जब आकाश में काले मेघ घुमड़ने लगते हैं, जब वर्षा की बूंदें तपती धरती को शीतलता प्रदान करती हैं और जब प्रकृति चारों ओर हरी-भरी चादर ओढ़ लेती है, तब आगमन होता है देवाधिदेव महादेव के सबसे प्रिय मास, Sawan का। हिंदू पंचांग का यह पांचवा महीना, जिसे ‘सावन’ के नाम से जाना जाता है, केवल एक महीना नहीं, बल्कि भक्ति, आस्था और समर्पण का एक महापर्व है। शिवालयों में “ॐ नमः शिवाय” और “हर हर महादेव” के जयकारे गूंजने लगते हैं और हर भक्त शिव-भक्ति के सागर में गोते लगाने को आतुर हो जाता है।
परन्तु क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान शिव, जो वैरागी हैं, जिन्हें संसार के सुख-दुःख से कोई मोह नहीं, उनके लिए यह विशेष महीना इतना प्रिय क्यों है? इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं, गहरे आध्यात्मिक रहस्य और सृष्टि के कल्याण से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंग छिपे हैं। आइए, हम विस्तार से जानते हैं कि सावन का महीना भगवान शिव के लिए इतना खास क्यों है और इसका महत्व क्या है।
1. सृष्टि की रक्षा हेतु विषपान: समुद्र मंथन की कथा
सावन के महत्व से जुड़ी सबसे प्रमुख और प्रचलित कथा समुद्र मंथन की है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार देवराज इंद्र के अहंकार के कारण महर्षि दुर्वासा ने उन्हें श्रीहीन होने का श्राप दे दिया। देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई और असुरों ने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास सहायता के लिए पहुंचे। भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर क्षीर सागर का मंथन करने का सुझाव दिया, जिससे अमृत निकलेगा और उसे पीकर देवता पुनः अमर और शक्तिशाली हो जाएंगे।
अमृत के लालच में देवता और असुर मिलकर मंदराचल पर्वत को मथनी और वासुकि नाग को रस्सी बनाकर समुद्र का मंथन करने लगे। मंथन के दौरान चौदह रत्नों के निकलने का क्रम शुरू हुआ। कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि और माँ लक्ष्मी जैसे दिव्य रत्न निकले। लेकिन अमृत निकलने से ठीक पहले, सागर से अत्यंत विनाशकारी ‘हलाहल’ विष निकला।
उस विष की ज्वाला इतनी प्रचंड थी कि उसकी अग्नि से संपूर्ण ब्रह्मांड जलने लगा। समस्त जीव-जंतु, देवता और असुर त्राहिमाम करने लगे। सृष्टि पर आए इस महासंकट को देखकर कोई भी देवता या असुर उस विष को ग्रहण करने का साहस नहीं जुटा सका। तब सभी ने सृष्टि के संहारक और पालक, देवाधिदेव महादेव से प्रार्थना की। भगवान शिव, जो करुणा के सागर हैं, उन्होंने सृष्टि के कल्याण के लिए उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर लिया।
विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और तभी से वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। विष की ऊष्णता और जलन बहुत तीव्र थी। इस जलन को शांत करने के लिए सभी देवताओं ने उन पर शीतल जल की धारा अर्पित की, जिसमें प्रमुख रूप से माँ गंगा का जल था। यह घटना श्रावण मास में ही घटी थी। तभी से यह परंपरा बन गई कि सावन के महीने में शिवलिंग पर जल, विशेषकर गंगाजल अर्पित करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को उस जलन से मिली शीतलता के समान ही शांति और सुख का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। कांवड़ यात्रा इसी परंपरा का एक जीवंत प्रतीक है।
2. माँ पार्वती की कठोर तपस्या और शिव-पार्वती का मिलन
सावन मास के महत्व का दूसरा बड़ा कारण भगवान शिव और माता पार्वती के पवित्र मिलन से जुड़ा है। माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान सहन न कर पाने के कारण योगाग्नि में अपने शरीर का त्याग कर दिया था। इसके बाद उन्होंने पर्वतराज हिमालय और मैना की पुत्री ‘पार्वती’ के रूप में पुनर्जन्म लिया।
जन्म से ही माँ पार्वती भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने अत्यंत कठोर तपस्या करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी तपस्या के लिए श्रावण मास को ही चुना। वे पूरे सावन महीने में निराहार रहकर, केवल बेलपत्र खाकर और पंचाग्नि तप जैसे कठोर नियमों का पालन करते हुए भगवान शिव की आराधना करती थीं। उनकी अटूट भक्ति, दृढ़ निश्चय और कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इसी पवित्र महीने में उन्हें दर्शन दिए और पत्नी के रूप में स्वीकार करने का वरदान दिया।
इस प्रकार, सावन का महीना शिव और शक्ति के दिव्य मिलन का साक्षी है। यही कारण है कि इस महीने में विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए ‘मंगला गौरी व्रत’ रखती हैं और अविवाहित कन्याएं माँ पार्वती की तरह ही सुयोग्य वर पाने की कामना से सावन सोमवार का व्रत रखती हैं।
3. भगवान विष्णु की योग निद्रा और शिव का सृष्टि संचालन
हिंदू धर्म में ‘चातुर्मास’ का विशेष महत्व है, जो देवशयनी एकादशी से प्रारंभ होकर देवउठनी एकादशी तक चलता है। इन चार महीनों के दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। भगवान विष्णु के शयन काल में सृष्टि के संचालन का सम्पूर्ण दायित्व भगवान शिव पर आ जाता है।
श्रावण मास चातुर्मास का पहला महीना होता है। इस समय भगवान शिव सृष्टि के संहारक रूप से पालक रूप में आ जाते हैं और पृथ्वी पर वास करते हुए लोगों के दुःखों का निवारण करते हैं। चूंकि वे पृथ्वी के निकट होते हैं, इसलिए इस दौरान की गई थोड़ी सी भक्ति का भी वे अनंत गुना फल प्रदान करते हैं। वे अपने भक्तों की पुकार बहुत जल्दी सुनते हैं।
4. भगवान शिव का अपने ससुराल आगमन
एक लोकमान्यता यह भी है कि हर वर्ष श्रावण मास में भगवान शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ अपने ससुराल, यानी पृथ्वी पर भ्रमण करने आते हैं। पर्वतराज हिमालय का निवास पृथ्वी पर ही था। अपने आराध्य को अपने बीच पाकर भक्तगण उनका अभिषेक, पूजन और सेवा करके उनका स्वागत करते हैं। यह भाव भक्तों को भगवान शिव से सीधे तौर पर जोड़ता है, जैसे कोई अपने घर आए सबसे प्रिय अतिथि का सत्कार कर रहा हो।
सावन में पूजा और अनुष्ठानों का महत्व
उपरोक्त कारणों से सावन का महीना शिव पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस दौरान किए जाने वाले कुछ प्रमुख अनुष्ठान इस प्रकार हैं:
- सावन सोमवार व्रत: ‘सोम’ का एक अर्थ ‘चंद्रमा’ भी है, जो भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है, और सावन का सोमवार तो अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- जलाभिषेक और रुद्राभिषेक: शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद और गन्ने के रस से अभिषेक करने को ‘रुद्राभिषेक’ कहते हैं। सावन में यह करने से ग्रह दोष शांत होते हैं, रोगों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-समृद्धि आती है।
- बेलपत्र अर्पण: बेलपत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इसके तीन पत्ते त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का प्रतीक माने जाते हैं। यह शीतल होता है और इसे शिवलिंग पर चढ़ाना विष की गर्मी को शांत करने का प्रतीक है।
- कांवड़ यात्रा: यह भगवान शिव के प्रति कृतज्ञता और समर्पण का एक अनूठा पर्व है। भक्तगण पवित्र नदियों से जल भरकर नंगे पैर पैदल यात्रा करते हुए प्रसिद्ध शिवालयों तक पहुंचते हैं और उस जल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
निष्कर्ष
सावन का महीना केवल रिमझिम बारिश और हरियाली का ही नहीं, बल्कि भक्ति, तपस्या और समर्पण की पराकाष्ठा का प्रतीक है। समुद्र मंथन में विष पीकर सृष्टि को बचाने की उनकी करुणा, माँ पार्वती की भक्ति के आगे उनका वैराग्य का त्याग करना, और चातुर्मास में सृष्टि का संचालन करना – ये सभी घटनाएं सावन के महीने को महादेव का प्रिय बनाती हैं।
यह महीना हमें सिखाता है कि जिस प्रकार भगवान शिव ने दूसरों के कल्याण के लिए विष पी लिया, उसी प्रकार हमें भी निःस्वार्थ भाव से समाज की सेवा करनी चाहिए। जिस तरह माँ पार्वती ने कठोर तप से अपने लक्ष्य को प्राप्त किया, उसी तरह हमें भी सच्ची लगन और परिश्रम से अपने जीवन के लक्ष्यों को साधना चाहिए। सावन मास स्वयं को जानने, अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरने का एक सुनहरा अवसर है।
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FAQs
Sawan ka mahina itna important kyu hai?
Sawan ka mahina Bhagwan Shiva ko sabse priya hai. Iske do mukhya kaaran hain. Pehla, isi mahine mein samudra manthan ke dauran nikle vish (zeher) ko peekar unhone srishti ko bachaya tha. Doosra, isi mahine mein Mata Parvati ne kathor tapasya karke unhe pati roop mein paaya tha.
Sawan Somvar ka vrat kyu rakhte hain?
Somvar (Monday) ka din Bhagwan Shiva ka din mana jaata hai. ‘Som’ ka ek matlab Chandra (Moon) bhi hai, jo Shiv ji ke mastak par virajman hai. Sawan mein somvar ka vrat rakhne se Bhagwan Shiva jaldi prasann hote hain aur sabhi manokamnayein poori karte hain.
Jalabhishek kya hota hai aur kyu karte hain?
Shivling par pavitra jal (khaaskar Gangajal) chadhane ko Jalabhishek kehte hain. Maana jaata hai ki jab Shiva ne vish piya tha, to uski garmi ko shaant karne ke liye devtaon ne unpar jal chadhaya tha. Jalabhishek karke hum unke prati apni shradhha aur aabhar vyakt karte hain.
Sawan vrat mein kya kha sakte hain?
Sawan vrat mein aap phalahari bhojan kar sakte hain. Isme phal (fruits), doodh, dahi, makhane, sabudana, kuttu ka atta, singhare ka atta, aur sendha namak se bani cheezein shamil hain. Anaj (gehu, chawal) aur sadharan namak nahi khana chahiye.
Shivling par Belpatra kyu chadhate hain?
Belpatra ke teen patte (tridal) ko Brahma, Vishnu, Mahesh ka prateek maana jaata hai. Yeh Bhagwan Shiva ko bahut priya hai aur iski taseer thandi hoti hai. Ise chadhana vish ki garmi ko shaant karne ka prateek hai. Hamesha 3 patton wala saaf belpatra hi chadhana chahiye.
Kanwar Yatra kya hai?
Kanwar Yatra ek pavitra teerth yatra hai. Isme bhakt (Kanwariya) pavitra nadiyon jaise Ganga se jal lekar, use apne kandhe par rakhi ‘kanwar’ mein lekar, paidal chalkar prasiddh Shiv mandiron tak jaate hain aur us jal se Shivling ka abhishek karte hain. Yeh ek tarah ki tapasya aur shradhha hai.
Kya Sawan ke niyamo ka koi scientific reason hai?
Haan, kuch scientific reason bhi hain. Monsoon ke dauran hamara digestion system (paachan tantra) kamzor ho jaata hai. Isliye Sawan mein vrat rakhna aur halka (saatvik) bhojan karna sehat ke liye achha hota hai. Isse body detoxify hoti hai.