2.स्नायु संस्थान की कमजोरी (Weakness in Nervous System)

स्नायु संस्थान की कमजोरी क्या हैं (Nervous System)

स्नायु संस्थान की कमजोरी का मतलब होता है किसी व्यक्ति या जानवर के तंत्रिका प्रणाली में किसी दुर्बलता का होना। यह किसी बिमारी, घातक चोट, या अन्य नुकसान के कारण हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप, व्यक्ति या जानवर के शारीरिक और मानसिक कार्यों में दिक्कतें आ सकती हैं, जैसे कि मांसपेशियों का कमजोर होना, चलने या संतुलित रहने में समस्या, या याददाश्त की कमजोरी ।

स्नायु संस्थान की कमजोरी का उपाय–

बनारसी आँवले का मुरब्बा एक नग अथवा नीचे लिखी विधि से बनाया गया बारह ग्राम (बच्चों के लिए आधी मात्रा) लें। प्रातः खाली पेट खूब चबा-चबाकर खाने और उसके एक घंटे बाद तक कुछ भी न लेने से मस्तिष्क के ज्ञान तन्तुओं को बल मिलता है और स्नायु संस्थान (Nervous System) शक्तिशाली बनता है।

विशेष लाभ –

गर्मी के मौसम में इसका सेवन अधिक लाभकारी है। इस मुरब्बे को यदि चाँदी के बर्क में लपेटकर खाया जाय तो दाह, कमजोरी तथा चक्कर आने की शिकायत दूर होती है। वैसे भी आँवला का मुरब्बा शीतल और तर होता है और नेत्रों के लिए हितकारी, रक्तशोधक, दाहशामक तथा हृदय, मस्तिष्क, यकृत, आंतें, आमाशय को शक्ति प्रदान करने वाला होता है। इसके सेवन से स्मरणशक्ति तेज होती है। मानसिक एकाग्रता बढ़ती है। मानसिक दुर्बलता के कारण चक्कर आने की शिकायत दूर होती है।

सवेरे उठते ही सिरदर्द चालू हो जाता है और चक्कर भी आते हो तो भी इससे लाभ होता है। आजकल शुद्ध चाँदी के वर्क आसानी से नहीं मिलते अतः नकली चाँदी के वर्क का इस्तेमाल न करना ही अच्छा है। चाय बिस्कुट की जगह इसका नाश्ता लेने से न केवल पेट ही साफ रहेगा बल्कि शारीरिक शक्ति, स्फूर्ति एवं कान्ति में भी वृद्धि होगी। निम्न विधि से निर्मित आँवला मुरब्बा को यदि गर्भवती स्त्री सेवन करे तो स्वयं भी स्वस्थ रहेगी और उसकी संतान भी स्वस्थ होगी। आँवले के मुरब्बे के सेवन से रंग भी निखरता है।

आँवला मुरब्बा बनाने की सर्वोत्तम विधि –

५०० ग्राम स्वच्छ हरे आँवला कद्दूकस करके उनका गूदा किसी काँच के मर्तबान में डाल दें और गुठली निकाल कर फेंक दें। अब इस गूदे पर इतना शहद डालें कि गूदा शहद में तर हो जाये। तत्पश्चात् उस काँच के पात्र को ढक्कन से ढ़क कर उसे दस दिन तक रोजाना चार-पाँच घंटे धूप में रखे। इस प्रकार प्राकृतिक तरीके से मुरब्बा बन जायेगा। बस, दो दिन बाद इसे खाने के काम में लाया जा सकता है। इस विधि से तैयार किया गया मुरब्बा स्वास्थ्य की दृष्टि से श्रेष्ठ है क्योंकि आग की बजाय सूर्य की किरणों द्वारा निर्मित होने के कारण इसके गुण-धर्म नष्ट नहीं होते और शहद में रखने से इसकी शक्ति बहुत बढ़ जाती है।

सेवन विधि-

प्रतिदिन प्रातः खाली पेट १० ग्राम (दो चम्मच भर) मुरब्बा लगातार तीन-चार सप्ताह तक नाश्ते के रूप में लें, विशेषकर गर्मियों में। चाहें तो इसके लेने के पन्द्रह मिनट बाद गुनगुना दूध भी पिया जा सकता है। चेत्र या क्वार (March/April or Sept./Oct.) मास में इसका सेवन करना विशेष लाभप्रद है।

ऐसा मुरब्बा विद्यार्थियों और दिमागी काम करने वालों की नस्तिष्क की शक्ति और कार्यक्षमता बढ़ाने और चिड़चिड़ापन दूर करने के लिए अमृत तुल्य है। इसमें विटामिन ‘सी’, ‘ए’, कैलशियम, लोहा का अनूठा संगम है। १०० ग्राम आँवले के गूदे में ७२० मिलीग्राम विटामिन ‘सी’, १५ आइ.यू.विटामिन ‘ए’, ५० ग्राम कैलशियम, १.२ ग्राम लोहा पाया जाता है। आँवला ही एक ऐसा फल है जिसे पंकाने या सुखाने पर भी इसके विटामिन नष्ट नहीं होते।

अन्य विकल्प–

यदि उपरोक्त विधि से मुरब्बा बनाना सम्भव न हो तो केवल हरे आँवले के बारीक टुकड़े करके या कद्दूकस करके शहद के साथ सेवन करना भी लाभप्रद है। इससे पुराने कब्ज व पेट के रोगों में भी अभूतपूर्व लाभ होता है |

निषेध-

मधुमेह को रोगी इसे न लें।

MEGHA PATIDAR
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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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