11. दान का महत्व और उसके सिद्धांत

दान का महत्व और उसके सिद्धांत

1. गौरवमिति सदैव दान से ही प्रतिष्ठा होती है:

गौरवं प्राप्यते दानान्नतु द्रव्यस्य संग्रहात् ।

स्थितिरुच्चैः पयोदानां पयोंधीनामधः पुनः । १।

अर्थ- गौरवमिति सदैव दान से ही प्रतिष्ठा होती है। द्रव्य के संग्रह करने से मान नहीं हो सकता क्योंकि जैसे मेघों की स्थिति समुद्र से ऊंची है और समुद्र सदैव नीचे ही चलता है अर्थात् वह जल को घर  घर बरसाते हैं परन्तु समुद्र ऐसा न होने से उसकी बढ़ाई नहीं है ।

2. एकमिति एक बोली का जल:

एकं वापि जलं यद्वदिक्षो मधुरतां व्रजेत् ।

निवे कटुकतां यातिपात्त्राऽपात्त्रायभोजनम् |२|

अर्थ – एकमिति एक बोली का जल समीपवर्ती ईख के संयोग से जैसे मीठा हो जाता है वैसे पात्र को दान देने से दान सफल हो जाता है, और जैसे वह जल नीम के योग से कड़वा हो जाता है वैसे कुपात्र को दान देने से निष्फल है।

3. सत्पात्रमिति-सत्पात्र को दान देना:

सत्पात्नोपगतं दान’ सुक्षेत्रे गतबीजवत ।

कुपात्रोपगतं दान कुक्षेत्रे गतबीजवत ।३।

अर्थ- सत्पात्रमिति-सत्पात्र को दान देना उत्तम क्षेत्र में डाले हुए बीज के समान है और कुपात्र को देना कृक्षेत्र में डाले बीज के तुल्य हैं ||3||

4. तदिति-भोजन वही है जो मुनियो का उच्छिष्ट हो:

तद्भोजनं यन्मुनिभुक्तशेषं स बुद्धिमान यो न करोति पापम् ।

तत्सौहृद यत्क्रियते परोक्षं दर्भीविना यः क्रियते स धर्मः |४|

अर्थ – तदिति-भोजन वही है जो मुनियो का उच्छिष्ट हो, बुद्धिमान मनुष्य वही है जो निष्पाप हो, मित्रता वही है जो परोक्ष में कीजिये और धर्म वही है जो पाखण्ड के बगैर हो ||4||

5. यदिति – हे मनुष्य:

यदि वहसि त्रिदंडं नग्नमुडो जटां वा ।

यदि वससि गुहायां वृक्षमूले शिलायाम ।

यदि पठसि पुराणं वेदसिद्धांत तत्वं ।

यदि हृदयमशुद्धं सर्वं मेतन्न किंचित | ५|

अर्थ – यदिति – हे मनुष्य ! चाहे तुम तीन दंड धारण कर लो और चाहे सिर मुण्डवा कर साधु बन जाओ व जटाधारी हो जावो, गुफा में बैठ कर तपस्या करते रहो, या वृक्षमूल में बैठ जाओ, या शिला के ऊपर बैठ तप तपते रहो, चाहे पुराण और वेद के तत्व की खोज करते रहो, परन्तु यदि तुम्हारा मन शुद्ध नहीं तो सब करना निष्फल ही है ॥

6. मातृवत्परदाराश्च:

मातृवत्परदाराश्च परद्रव्याणि लोष्टवत् ।

आत्मवत्सर्वसत्त्वानि यः पश्यति स वैष्णवः । ६।

अर्थ-जगत में वही पुरुष वैष्णव है जो अन्य स्त्री को माता के समान, पर द्रव्य को ढेले के समान और अपने जैसा अन्य जीवों को समझाता रहे॥

MEGHA PATIDAR
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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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