सकारात्मकता का रंग

सकारात्मकता के रंगों की जब बात होती है तो भक्तिकाल की कवयित्री मीराबाई पर ध्यान चला जाता है। उनके भजन की पंक्ति ‘बैठी संतों के संग रंगी मोहन के रंग’ के निहितार्थ को समझ लिया जाए तो हर कोई परम ब्रह्म से साक्षात्कार जैसी उच्चतम स्थिति तक पहुंच सकता है।

‘मोहन’ का रूप

यहां विचारणीय है कि ‘मोहन’ को किस रूप में देखा जाए। यशोदा के मोहन भी यश देने वाले रहे हैं। व्यक्तित्व में पूर्णता मोहन इस रूम में देते हैं कि जब भाव पक्ष की राधा के साथ रहते हैं तब मुरली बजाते हैं और जब कर्म पक्ष के पांडवों के साथ रहते हैं तब युद्ध के मैदान में शंखनाद करते हैं। जब व्यक्ति इन दोनों स्वरूपों में कुशलता से जीवन व्यतीत करता है तब उसका स्वरूप पूर्णता के शिखर तक पहुंच जाता है।

‘मोहन’ का विश्लेषण

‘मोहन’ को ‘मोह-न’ के रूप में परिभाषित किया जाए तब जब भी सत, रज और तम से जो ऊपर उठता है तो वही स्थितिप्रज्ञ कहलाता है। युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए उपदेशों की महत्ता मीराबाई के हाथ लग गई। फिर तो उनके ‘महल’ का स्वरूप ही बदल गया।

मीराबाई का दृष्टिकोण

मीराबाई के महलों में पली बन के जोगन चली पंक्ति के आशय को समझा जाए तो मीरा की दृष्टि कबीरदास के ‘काका-पाथन’ वाले महल पर नहीं वल्कि दस इंद्रियों वाले महल पर ज्यादा है। इसी दस इंदियों वाले महल के भीतर चैतन्य शक्ति के कृष्ण का पता मीरा को चल गया।

मीराबाई का अंतर्जगत

मीरा के अंतर्जगत में गोविंद गोविंद का गूंज होने लगी। गूंज ऐसी हुई कि मीरा का जीवन काम-क्रोध, मोह-लोभ के समंदर में हिचकोले खाने से बचकर मृदुत्ता की सरिता-सा हो गया।

आंतरिक कृष्ण का रंग

इस प्रकार जो भी अपने आंतरिक कृष्ण को आस्था भक्ति, स्नेह और प्रेम से रंग लेगा उसके जीवन से नकारात्मकता दूर की जाएगी और सकारात्मकता की बांसुरी जीवन वसंत–सा हो जाएगा। भौतिक आकर्षणों और अवांछित कामनाओं को होलिका जलकर हो जाएगी।

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FAQs

मीराबाई की भक्ति में सकारात्मकता का क्या महत्व है?

मीराबाई की भक्ति में सकारात्मकता का प्रमुख स्थान है। उनके भजन और उनकी भक्ति की धारा आत्मा को परमात्मा से जोड़ती है और व्यक्ति के जीवन में संतुलन, शांति, और सकारात्मकता लाती है।

‘बैठी संतों के संग रंगी मोहन के रंग’ की पंक्ति का क्या अर्थ है?

इस पंक्ति का अर्थ है कि जब व्यक्ति संतों के साथ बैठता है और अपने आप को ईश्वर के प्रेम में रंगता है, तो उसे जीवन में परम शांति और संतोष प्राप्त होता है। यह आत्मा की परम ब्रह्म से एकाकार की स्थिति है।

‘मोहन’ का क्या अर्थ है, और इसका मीराबाई की भक्ति से क्या संबंध है?

‘मोहन’ का अर्थ है “मोह लेने वाला”। मीराबाई की भक्ति में ‘मोहन’ श्रीकृष्ण हैं, जो उनके ईश्वर और परम ब्रह्म हैं। मीराबाई की भक्ति में मोहन का स्वरूप केवल ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाता है।

मीराबाई ने अपने अंतर्जगत में श्रीकृष्ण को कैसे पाया?

मीराबाई ने अपने जीवन की साधना के द्वारा अपने अंतर्जगत में श्रीकृष्ण को पाया। वे संसारिक मोह और लालच से ऊपर उठकर अपने मन को भगवान श्रीकृष्ण के रंग में रंगने लगीं, जिससे उनके अंतर्जगत में गोविंद की गूंज होने लगी।

आंतरिक कृष्ण का रंग क्या है, और इससे जीवन में क्या बदलाव आता है?

आंतरिक कृष्ण का रंग प्रेम, भक्ति और स्नेह का प्रतीक है। जब व्यक्ति अपने जीवन में आंतरिक कृष्ण के रंग को अपनाता है, तो नकारात्मकता दूर होती है, और जीवन में सकारात्मकता, शांति और संतुलन का आगमन होता है।

मीराबाई की भक्ति में गीता के उपदेशों का क्या महत्व है?

मीराबाई ने गीता के उपदेशों को अपने जीवन में आत्मसात किया। गीता के उपदेशों के माध्यम से वे कर्म, भक्ति, और ज्ञान की त्रिवेणी में डूबकर मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ीं। उनके भजनों में श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए गीता के उपदेशों की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।


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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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