76. श्राद्ध – प्रशंसा , श्राद्ध में पात्रापात्र का विचार

श्राद्धकर्म के महत्त्व और विधि

श्रद्धासहित श्राद्धकर्म करनेसे मनुष्य ब्रह्मा , इन्द्र , रुद्र , अश्विनीकुमार , सूर्य , अग्नि , वसुगण , मरुद्गण , विश्वेदेव , पितृगण , पक्षी , मनुष्य , पशु , सरीसृप , ऋषिगण तथा भूतगण आदि सम्पूर्ण जगत्को प्रसन्न कर देता है ॥ हे नरेश्वर ! प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की पंचदशी ( अमावास्या ) और अष्ट का ( हेमन्त और शिशिर ऋतुओं के चार महीनों को शुक्लाष्टमियों ) पर श्राद्ध करे । [ यह नित्य श्राद्धकाल है ] अब काम्यश्राद्ध का काल बतलाता हूँ , श्रवण करो ॥

जिस समय श्राद्ध योग्य पदार्थ या किसी विशिष्ट ब्राह्मण को घर में आया जाने , अथवा जब उत्तरायण या दक्षिणायन का आरम्भ या व्यतीपात हो तब काम्य श्राद्ध का अनुष्ठान करे ॥ विषुवसंक्रान्ति पर , सूर्य और चन्द्रग्रहण पर , सूर्य के प्रत्येक राशि में प्रवेश करते समय , नक्षत्र अथवा ग्रह की पीडा होने पर , दुःस्वप्न देखने पर और घर में नवीन अन्न आनेपर भी काम्यश्राद्ध करे ॥

नित्य श्राद्धकाल और काम्य श्राद्ध का काल

जो अमावास्या अनुराधा , विशाखा या स्वातिनक्षत्र युक्ता हो उसमें श्राद्ध करने से पितृगण आठ वर्ष तक तृप्त रहते हैं ॥ तथा जो अमावास्या पुष्य , आर्द्रा या पुनर्वसु नक्षत्रयुक्ता हो उसमें पूजित होने से पितृगण बारह वर्ष तक तृप्त रहते हैं ॥ जो पुरुष पितृगण और देवगण को तृप्त करना चाहते हों उनके लिये धनिष्ठा , पूर्वाभाद्रपदा अथवा शतभिषानक्षत्रयुक्त अमावास्या अति दुर्लभ है ॥ हे पृथिवीपते । जब अमावास्या नौ नक्षत्रों से युक्त होती है उस समय किया हुआ श्राद्ध पितृगण को अत्यन्त तृप्तिदायक होता है । इनके अतिरिक्त पितृभक्त इलापुत्र महात्मा पुरूरवा के अति विनीत भावसे पूछने पर श्रीसनत्कुमारजी ने जिनका वर्णन किया था वे अन्य तिथियाँ भी सुनो ॥

श्राद्ध की विशेष तिथियाँ

वैशाखमास की शुक्ला तृतीया , कार्तिक शुक्ला नवमी , भाद्रपद कृष्णा त्रयोदशी तथा माघमास की अमावास्या- इन चार तिथियों को पुराणों में ‘ युगाद्या ‘ कहा है । ये चारों तिथियाँ अनन्त पुण्यदायिनी हैं । चन्द्रमा या सूर्य के ग्रहण के समय , तीन अष्टकाओं में अथवा उत्तरायण या दक्षिणायन के आरम्भ में जो पुरुष एकाग्रचित्त से पितृगण को तिलसहित जल भी दान करता है वह मानो एक सहस्र वर्ष के लिये श्राद्ध कर देता है – यह परम रहस्य स्वयं पितृगण ही कहते हैं ।

यदि कदाचित् माघ की अमावास्या का शतभिषा नक्षत्र से योग हो जाय तो पितृगण की तृप्ति के लिये यह परम उत्कृष्ट काल होता है । हे राजन् ! अल्प पुण्यवान् पुरुष को ऐसा समय नहीं मिलता ॥ और यदि उस समय ( माघकी अमावास्यामें ) धनिष्ठानक्षत्रका योग हो तब तो अपने ही कुलमें उत्पन्न हुए पुरुषद्वारा दिये हुए अन्नोदकसे पितृगणकी दस सहस्र वर्षतक तृप्ति रहती है ॥ तथा यदि उसके साथ पूर्वाभाद्रपदनक्षत्रका योग हो और उस समय पितृगणके लिये श्राद्ध किया जाय तो उन्हें परम तृप्ति प्राप्त होती है और वे एक सहस्र युगतक शयन करते रहते हैं ॥

तीर्थों में श्राद्ध

गंगा , शतद्रू , यमुना , विपाशा , सरस्वती और नैमिषारण्यस्थिता गोमती में स्नान करके पितृगण का आदरपूर्वक अर्चन करनेसे मनुष्य समस्त पापोंको नष्ट कर देता है ॥ पितृगण सर्वदा यह गान करते हैं कि वर्षाकाल ( भाद्रपद शुक्ला त्रयोदशी ) के मघानक्षत्र में तृप्त होकर फिर माघ की अमावास्या को अपने पुत्र – पौत्रादि द्वारा दी गयी पुण्यतीर्थोंकी जलांजलिसे हम कब तृप्ति लाभ करेंगे ‘ ॥

विशुद्ध चित्त , शुद्ध धन , प्रशस्त काल , उपर्युक्त विधि , योग्य पात्र औरपरम भक्ति – ये सब मनुष्य को इच्छित फल देते हैं ॥ हे पार्थिव ! अब तुम पितृगण के गाये हुए कुछ श्लोकों का श्रवण करो , उन्हें सुनकर तुम्हें आदरपूर्वक वैसा ही आचरण करना चाहिये ॥ [ पितृगण कहते हैं— ] ‘ हमारे कुलमें क्या कोई ऐसा मतिमान् धन्य पुरुष उत्पन्न होगा जो वित्तलोलुपता को छोड़कर हमें पिण्डदान देगा ॥

श्राद्ध का सही तरीका

जो सम्पत्ति होनेपर हमारे उद्देश्यसे ब्राह्मणों को रत्न , वस्त्र , यान और सम्पूर्ण ११ भोगसामग्री देगा ॥ अथवा अन्न – वस्त्र मात्र वैभव होनेसे जो श्राद्धकालमें भक्ति – विनम्र चित्तसे यथाशक्ति अन्न ही भोजन अन्नदान में भी असमर्थ होने पर जो ब्राह्मणश्रेष्ठों को कच्चा धान्य और थोड़ी – सी दक्षिणा ही देगा ॥ और यदि इसमें भी असमर्थ होगा तो किन्हीं द्विज श्रेष्ठ को प्रणाम कर एक मुट्ठी तिल ही देगा ॥

हमारे उद्देश्यसे पृथिवीपर भक्ति – विनम्र चित्तसे सात – आठ तिलोंसे युक्त जलांजलि ही देगा ॥ और यदि इसका भी अभाव होगा तो कहीं – न – कहीं से एक दिनका चारा लाकर प्रीति और श्रद्धापूर्वक हमारे उद्देश्यसे गौको खिलायेगा ॥ तथा इन सभी वस्तुओं का अभाव होने पर जो वनमें जाकर अपने कक्षमूल ( बगल ) को दिखाता हुआ सूर्य आदि दिक्पालों से उच्च स्वरसे यह कहेगा ॥

‘ मेरे पास श्राद्धकर्म के योग्य न वित्त है , न धन है और न कोई अन्य सामग्री है , अतः मैं अपने पितृगण को नमस्कार करता हूँ , वे मेरी भक्तिसे ही तृप्ति लाभ करें । मैंने अपनी दोनों भुजाएँ आकाश में उठा रखी हैं ” ॥ धन के होने अथवा न होने पर पितृगण ने जिस प्रकार बतलाया है वैसा ही जो पुरुष आचरण करता है वह उस आचार से विधिपूर्वक श्राद्ध ही कर देता है ॥

MEGHA PATIDAR
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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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