Vat Purnima 2025: हिन्दू धर्म में पति की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य और अखंड सौभाग्य की कामना के लिए किए जाने वाले व्रतों में वट सावित्री व्रत का स्थान सर्वोपरि है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा और अमावस्या, दोनों ही तिथियों पर मनाया जाता है। जो व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है, उसे वट पूर्णिमा व्रत के नाम से जाना जाता है। विशेषकर महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में वट पूर्णिमा का पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
आइए, इस लेख में हम वट पूर्णिमा 2025 से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारियों, जैसे कि सही तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजन विधि, सामग्री और इस व्रत की अमर कथा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
वट पूर्णिमा 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त (Vat Purnima 2025 Date & Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, साल 2025 में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा। यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- वट पूर्णिमा व्रत की तारीख: मंगलवार, 10 जून 2025
- पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 09 जून 2025 को रात्रि 10:45 बजे से
- पूर्णिमा तिथि समाप्त: 10 जून 2025 को रात्रि 09:05 बजे तक
- पूजा का शुभ मुहूर्त: 10 जून को सुबह 07:15 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक का समय पूजा के लिए अत्यंत शुभ रहेगा।
वट पूर्णिमा का महत्व (Significance of Vat Purnima)
वट पूर्णिमा व्रत का पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है।
- अखंड सौभाग्य का वरदान: यह व्रत मुख्य रूप से पति की लंबी आयु और निरोगी जीवन के लिए किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से देवी सावित्री के आशीर्वाद से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- वट वृक्ष की पूजा: वट यानी बरगद के वृक्ष को हिन्दू धर्म में पूजनीय माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव का वास होता है। इस वृक्ष की पूजा करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद एक साथ मिलता है।
- सावित्री-सत्यवान की कथा: यह व्रत देवी सावित्री के अपने पति सत्यवान के प्रति अटूट प्रेम, निष्ठा और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। सावित्री ने अपनी बुद्धिमत्ता और पतिव्रत धर्म के बल पर यमराज से अपने पति के प्राण वापस ले लिए थे।
वट पूर्णिमा पूजा के लिए आवश्यक सामग्री
पूजा को विधि-विधान से संपन्न करने के लिए निम्नलिखित सामग्री पहले से ही एकत्रित कर लें:
- सावित्री और सत्यवान की मूर्ति या तस्वीर
- बांस का पंखा
- लाल या पीला कलावा (कच्चा सूत)
- धूप, दीप, अगरबत्ती, कपूर
- सिंदूर, रोली, अक्षत (चावल)
- फल (आम, लीची, खरबूजा जैसे मौसमी फल)
- फूल, दूर्वा
- भिगोए हुए चने
- पूड़ी, हलवा या अन्य पकवान
- जल से भरा कलश
- पान, सुपारी, लौंग, इलायची
वट पूर्णिमा की संपूर्ण पूजा विधि (Vat Purnima Puja Vidhi)
वट पूर्णिमा के दिन सुहागिन महिलाओं को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।
- प्रातःकाल की तैयारी: इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ, नए या धुले हुए वस्त्र धारण करें। महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं।
- पूजा की थाली सजाना: एक बांस की टोकरी या पीतल की थाली में पूजा की सभी सामग्री को व्यवस्थित रूप से रखें।
- वट वृक्ष के नीचे पूजा: अब किसी नजदीकी वट वृक्ष के पास जाएं। यदि वट वृक्ष उपलब्ध न हो तो घर में गमले में लगे बरगद के पौधे की भी पूजा की जा सकती है।
- पूजन आरम्भ: सबसे पहले वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें। वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें।
- अक्षत, फूल और भोग: इसके बाद वृक्ष को रोली, सिंदूर, अक्षत और फूल चढ़ाएं। फिर फल, भिगोए हुए चने और पकवानों का भोग लगाएं।
- परिक्रमा: अब हाथ में कच्चा सूत या कलावा लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय पति की लंबी आयु की कामना करें। सामर्थ्य अनुसार 7, 11, 21 या 108 परिक्रमा की जाती है।
- कथा श्रवण: परिक्रमा पूरी करने के बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर वट सावित्री व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। कथा सुनना इस व्रत का अनिवार्य अंग है।
- आशीर्वाद ग्रहण: पूजा के अंत में बांस के पंखे से सावित्री-सत्यवान को हवा करें और फिर अपने पति को भी पंखा झलें। इसके बाद घर के बड़ों का आशीर्वाद लें।
वट पूर्णिमा व्रत कथा (Vat Savitri Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, मद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर देवी सावित्री ने उन्हें एक तेजस्वी पुत्री का वरदान दिया। देवी के वरदान से जन्मी कन्या का नाम सावित्री रखा गया।
सावित्री जब विवाह योग्य हुईं तो उन्होंने स्वयं अपने लिए द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति के रूप में चुना। जब देवर्षि नारद को यह पता चला तो उन्होंने राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के ठीक एक वर्ष बाद उनकी मृत्यु हो जाएगी।
यह सुनकर भी सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रहीं और उन्होंने सत्यवान से ही विवाह किया। विवाह के बाद वह अपने सास-ससुर और पति के साथ वन में रहने लगीं। जब सत्यवान की मृत्यु का दिन निकट आया, तो सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होनी थी, उस दिन वह उनके साथ वन में लकड़ी काटने गईं। वहीं, सत्यवान के सिर में तेज दर्द हुआ और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गए।
कुछ ही देर में यमराज भैंसे पर सवार होकर सत्यवान के प्राण लेने आ पहुंचे। सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण न लेने की विनती की, लेकिन यमराज नहीं माने। जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे, तो सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगीं। यमराज ने उन्हें बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं रुकीं।
अंत में, सावित्री की पतिनिष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने अपनी चतुराई से पहले वरदान में अपने नेत्रहीन सास-ससुर की आंखों की रोशनी मांगी, दूसरे में उनका खोया हुआ राज्य वापस मांगा और तीसरे वरदान में ‘सौ पुत्रों की मां’ बनने का वरदान मांगा। यमराज ने ‘तथास्तु’ कह दिया। जब सावित्री ने कहा कि पति के बिना यह वरदान कैसे संभव है, तो यमराज को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्हें सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। माना जाता है कि यह घटना ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही वट वृक्ष के नीचे हुई थी। तभी से इस व्रत की परंपरा चली आ रही है।
READ MORE ABOUT THIS POST – वट वृक्ष का महत्व
FAQs-
Vat Purnima 2025 mein kab hai?
2025 mein Vat Purnima ka vrat Tuesday, yaani Mangalwar, 10 June ko rakha jayega.
2025 mein puja ka shubh muhurat (timing) kya hai?
10 June ko subah 07:15 baje se lekar dopahar 12:30 baje tak ka time puja ke liye bahut shubh hai.
Vat Purnima aur Vat Savitri Amavasya mein kya difference hai?
Dono vrat ka purpose same hai – pati ki lambi umar. Bas date ka fark hai. North India mein log Jyeshtha Amavasya ko vrat rakhte hain, jabki Maharashtra, Gujarat aur South India mein Jyeshtha Purnima ko yeh festival manaya jaata hai.
Yeh vrat kyon rakhte hain?
Suhagan mahilayein apne pati (husband) ki long life, achhi health aur ghar ki khushhali ke liye yeh vrat rakhti hain. Yeh vrat Savitri aur Satyavan ki amar prem kahani se juda hai.
Agar ghar ke paas Bargad (Vat) ka ped na ho toh puja kaise karein?
Agar aas-paas Bargad ka ped nahi hai, toh aap ghar mein hi gamley (pot) mein lage Bargad ke paudhe ki puja kar sakti hain. Agar woh bhi nahi hai, toh aap chandan ya haldi se deewar par Bargad ke ped ka chitra banakar uski puja kar sakti hain.
Bargad ke ped ki kitni parikrama (chakkar) lagani chahiye?
Aap apni shraddha ke anusaar 7, 11, 21 ya 108 parikrama kar sakti hain. Parikrama karte waqt haath mein kaccha soot (safed dhaga) zaroor rakhein.
Kya unmarried ladkiyan (kunwari kanya) bhi yeh vrat kar sakti hain?
Haan, kuch jagahon par kunwari ladkiyan bhi achha pati (husband) milne ki kaamna se yeh vrat rakhti hain. Lekin yeh mukhya roop se suhagan mahilaon ka hi vrat hai.
Puja ke time par Savitri-Satyavan ki katha sunna compulsory hai kya?
Ji haan, is vrat mein katha sunna ya padhna bahut zaroori mana jaata hai. Katha ke bina puja adhoori maani jaati hai.
Is din vrat mein kya khana chahiye?
Yeh ek nirjala (bina paani) ya falahari vrat hota hai. Aap din bhar fal aur paani le sakti hain. Puja ke baad shaam ko aap meetha khana jaise puri, halwa ya kheer se apna vrat khol sakti hain.
Puja ke liye zaroori samagri (items) kya hain?
Puja ke liye Savitri-Satyavan ki murti, kaccha soot, baans ka pankha (bamboo fan), bhigoye hue chane, fal, phool, sindoor, dhoop-deep aur kalash chahiye hota hai.
Vrat kab aur kaise kholna chahiye?
Puja sampann hone ke baad aap vrat khol sakti hain. Vrat kholne se pehle, puja mein chadhaye gaye prasad (bhigoye hue chane) ko paani ke saath nigalna shubh maana jaata hai. Uske baad aap bhojan kar sakti hain.
Ped par jo kaccha soot/dhaga lapeta jaata hai, uska kya importance hai?
Kaccha soot pati-patni ke beech ke majboot rishte aur suraksha ka prateek hai. Dhaga lapetne se pati ki aayu lambi hoti hai aur unhe har sankat se suraksha milti hai.
Kya is din namak (salt) kha sakte hain?
Parampara ke anusaar, is vrat mein namak nahi khaya jaata hai. Vrat ka paaran (kholna) meethi cheezon se hi kiya jaata hai.
Is vrat mein mukhya roop se kiski puja hoti hai?
Is vrat mein mukhya roop se Vat Vriksh (Bargad ka ped), Devi Savitri aur Satyavan ki puja ki jaati hai. Bargad ke ped mein Brahma, Vishnu aur Mahesh ka vaas mana jaata hai.