शिवपुराण में कहा है कि घोर कलियुग के प्राप्त होने पर सर्वपुरुष पुण्य, धर्म, कर्म से हीन हो जायेंगे और सर्व पुरुष सत्य भाषण आदि से रहित बहिर्मुख दुराचार में प्रीति वाले हो जायेंगे।

आत्मज्ञान का अभाव

कलियुग में मूढ़ पुरुष अनित्य जड़ दुःख रूपी देह में आत्म बुद्धि वाले हो जायेंगे और यदि कोई विद्वान सत्य, ज्ञान, सुख स्वरूप आत्मा के बोध की शिक्षा देंगे तो उस शास्त्रीय शिक्षा को न मानकर नास्तिक हो जायेंगे। यदि कोई वेद शास्त्रों के मानने वाले आस्तिक भी होंगे तो आत्म-विचार करने में तो विशेष कर पशु बुद्धि वाले होंगे और माता-पिता पूज्य वर्ग के साथ में द्वेष करने वाले होंगे। ऐसे कलियुगी पुरुष अतिशय करके काम के ही दास होंगे और उनका स्त्री ही केवल ब्रह्मदेव पूजनीय प्रधान देवता होगी ऐसे स्त्री भक्त धर्म-कर्म हीन पुरुषों के नरकों में वास करने में संदेह नहीं करना ।

सामाजिक संरचना में परिवर्तन

ब्रह्माण्ड पुराण में कहा है कि कलियुग में पुरुषों की और आयु आत्म विचार की बुद्धि तथा शारीरिक बल और सुन्दर रूप और शुभ कुलीनता यह सर्वनष्ट हो जाएंगे और ब्राह्मणों के आचरण वाले शूद्र हो जायेंगे और शुद्र के आचरण वाले ब्राह्मण हो जायेंगे। ऐसी पुण्य आत्माओं को रोमांचकारी अद्भुत घटना कलियुग की होगी।

उशना स्मृति में कहा है कि कलियुग में कटकार आदि जातियों वाले भी वेद शास्त्रों के अवलम्बन करने वाले हो जायेंगे जिसके पश्चात् नारायण के गण कहे जाएंगे।

स्त्रियों की स्थिति

नारदीय पुराण में कहा है कि घोर कलियुग के प्राप्त होने पर पाँच वर्ष की स्त्री पुत्र-पुत्रियों को उत्पन्न करने लग जायेंगी। सप्त वा अष्ठ वर्ष पर्यन्त स्त्री की युवा अवस्था होगी उसके उपरान्त वृद्ध हो जाया करेगी। बारह वर्ष की दीर्घ आयु वाली स्त्री महादीर्घ वाली मानी जावेगी ।

कलियुग के दोषों से मुक्ति

ब्रह्मदेवर्त पुराण में नन्दजी ने कृष्णचन्द्रजी से पूछा, “हे कृष्णचन्द्र ! कलियुग के दोषों से दूषित पुरुषों का कैसे कल्याण होगा। कलियुगी पुरुषों का मन तो सदा पाप संकल्पकारी सुना जाता है।” तब कृष्णचन्द्रजी ने कहा “हे तात ! दोषों के निधि कलियुग का एक गुण महान शुभकारी है। यदि यह शुभ गुण न होता तो पुरुषों का कल्याण कभी नहीं हो सकता था” सो गुण क्या है कि कलियुग में शुभ कर्मों का मन में संकल्प करने से ही पुण्य होता है और मानसी दुष्ट कर्म करने से पाप नहीं होता है।

कलियुग के अंत के संकेत

कलियुग के दस हजार वर्ष बीत जाने पर शालग्राम और हरि की प्रतिमा रूपी मूर्ति और जगन्नाथजी ये सर्व भारतवर्ष का त्याग करके हरि के वैकुण्ठ लोक को पधार जाएंगे।और कलियुग में देव पूजन, श्राद्ध, कर्म, धर्म और ईश्वर के अवतारों को प्रतिपादन करने वाले स्वसनातनी शास्त्रों को त्याग कर पुरुष देव, पूजा श्राद्ध, धर्म, कर्म, ईश्वर की कथाओं से हीन म्लेच्छ शास्त्रों को पढ़ा करेंगे और कलियुग में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्यों के शुभ वंश शुद्रों के सेवक हुआ करेंगे।

ऐसे कलियुग के घोर संप्रवर्तन होने पर, सर्व संसार के म्लेच्छ रूप होने पर और एक हाथ के प्रमाण वाले वृक्ष होने और अंगुष्ठ प्रमाण के पुरुष उत्पन्न होने पर और सर्व वस्तुओं के शक्तिहीन होने पर सर्व वस्तुओं के संकोच को प्राप्त हो जाने पर। और जिन धर्मशील कुलीन पुरुषों के ग्रहों में परम्परा से धर्म-कर्म और वेद शास्त्रों का नियम से पारायण कथा हरिकीर्तन आदि शुभ आचरण लुप्त हो जायेगा।

जब तक कलि और अधर्मकारियों का अन्तर्यामी परमात्मा नारायण की कला सर्व शक्तिमान बलियों में बली सर्व के रक्षक सनातन धर्म के स्थापक दुष्ट धर्म घातकों के प्राणहारी साधु ब्राह्मण गौ हितकारी कृष्णमुरारी सारङ्ग धनुष चक्र के धारी म्लेच्छों के संहारी कल्कि भगवान् विष्णु यश ब्राह्मणों के पुत्र भाव से शम्मल नामक ग्राम में खड्गधारी धर्म हितकारी प्रगट होंगे और म्लेच्छों का नाश कर सतयुग का प्रवर्तन करेंगे।

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FAQs

कलियुग के लक्षण क्या हैं?

शिवपुराण और अन्य पुराणों के अनुसार, कलियुग में लोगों की धार्मिकता और पुण्य में कमी आएगी। वे सत्य भाषण से दूर होंगे और मूढ़ता में लिप्त रहेंगे। शास्त्रीय शिक्षा और वेद शास्त्रों का पालन करने वाले लोग भी आत्मविचार में कमजोर होंगे और माता-पिता जैसे पूजनीय व्यक्तियों के प्रति द्वेष भाव रखेंगे। स्त्री और पुरुषों के आयु और गुणों में भी गिरावट आएगी।

कलियुग में पुरुषों का आचरण कैसा होगा?

कलियुग में पुरुषों का आचरण पतित होगा। वे धर्म, कर्म और पुण्य से दूर रहेंगे और अधिकतर असत्य बोलने वाले होंगे। स्त्री और पुरुषों के संबंध भी विकृत होंगे, और स्त्री ही देवता के रूप में पूजनीय मानी जाएगी। ब्राह्मण और शूद्र के गुणों में उलटफेर होगा, अर्थात् शूद्र ब्राह्मणों जैसे आचरण करेंगे और ब्राह्मण शूद्र जैसे।

कलियुग में स्त्रियों की आयु और जीवनकाल के बारे में क्या कहा गया है?

नारदीय पुराण के अनुसार, कलियुग में स्त्रियाँ जल्दी वृद्ध हो जाएँगी। पाँच वर्ष की स्त्री की संतान उत्पन्न करने की संभावना होगी, सात से आठ वर्ष की उम्र में वे युवावस्था में प्रवेश करेंगी और बारह वर्ष की आयु वाली स्त्री को दीर्घकालिक माना जाएगा।

कलियुग में धार्मिक और शास्त्रीय ग्रंथों की स्थिति क्या होगी?

कलियुग में लोग अपने पारंपरिक शास्त्रों को त्याग कर म्लेच्छ शास्त्रों का पालन करेंगे। वेद और पुराणों के प्रति सम्मान कम होगा, और लोग नए धार्मिक ग्रंथों का अनुसरण करेंगे।

कलियुग के दोषों से मुक्ति का मार्ग क्या है?

कृष्णचन्द्रजी के अनुसार, कलियुग का एक गुण यह है कि मन में शुभ संकल्प करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस समय शुभ कर्म करने से ही पुण्य प्राप्त होगा और मन की दुष्टता कम होगी। यह गुण एक प्रकार से कलियुग के दोषों को दूर करने का उपाय है।

शालग्राम और हरि की मूर्तियों के बारे में क्या कहा गया है?

ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार, दस हजार वर्षों के बाद शालग्राम और हरि की मूर्तियाँ भारत से वैकुण्ठ लोक चली जाएँगी। उस समय, देव पूजा और कर्मकांड का महत्व कम हो जाएगा और लोग म्लेच्छ शास्त्रों को अपनाएँगे।

कलियुग में धार्मिक आचारण के परिवर्तन के क्या संकेत हैं?

कलियुग में धार्मिक आचारण में काफी परिवर्तन होगा। ब्राह्मण और शूद्र के गुण और आचरण एक-दूसरे में मिल जाएंगे। धार्मिकता और पुण्य की परंपराएँ कमजोर हो जाएँगी, और समाज में अधर्म का प्रकोप बढ़ेगा।

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Deepika patidar is a dedicated blogger who explores Hindu mythology through ancient texts, bringing timeless stories and spiritual wisdom to life with passion and authenticity.

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