहीं है।

हम सभी समाज के’ अभिन्न अंग हैं। हमारी हर अच्छी और हर बुरी बात का समाज पर अच्छा और बुरा असर होता है। इसलिए संत व्यक्तिगत स्तर की शुचिता और सर्व-कल्याण की भावना पर जोर देते हैं।

संसार-सागर में प्रलोभनों से ऊपर उठना

संसार-सागर में रहते हुए व्यक्तिगत प्रलोभनों से ऊपर उठना मुश्किल है। यह मुश्किल आसान करता है ध्यान। ध्यानस्थ के लिए शेष संसार के संपर्क कुछ मायने नहीं रखते। ध्यान मनुष्य को किसी और ही लोक में ले जाता है।

ध्यान और आत्मसाक्षात्कार

वह ध्यान द्वारा परम सुख को प्राप्त करता है। जिसके आगे संसार के सारे सुख गौण हैं। ध्यान वह अवस्था है जिसमें सही अथों में व्यक्ति का स्वयं से साक्षात्कार होता है। व्यक्ति का स्वय से साक्षात्कार नहीं हो पाना ही हमारी एक प्रमुख समस्या है। ऐसा मनुष्य बेवजह भाग-दौड़ में लगा रहना है। अपने हितों के लिए एक घेरे में लगातार चक्कर लगाता रहता है।

जीवन की विडंबना

जीवन में सक्रियता अच्छी बात है, लेकिन व्यक्ति अगर स्वयं को समझ नहीं रहा है या अपने बारे में नहीं सोच रहा है अथवा वह अपनी क्षमताओं एवं सीमाओं से अवगत नहीं है। वैसे कार्य कर रहा है जिससे बेहतर करने की क्षमता उसके अंदर है तो यह जीवन की एक बड़ी विडंबनापूर्ण स्थिति है। आज हर व्यक्ति इसका शिकार है। केवल सांसारिक चीजों की ओर आकृष्ट है। वह निजी हितों और स्वार्थों में दौड़ रहा है।

सांसारिक चीजों की ओर आकर्षण

अपने लाभ के लिए जायज-नाजायज कार्य कर रहा है। इस तरीके से जीवन जीने वाले भ्रमित हैं।

भ्रम का प्रभाव

ऐसे भ्रम जीवन में एक बार प्रविष्ट होने के बाद पीछा नहीं छोड़ते।

अंतिम सांस तक वे मनुष्य को घेरे रहते हैं। एक तरह से वे जीवन की तमाम सरसता को ही लील लेते हैं। इन स्थितियों से मुक्ति पाने के लिए जरूरी है ध्यान की अवस्था में उतरना ।

मुक्ति और ध्यान

स्वर्य को जानने एवं स्वयं से साक्षात्कार करने के लिए हमें नए सिरे से विचार करना होगा। इस प्रचलित धेरे से बाहर आना होगा तभी हम अपने जीवन को सफल एवं सार्थक कर पाएंगे।

निष्कर्ष

ध्यान और आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से हम अपने जीवन की विडंबनाओं से मुक्ति पा सकते हैं। समाज के अभिन्न अंग के रूप में, हमारी हर क्रिया का समाज पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए संत व्यक्तिगत शुचिता और सर्व-कल्याण पर जोर देते हैं। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति परम सुख की प्राप्ति कर सकता है और संसार के प्रलोभनों से ऊपर उठ सकता है। अपने जीवन को सफल और सार्थक बनाने के लिए हमें स्वयं को जानने और आत्मसाक्षात्कार करने की आवश्यकता है।

FAQs

संसार-सागर में प्रलोभनों से ऊपर उठने का क्या महत्व है?

संसार-सागर में प्रलोभनों से ऊपर उठना मनुष्य को आध्यात्मिक शांति और आंतरिक स्थिरता प्राप्त करने में मदद करता है। ध्यान के माध्यम से, व्यक्ति सांसारिक लालचों और मोह से मुक्त हो सकता है।

ध्यान से आत्मसाक्षात्कार कैसे संभव है?

ध्यान मन को शांत करता है और व्यक्ति को आंतरिक यात्रा पर ले जाता है। ध्यान में व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानता है, जिससे आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति होती है।

जीवन की विडंबना क्या है और इसे कैसे दूर किया जा सकता है?

जीवन की विडंबना तब होती है जब व्यक्ति अपने वास्तविक उद्देश्य से भटक जाता है। इसे ध्यान और आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से दूर किया जा सकता है, जिससे जीवन अधिक सार्थक हो जाता है।

सांसारिक चीजों की ओर आकर्षण से कैसे बचा जा सकता है?

सांसारिक चीजों की ओर आकर्षण से बचने का सबसे प्रभावी तरीका ध्यान और आत्मनिरीक्षण है। यह व्यक्ति को आंतरिक संतोष और मानसिक शांति प्राप्त करने में मदद करता है।

भ्रम का प्रभाव जीवन पर कैसे पड़ता है?

भ्रम व्यक्ति को वास्तविकता से दूर कर देता है और उसे मोह-माया में फंसा देता है। ध्यान के माध्यम से, व्यक्ति भ्रम से मुक्त हो सकता है और जीवन के अंतिम सत्य को समझ सकता है।

मोक्ष और ध्यान का क्या संबंध है?

मोक्ष का मार्ग ध्यान से होकर गुजरता है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति आत्मा की शुद्धि और मुक्ति प्राप्त करता है, जो मोक्ष का अंतिम उद्देश्य है।


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