सूर्य षष्ठी व्रत को लेकर नारद जी ने सूर्यदेव से कहा, “हे भगवन! कृपया हमें सूर्य षष्ठी व्रत की संपूर्ण विधि बताइए और किस मंत्र से पूजन करें यह भी बताइए।” तब सूर्य भगवान ने कहा, “हे महर्षि! यह सुनने मात्र से भी इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
सूर्य षष्ठी व्रत तिथि
इस वर्ष सूर्य षष्ठी व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को, अर्थात् 7 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। यह व्रत धर्म, अर्थ, और काम की सिद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है, इसलिए स्त्री-पुरुष सभी को इसे करना चाहिए।
पूजन मंत्र
“ॐ मित्राय नमः। ॐ वरुणाय नमः। ॐ भास्कराय नमः। ॐ महात्मने नमः।”
इन मंत्रों से मध्याह्न और अपराह्न में सूर्य को अर्घ्य दें। सूर्यदेव को घृत, नैवेद्य, और चार प्रकार का भोग अर्पित करें। प्रातः काल में संध्या सहित सूर्यदेव का पूजन करने के बाद योग्य ब्राह्मण को दक्षिणा दें और कथा सुनें। इस व्रत के प्रभाव से संतान सुख की प्राप्ति होती है और कुल में वृद्धि होती है।
पूजन विधि
आँख, कान, मन आदि इन्द्रियों को अपने वश में रखकर दिन में चौथे पहर स्नान करें। नदी, तालाब या घर पर ही अपनी सुविधापूर्वक स्नान कर लें, फिर लाल चंदन तथा केसर से सूर्य नारायण की प्रतिमा बनावें। सुंदर पौराणिक तथा वैदिक मंत्रों से गंध पुष्प और अक्षरों से उस मूर्ति में भगवान भास्कर का आह्वान करें और भक्ति से एकाग्र मन होकर सूर्य की पूजा करें। मित्र नामक सूर्य को नमस्कार है।
वरुण, भास्कर, महात्मा एक चक्र और धर्म के कारण सूर्य को नमस्कार है। इस प्रकार मध्याह्न में और अपराह्न में यह अर्घ्य दें। घृत सहित नैवेद्य और चार प्रकार का सीधा देना चाहिए। प्रातः काल में संध्या सहित श्री सूर्य भगवान का पूजन करें। तब विद्वान ब्राह्मण को स्वर्ण की दक्षिणा देवें। ब्राह्मण के मुख से दत्तचित्त होकर मनोहर कथा को सुनें। इस श्रेष्ठ व्रत के प्रभाव से पुत्र और पौत्र की वृद्धि होती है, इसके बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन विधि : ऋषि बोले- “हे सूर्यदेव। अब इस षष्ठी व्रत के
उद्यापन की विधि कहिए, क्योंकि आप सब विधि से मेरे अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करने वाले हैं।” तब सूर्य भगवान कहने लगे- “हे नारदजी! उद्यापन की विधि सुनिये। सात कलश जल से भरकर सात जनेऊँ सूत के घी और चीनी में परिपक्व सात लड्डुओं को रेशम के वस्त्र से ढाँप कर दक्षिणा सहित रख दे। यथाशक्ति सौभाग्यवर्द्धक भगवान भास्कर सूर्य की सोने की प्रतिमा बनावें। जितना धन हो यथाशक्ति, वस्त्राभूषण, पात्र आदि ब्राह्मणों को देवें। अनेक प्रकार के भक्ष्य पदार्थ समर्पण करके भगवान सूर्य का पूजन करें।”
व्रत कथा
प्राचीन समय में बिन्दुसार तीर्थ में महीपाल नाम का एक वणिक रहता था। वह धर्म-कर्म तथा देवता विरोधी था। एक बार उसने सूर्य भगवान की प्रतिमा के सामने मल-मूत्र त्याग किया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी दोनों आँखें जाती रहीं।
एक दिन अपने आतताई जीवन से ऊब गंगाजी में कूद कर प्राण देने का निश्चय करके चल पड़ा। रास्ते में उसे ऋषिराज नारदजी मिले। उन्होंने पूछा- “कहिए सेठ ! कहाँ जल्दी-जल्दी भागे जा रहे हो?” अंधा सेठ रो पड़ा और सांसारिक सुख-दुःख की प्रताड़ना से दुःखित हो प्राण त्याग करने का इरादा बतलाया।
देव ऋषि नारदजी दया से गद्गद् होकर बोले- “हे अज्ञानी! तू प्राण त्याग मत कर। भगवान सूर्य के क्रोध से तुम्हें यह दुःख भुगतना पड़ रहा है। तू कार्तिक मास की सूर्य षष्ठी का व्रत रख, तेरा दुःख दरिद्र सब मिट जाएगा।” वणिक ने वैसा ही किया तथा सुख-समृद्धि पूर्ण दिव्य ज्योति वाला हो गया।
कार्तिक मास की शुक्ला षष्ठी को यह व्रत किया जाता है। इस दिन सूर्य देवता की पूजा का विशेष महात्म्य है। इसे करने वाली स्त्रियाँ धन-धान्य, पति-पुत्र तथा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण तथा संतुष्ट रहती हैं। चर्म और आँख की बीमारी से छुटकारा मिल जाता है। पूजा तथा अर्घ्य दान देते समय सूर्य किरण अवश्य देखना चाहिए। पूजन विधि में फल, पकवान, मिष्ठात्र आदि का महत्व है।
सूर्यदेव की आरती
जय जय जय रविदेव, जय जय रविदेव।
रजनीपति मदहारी, शतदल जीवन दाता।।
षटपद मन मुदकारी, हे दिन मणि दाता।
जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।।
नभ मंडल के वाणी, ज्योति प्रकाशक देवा।
निज जन हित सुखरासी तेरी हम सब सेवा।।
करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।
कनक बदन मन मोहत, रुचिर प्रभा प्यारी।।
निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी।
हे सुरवर रविदेव, जय जय जय रविदेव ।।
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FAQs
सूर्य षष्ठी व्रत कब है?
सूर्य षष्ठी व्रत इस वर्ष 7 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। इसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर किया जाता है।
सूर्य षष्ठी व्रत का महत्व क्या है?
यह व्रत धर्म, अर्थ, और काम की सिद्धि के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इसे करने से संतान सुख, कुल में वृद्धि, और धन-धान्य में वृद्धि होती है। साथ ही, आंखों और त्वचा के रोगों से मुक्ति मिलती है।
सूर्य षष्ठी व्रत की पूजन विधि क्या है?
इस दिन चौथे पहर स्नान करके सूर्यदेव की प्रतिमा का पूजन करें। उन्हें गंध, पुष्प, अक्षत, और घृत सहित नैवेद्य अर्पित करें। सूर्यदेव को अर्घ्य देने के बाद ब्राह्मण को दक्षिणा दें और व्रत कथा सुनें।
सूर्य षष्ठी व्रत में कौन-कौन से मंत्रों का जाप करना चाहिए?
व्रत में निम्नलिखित मंत्रों से सूर्यदेव का पूजन और अर्घ्य देना चाहिए:
“ॐ मित्राय नमः।”
“ॐ वरुणाय नमः।”
“ॐ भास्कराय नमः।”
“ॐ महात्मने नमः।”
व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है?
उद्यापन के लिए सात जल से भरे कलश, सात जनेऊ, और सूत के सात लड्डू तैयार करें। भगवान भास्कर की प्रतिमा बनाकर सोने, वस्त्राभूषण, और भक्ष्य पदार्थों के साथ ब्राह्मणों को अर्पण करें और भगवान सूर्य का पूजन करें।
सूर्य षष्ठी व्रत की कथा क्या है?
प्राचीन समय में वणिक महीपाल ने सूर्य भगवान का अनादर किया, जिससे उसकी आँखों की रोशनी चली गई। नारदजी के सुझाव पर उसने सूर्य षष्ठी व्रत किया और पुनः उसे दिव्य ज्योति प्राप्त हुई। इस व्रत को करने से सुख-समृद्धि और संतुष्टि प्राप्त होती है।
सूर्य षष्ठी व्रत के दौरान कौन-कौन से भोग अर्पित किए जाते हैं?
सूर्यदेव को घृत, नैवेद्य, फल, पकवान, और चार प्रकार का भोग अर्पित किया जाता है।
सूर्य षष्ठी व्रत का पालन कौन कर सकता है?
यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी माना गया है, जो संतान सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना रखते हैं।
क्या सूर्य षष्ठी व्रत में सूर्य किरणें देखना आवश्यक है?
हां, पूजन के दौरान अर्घ्य दान देते समय सूर्य की किरणों को देखना शुभ माना जाता है। इससे पूजा का प्रभाव अधिक होता है।