हर मनुष्य प्रवृत्ति, स्वभाव, रुचि और व्यवहार के आधार पर दूसरे मनुष्य से भिन्न है। मनुष्य की प्रत्येक प्रवृत्ति किसी एक जन्म का अभ्यास नहीं है, अपितु यह उसके अतीत के कई जन्मों की कर्मसमष्टि का परिणाम है। अनेक जन्मों में मिले अनुभवों और अभ्यासों के आधार पर उसके हृदय में विशिष्ट संस्कार संघनित हुए हैं, जो उसे दूसरे मनुष्य से भिन्न बना देते हैं। इसी प्रकार ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग भी भिन्न-भिन्न हैं।
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ईश्वर तक पहुंचने के मार्ग
कोई ज्ञानमार्गी है तो किसी को भवित में रमना सहज लगता है। कोई राजयोग में डूबा है तो कोई मात्र कर्म में भरोसा रखता है, परंतु कोई एक केंद्रीय सत्ता है जिसकी ओर सब अपने-अपने मार्ग पर चलते हुए खिंचे जा रहे हैं, यह सभी अनुभव करते हैं।
ज्ञान, भक्ति, योग या कर्म इनमें मूल आधार एक ही रहता है, परंतु आगे चलकर अन्य भावों का प्रभाव आना स्वाभाविक है।
मार्गों का प्रभाव और अंतर्निहित समानता
भक्ति में लीन मनुष्य के लिए ध्यान-साधना के द्वार स्वयं ही खुलने लगते हैं। जैसे-जैसे ज्ञान प्राप्त होता जाता है, अपनी तुच्छता स्पष्ट दिखने लगती है, परमशक्ति की सत्ता की भक्ति में शीश स्वयं झुक जाता है। कर्म तो सभी भावों के साथ जुड़ा ही है। कर्मयोगी का आत्मा तो कर्म की ज्वाला ता में कुंदन की भांति निखर जाता है।
मार्गों की समता
मनुष्य जिस मार्ग पर स्वयं को सहज पाता है, उसे उसी पर चलना चाहिए। अपनी प्रवृत्ति को पलटने का प्रयास नहीं करना चाहिए। एक कर्मयोगी भी अपने तरीके से ईश्वर को उतना ही पा सकता है जितना कि राजयोगी। न तो ज्ञानमार्गी श्रेष्ठ है, न ही ईश्वर में लीन रहने वाला भक्त। अब सभी मार्ग एक ही गंतव्य पर जाकर खुलते हैं तो भला कोई एक मार्ग श्रेष्ठ कैसे हो सकता है?
रवींद्रनाथ टैगोर का उद्धरण
रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा है-मंदिर की उदासी से बाहर भागकर बच्चे धूल में बैठते हैं,भगवान उन्हें खेलता देखते हैं और पुजारी को भूल जाते हैं।
ईश्वर की दृष्टि
ईश्वर मात्र हमारी सच्चाई और ईमानदारी देखता है, हमारा व्यवसाय वा मार्ग नहीं।
FAQs-
क्या ईश्वर तक पहुंचने के सभी मार्ग समान हैं?
हां, ज्ञान, भक्ति, योग और कर्म के मार्ग भिन्न हो सकते हैं, लेकिन सभी मार्ग एक ही गंतव्य की ओर जाते हैं। व्यक्ति जिस मार्ग पर सहजता से चल सके, वही उसके लिए सर्वोत्तम है। कोई एक मार्ग दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है।
भक्ति, ज्ञान, योग और कर्म में क्या अंतर है?
भक्त भावनाओं में लीन होकर ईश्वर को पाने का प्रयास करता है, जबकि ज्ञानमार्गी सत्य और बोध की खोज करता है। योगी ध्यान और साधना के माध्यम से आत्मा को नियंत्रित करता है, और कर्मयोगी अपने कर्मों से आत्मा को निखारता है। सभी मार्ग एक ही सत्य की ओर जाते हैं।
रवींद्रनाथ टैगोर का उद्धरण ‘ईश्वर और खेलते बच्चे’ का क्या अर्थ है?
टैगोर का उद्धरण बताता है कि ईश्वर बाहरी विधियों से प्रभावित नहीं होते। वह सरलता, सच्चाई और ईमानदारी को महत्व देते हैं। मंदिर के पुजारी से ज्यादा, वे बच्चों की सरलता और खेल में मौजूद होते हैं।
क्या सभी मनुष्यों के लिए एक ही मार्ग उपयुक्त है?
नहीं, प्रत्येक व्यक्ति की प्रवृत्ति, स्वभाव और संस्कार भिन्न होते हैं। अतः व्यक्ति को अपनी प्रवृत्ति के अनुसार मार्ग चुनना चाहिए। कोई कर्मयोग में सच्चाई पाता है, तो कोई भक्ति में। सभी मार्ग उचित हैं।
क्या ईश्वर हमारे मार्ग या व्यवसाय को देखता है?
ईश्वर केवल हमारी सच्चाई और ईमानदारी को देखता है। वह यह नहीं देखता कि हम किस व्यवसाय या मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं, बल्कि यह देखता है कि हम अपने मार्ग पर कितनी निष्ठा और सच्चाई से चल रहे हैं।
क्या ज्ञान प्राप्त होने से विनम्रता आती है?
हां, जैसे-जैसे व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है, उसे अपनी सीमाएं और तुच्छता का बोध होता है। इसके परिणामस्वरूप, व्यक्ति स्वाभाविक रूप से परमशक्ति के सामने झुक जाता है, और विनम्रता का भाव उत्पन्न होता है।
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