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13. साम्बका विवाह

साम्ब

साम्ब कौन था?

एक बार जाम्बवतीनन्दन वीरवर साम्ब ने स्वयंवरके अवसरपर दुर्योधनकी पुत्रीको बलात् हरण किया ॥  तब महावीर कर्ण, दुर्योधन, भीष्म और द्रोण आदिने क्रुद्ध होकर उसे युद्धमें हराकर बाँध लिया ॥  यह समाचार पाकर कृष्णचन्द्र आदि समस्त यादवोंने दुर्योधनादिपर क्रुद्ध होकर उन्हें मारनेके लिये बड़ी तैयारी की ॥ उनको रोककर श्रीबलरामजीने मदिराके उन्मादसे लड़खड़ाते हुए शब्दोंमें कहा- “कौरवगण मेरे कहनेसे साम्बको छोड़ देंगे, अतः मैं अकेला ही उनके पास जाता हूँ” ॥ 

बलभद्रजी और कौरवों का संवाद

 तदनन्तर, श्रीबलदेवजी हस्तिनापुरके समीप पहुँचकर उसके बाहर एक उद्यानमें ठहर गये; उन्होंने नगरमें प्रवेश नहीं किया ॥  बलरामजीको आये जान दुर्योधन आदि राजाओंने उन्हें गौ, अर्घ्य और पाद्यादि निवेदन किये ॥

उन सबको विधिवत् ग्रहण कर बलभद्रजीने कौरवोंसे कहा- “राजा उग्रसेनकी आज्ञा है आपलोग साम्बको तुरन्त छोड़ दें” ॥ 

 बलरामजीके इन वचनोंको सुनकर भीष्म, द्रोण, कर्ण और दुर्योधन आदि राजाओंको बड़ा क्षोभ हुआ ॥  और यदुवंशको राज्यपदके अयोग्य समझ बाह्लिक आदि सभी कौरवगण कुपित होकर मूसलधारी बलभद्रजीसे कहने लगे- ॥  ” हे बलभद्र ! तुम यह क्या कह रहे हो; ऐसा कौन यदुवंशी है जो कुरुकुलोत्पन्न किसी वीरको आज्ञा दे ? ॥  यदि उग्रसेन भी कौरवोंको आज्ञा दे सकता है तो राजाओंके योग्य कौरवोंके इस श्वेत छत्रका क्या प्रयोजन है ? ॥ 

अतः हे बलराम ! तुम जाओ अथवा रहो, हमलोग तुम्हारी या उग्रसेनकी आज्ञासे अन्यायकर्मा साम्बको नहीं छोड़ सकते ॥ पूर्वकालमें कुकुर और अन्धकवंशीय यादवगण हम माननीयोंको प्रणाम किया करते थे सो अब वे ऐसा नहीं करते तो न सही, किन्तु स्वामीको यह सेवककी ओरसे आज्ञा देना कैसा ? ॥  तुमलोगोंके साथ समान आसन और भोजनका व्यवहार करके तुम्हें हमहीने गर्वीला बना दिया है; इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है; क्योंकि हमने ही प्रीतिवश नीतिका विचार नहीं किया ॥  हे बलराम ! हमने जो तुम्हें यह अर्घ्य आदि निवेदन किया है यह  प्रेमवश ही किया है, वास्तवमें हमारे कलकी तरफसे । तुम्हारे कुलको अर्ध्यादि देना उचित नहीं है” ॥ 

 ऐसा कहकर कौरवगण यह निश्चय करके कि “हम कृष्णके पुत्र साम्बको नहीं छोड़ेंगे” तुरन्त हस्तिनापुरमें चले गये ॥  तदनन्तर हलायुध श्रीबलरामजीने उनके तिरस्कारसे उत्पन्न हुए क्रोधसे मत्त होकर घूरते हुए पृथिवीमें लात मारी ॥  महात्मा बलरामजीके पाद-प्रहारसे पृथिवी फट गयी और वे अपने शब्दसे सम्पूर्ण दिशाओंको गुँजाकर कम्पायमान करने लगे तथा लाल- लाल नेत्र और टेढ़ी भृकुटि करके बोले – ॥ “ अहो ! इन सारहीन दुरात्मा कौरवोंको यह कैसा राजमदका अभिमान है। कौरवोंका महीपालत्व तो स्वतः सिद्ध है और हमारा सामयिक – ऐसा समझकर ही आज ये महाराज उग्रसेनकी आज्ञा नहीं मानते; बल्कि उसका उल्लंघन कर रहे हैं ॥ 

आज राजा उग्रसेन सुधर्मा-सभामें स्वयं विराजमान होते हैं, उसमें शचीपति इन्द्र भी नहीं बैठने पाते। परन्तु इन कौरवोंको धिक्कार है जिन्हें सैकड़ों मनुष्योंके उच्छिष्ट राजसिंहासनमें इतनी तुष्टि है॥  जिनके सेवकोंकी स्त्रियाँ भी पारिजात वृक्षकी पुष्प मंजरी धारण करती हैं वह भी इन कौरवोंके महाराज नहीं हैं? [ यह कैसा आश्चर्य है ? ] ॥  वे उग्रसेन ही सम्पूर्ण राजाओंके महाराज बनकर रहें। आज मैं अकेला ही पृथिवीको कौरवहीन करके उनकी द्वारकापुरीको जाऊँगा ॥ 

आज कर्ण, दुर्योधन, द्रोण, भीष्म, बाह्निक, दुश्शासनादि, भूरि, भूरिश्रवा, सोमदत्त, शल, भीम, अर्जुन, युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव तथा अन्यान्य समस्त कौरवोंको उनके हाथी-घोड़े और  रथके सहित मारकर तथा नववधूके साथ वीरवर साम्बको लेकर ही मैं द्वारकापुरीमें जाकर उग्रसेन आदि अपने बन्धु- बान्धवोंको देखूँगा ॥ अथवा समस्त कौरवोंके सहित उनके निवासस्थान इस हस्तिनापुर नगरको ही अभी  गंगाजीमें फेंके देता हूँ” ॥ 

 ऐसा कहकर मदसे अरुणनयन मुसलायुध श्रीबलभद्रजीने हलकी नोंकको हस्तिनापुरके खाई और दुर्गसे युक्त प्राकारके मूलमें लगाकर खींचा ॥ उस समय सम्पूर्ण हस्तिनापुर सहसा डगमगाता देख समस्त कौरवगण क्षुब्धचित्त होकर भयभीत हो गये ॥  [ और कहने लगे – ] ” हे राम! हे राम! हे महाबाहो ! क्षमा करो, क्षमा करो। हे मुसलायुध! अपना कोप शान्त करके प्रसन्न होइये ॥  हे बलराम ! हम आपको पत्नीके सहित इस साम्बको सौंपते हैं। हम आपका प्रभाव नहीं जानते थे, इसीसे आपका अपराध किया; कृपया क्षमा कीजिये ” ॥ 

पत्नीसहित साम्बको श्रीबलरामजीके सहित द्वारकापुरी भेज दिया

 तदनन्तर कौरवोंने तुरन्त ही अपने नगरसे बाहर आकर पत्नीसहित साम्ब को श्रीबलरामजीके अर्पण कर दिया ॥  तब प्रणामपूर्वक प्रिय वाक्य बोलते हुए भीष्म, द्रोण, कृप आदिसे वीरवर बलरामजीने कहा- “अच्छा मैंने क्षमा किया” ॥ इस समय भी हस्तिनापुर [गंगाकी ओर] कुछ झुका हुआ-सा दिखायी देता है, यह श्रीबलरामजीके बल और शूरवीरताका परिचय देनेवाला उनका प्रभाव ही है ॥  तदनन्तर कौरवोंने बलरामजीके सहित साम्ब का पूजन किया तथा बहुत-से दहेज और वधूके सहित उन्हें द्वारकापुरी भेज दिया ॥ 

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