89. सावर्णिमनुकी उत्पत्ति तथा आगामी सात मन्वन्तरोंके मनु

सावर्णिमनुकी उत्पत्ति तथा आगामी सात मन्वन्तरोंके मनु

सूर्यदेव और संज्ञा की कथा

विश्वकर्माकी पुत्री संज्ञा सूर्यकी भार्या थी । उससे उनके मनु , यम और यमी – तीन सन्तानें हुईं ॥

संज्ञा की तपस्या और छाया का प्रकट होना

कालान्तरमें पतिका तेज सहन न कर सकनेके कारण संज्ञा छायाको पतिकी सेवामें नियुक्त कर स्वयं तपस्याके लिये वनको चली गयी ॥ सूर्यदेवने यह समझकर कि यह संज्ञा ही है , छायासे शनैश्चर , एक और मनु तथा तपती – ये तीन सन्तानें उत्पन्न कीं ॥

रहस्य का खुलासा

एक दिन जब छायारूपिणी संज्ञाने क्रोधित होकर [ अपने पुत्रके पक्षपातसे ] यमको शाप दिया , तब सूर्य और यमको विदित हुआ कि यह तो कोई और है ॥ तब छायाके द्वारा ही सारा रहस्य खुल जानेपर सूर्यदेवने समाधिमें स्थित होकर देखा कि संज्ञा घोड़ीका रूप धारण कर वनमें तपस्या कर रही है ॥ अतः उन्होंने भी अश्वरूप होकर उससे दो अश्विनीकुमार और रेतःस्रावके अनन्तर ही रेवन्तको उत्पन्न किया ॥

विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के तेज को कम करना

फिर भगवान् सूर्य संज्ञाको अपने स्थानपर ले आये तथा विश्वकर्माने उनके तेजको शान्त कर दिया ॥ उन्होंने सूर्यको भ्रमियन्त्र ( सान ) पर चढ़ाकर उनका तेज छाँटा , किन्तु वे उस अक्षुण्ण तेजका केवल अष्टमांश ही क्षीण कर सके ॥ सूर्यके जिस जाज्वल्यमान वैष्णव – तेजको विश्वकर्माने छाँटा था वह पृथिवीपर गिरा ॥ उस पृथिवीपर गिरे हुए सूर्य तेजसे ही विश्वकर्माने विष्णुभगवान्का चक्र , शंकरका त्रिशूल , कुबेरका विमान , कार्तिकेयकी शक्ति बनायी तथा अन्य देवताओंके भी जो – जो शस्त्र थे उन्हें उससे पुष्ट किया ॥

आठवां मन्वंतर: सावर्णि मनु का वर्णन

जिस छायासंज्ञाके पुत्र दूसरे मनुका ऊपर वर्णन कर चुके हैं वह अपने अग्रज मनुका सवर्ण होनेसे सावर्णि कहलाया ॥ सुनो , अब मैं उनके इस सावर्णिकनाम आठवें मन्वन्तरका , जो आगे होनेवाला है , वर्णन करता हूँ ॥  यह सावर्णि ही उस समय मनु होंगे तथा सुतप , अमिताभ और मुख्यगण देवता होंगे ॥ उन देवताओंका प्रत्येक गण बीस – बीसका समूह कहा जाता है ।  अब मैं आगे होनेवाले सप्तर्षि भी बतलाता हूँ ॥ उस समय दीप्तिमान् , गालव , राम , कृप , द्रोण – पुत्र अश्वत्थामा , मेरे पुत्र व्यास और सातवें ऋष्यशृंग – ये सप्तर्षि होंगे ॥ तथा पाताल – लोकवासी विरोचनके पुत्र बलि श्रीविष्णुभगवान्‌की कृपासे तत्कालीन इन्द्र और सावर्णिमनुके पुत्र विरजा , उर्वरीवान् एवं निर्मोक आदि तत्कालीन राजा होंगे ।

नवां मन्वंतर: दक्षसावर्णि मनु

नवें मनु दक्षसावर्णि होंगे । उनके समय पार , मरीचिगर्भ और सुधर्मा नामक तीन देववर्ग होंगे , जिनमें से प्रत्येक वर्गमें बारह – बारह देवता होंगे ; तथा  उनका नायक महापराक्रमी अद्भुत नामक इन्द्र होगा ॥ सवन , द्युतिमान् , भव्य , वसु , मेधातिथि , ज्योतिष्मान् और सातवें सत्य- ये उस समयके सप्तर्षि होंगे तथा धृतकेतु , दीप्तिकेतु , पंचहस्त , निरामय और पृथुश्रवा आदि दक्षसावर्णिमनुके पुत्र होंगे ॥

दसवां मन्वंतर: ब्रह्मसावर्णि मनु

दसवें मनु ब्रह्मसावर्णि होंगे । उनके समय सुधामा और विशुद्ध नामक सौ – सौ देवताओंके दो गण होंगे ॥महाबलवान् शान्ति उनका इन्द्र होगा तथा उस समय जो सप्तर्षिगण होंगे उनके नाम सुनो- ॥ उनके नाम हविष्मान् , सुकृत , सत्य , तपोमूर्ति , नाभाग , अप्रतिमौजा और सत्यकेतु हैं ॥ उस समय ब्रह्मसावर्णिमनुके सुक्षेत्र , उत्तमौजा और भूरिषेण आदि दस पुत्र पृथिवीकी रक्षा करेंगे ॥

ग्यारहवां मन्वंतर: धर्मसावर्णि मनु

ग्यारहवाँ मनु धर्मसावर्णि होगा । उस समय होनेवाले देवताओंके विहंगम , कामगम और निर्वाणरति नामक मुख्य गण होंगे- इनमें से प्रत्येकमें तीस – तीस देवता रहेंगे और वृष नामक इन्द्र होगा ॥ उस समय होनेवाले सप्तर्षियोंके नाम निःस्वर , अग्नितेजा , वपुष्मान् , घृणि , आरुणि , हविष्मान् और अनघ है । तथा धर्मसावर्णि मनुके सर्वत्रग , सुधर्मा और देवानीक आदि पुत्र उस समयके राज्याधिकारी पृथिवीपति होंगे ॥

बारहवां मन्वंतर: रुद्रपुत्र सावर्णि मनु

रुद्रपुत्र सावर्णि बारहवाँ मनु होगा । उसके समय ऋतुधामा नामक इन्द्र होगा तथा तत्कालीन देवताओंके नाम ये हैं सुनो॥ उस समय दस दस देवताओंके हरित , रोहित , सुमना , सुकर्मा और सुराप नामक पाँच गण होंगे ॥ तपस्वी , सुतपा , तपोमूर्ति , तपोरति , तपोधृति , तपोद्युति तथा तपोधन — ये सात सप्तर्षि होंगे । अब मनुपुत्रोंके नाम सुनो— ॥ उस समय उस मनुके देववान् , उपदेव और देवश्रेष्ठ आदि महावीर्यशाली पुत्र तत्कालीन सम्राट् होंगे ॥ 

तेरहवां मन्वंतर: रुचि मनु

तेरहवाँ रुचि नामक मनु होगा । इस मन्वन्तरमें सुत्रामा , सुकर्मा और सुधर्मा नामक देवगण होंगे इनमें से प्रत्येकमें तैंतीस – तैंतीस देवता रहेंगे ; तथा महाबलवान् दिवस्पति उनका इन्द्र होगा ॥ निर्मोह , तत्त्वदर्शी , निष्प्रकम्प , निरुत्सुक , धृतिमान , अव्यय और सुतपा – ये तत्कालीन सप्तर्षि होंगे । अब मनुपुत्रोंके नाम भी सुनो ॥ उस मन्वन्तरमें चित्रसेन और विचित्र आदि मनुपुत्र राजा होंगे ॥

चौदहवां मन्वंतर: भौम मनु

चौदहवाँ मनु भौम होगा । उस समय शुचि नामक इन्द्र और पाँच देवगण होंगे ; उनके नाम सुनो – वे चाक्षुष , पवित्र , कनिष्ठ , भ्राजिक और वाचावृद्ध नामक देवता हैं । अब तत्कालीन सप्तर्षियोंके नाम भी सुनो ॥ उस समय अग्निबाहु , शुचि , शुक्र , मागध , अग्निध्र , युक्त और जित- ये सप्तर्षि होंगे । अब मनुपुत्रोंके विषयमें सुनो ॥ हे मुनिशार्दूल कहते हैं , उस मनुके ऊरु और गम्भीरबुद्धि आदि पुत्र होंगे जो राज्याधिकारी होकर पृथिवीका पालन करेंगे ॥

सृष्टि और प्रलय का चक्र

प्रत्येक चतुर्युगके अन्तमें वेदोंका लोप हो जाता है , उस समय सप्तर्षिगण ही स्वर्गलोकसे पृथिवीमें अवतीर्ण होकर उनका प्रचार करते हैं ॥ प्रत्येक सत्ययुगके आदिमें [ मनुष्योंकी धर्म – मर्यादा स्थापित करनेके लिये ] स्मृति – शास्त्रके रचयिता मनुका प्रादुर्भाव होता है ; और उस मन्वन्तरके अन्त – पर्यन्त तत्कालीन देवगण यज्ञ- भागोंको भोगते हैं तथा मनुके पुत्र और उनके वंशधर मन्वन्तरके अन्ततक पृथिवीका पालन करते रहते हैं ॥

इस प्रकार मनु सप्तर्षि , देवता , इन्द्र तथा मनु – पुत्र राजागण ये प्रत्येक मन्वन्तरके अधिकारी होते हैं ॥ इन चौदह मन्वन्तरोंके बीत जानेपर एक सहस्र युग रहनेवाला कल्प समाप्त हुआ कहा जाता है ॥ फिर इतने ही समयकी रात्रि होती है । उस समय ब्रह्मरूपधारी श्रीविष्णुभगवान् प्रलयकालीन जलके ऊपर शेष – शय्यापर शयन करते हैं ॥ तब आदिकर्ता सर्वव्यापक सर्वभूत भगवान् जनार्दन सम्पूर्ण त्रिलोकीका ग्रास कर अपनी मायामें स्थित रहते हैं ॥ फिर [ प्रलय – रात्रिका अन्त होनेपर ] प्रत्येक कल्पके आदिमें अव्ययात्मा भगवान् जाग्रत् होकर रजोगुणका आश्रय कर सृष्टिकी रचना करते हैं ॥ मनु , मनु पुत्र राजागण , इन्द्र देवता तथा सप्तर्षि – ये सब जगत्का पालन करनेवाले भगवान्के सात्त्विक अंश हैं ॥ 

विष्णु की सर्वव्यापकता

स्थितिकारक भगवान् विष्णु चारों युगों में जिस प्रकार व्यवस्था करते हैं , सो सुनो- ॥ समस्त प्राणियोंके कल्याणमें तत्पर वे सर्वभूतात्मा सत्ययुगमें कपिल आदिरूप धारणकर परम ज्ञानका उपदेश करते हैं ॥ त्रेतायुगमें वे सर्वसमर्थ प्रभु चक्रवर्ती भूपाल होकर दुष्टोंका दमन करके त्रिलोकीकी रक्षा करते हैं ॥

तदनन्तर द्वापरयुगमें वे वेदव्यासरूप धारणकर एक वेदके चार विभाग करते हैं और सैकड़ों शाखाओंमें बाँटकर उसका बहुत विस्तार कर देते हैं ॥ इस प्रकार द्वापर में वेदोंका विस्तार कर कलियुगके अन्तमें भगवान् कल्किरूप धारणकर दुराचारी लोगोंको सन्मार्गमें प्रवृत्त करते हैं ॥ इसी प्रकार अनन्तात्मा प्रभु निरन्तर इस सम्पूर्ण जगत्के उत्पत्ति , पालन और नाश करते रहते हैं । इस संसारमें ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो उनसे भिन्न हो ॥ इहलोक और परलोकमें भूत , भविष्य और वर्तमान जितने भी पदार्थ हैं वे सब महात्मा भगवान् विष्णुसे हा उत्पन्न हुए हैं — यह सब मैं तुमसे कह चुका हूँ ॥

 

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