इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेवजी का जन्म हुआ था। आज के दिन हल का बोया हुआ धान खाना वर्जित है। इस दिन बलदेवजी का पूजन करना चाहिए। कुछ लोग माता सीता का जन्म दिवस इसी तिथि को मानते हैं। हमारे देश के पूर्वी जिलों में इसे उबछट या ललई छट भी कहते हैं।
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हलछठ व्रत पूजन विधि
पहिले- ‘सुसुखश्चैकदेत्नश्च’ इस मंत्र से गणेशजी को प्रणाम करें, तब ‘अविष्णु’ काल वर्ष, मास, तिथि इत्यादि का नाम लेकर ‘मम समस्त करिष्ये’ कहते हुए संकल्प करें। तब ओऽम् नमः ‘शम्भाय’ ‘श्री श्वत लक्ष्मीचंद’ ‘ॐ गणनान्त्वा’ ‘यवक्रन्द्र’। इन चारों मंत्रों को पढ़ते हुए शिव, पार्वती, गणेशजी तथा सङ्मुख भगवान देवताओं की गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से (पञ्चार) पूजन करें।
व्रत कथा
राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि आपने लोकों के हित के लिए पृथ्वी पर जन्म लिया है। अतएव मुझ पर कृपा कीजिए। अपने अभिमन्यु के मारे जाने पर सुभद्रा भी बड़ी दुःखी हुई है, शोक से पीड़ित होकर वह जी नहीं सकती। हे देव! इसी प्रकार स्त्रियों में श्रेष्ठ द्रोपदी भी अपने पाँचों पुत्रों का नाश होने पर दिन-रात प्रतिदिन दुःखी हो रही है।
हे यदुकुल श्रेष्ठ ! अभिमन्यु की भार्या के गर्भ की संतान भी अस्त्र के तेज से दग्ध हो रही है, क्योंकि अति दुष्ट अश्वत्थामा ने इस गर्भ को बिल्कुल निस्तेज कर दिया। इस प्रकार संसार में संतति के शोक से उत्पन्न हुआ ऐसा घोर महादुःख हो रहा है। पिता अपने जन्म को तभी सफल जानता है, जब उसके पुत्र चिरंजीवी, दीर्घायु और आरोग्य हों और उसकी संतति उत्तम हो। तो “हे देवेश! उस दान या व्रत को बतलाइए, जिसके करने से संतान शोक के दुःख से माता-पिता पीड़ित न हों।”
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा- “यदि उत्तरा एक अपूर्व व्रत को करे, तो उसका मृत पुत्र भी जी जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।” राजा युधिष्ठिर ने तब पूछा- “हे भगवन! इस व्रत की क्या विधि है, इसके कौन देवता है, किस काल में यह किया जाता है और किस स्त्री ने यह व्रत किया था, जिससे यह प्रसिद्ध हुआ है।” श्रीकृष्ण भगवान ने तब कहा- “सुभद्र नाम का एक राजा था, उसकी रानी का नाम सुवर्णा था, उसको हस्ती नाम का प्रसिद्ध पुत्र उत्पन्न हुआ।
उसने अपने नाम पर प्राचीन काल में हस्तिनापुरी बसाई। यह बालक एक दिन धाय के साथ गंगाजी के तौर पर गया। जल से खेलता हुआ वह बालक बाल भाव से जल में चला गया, वहाँ एक मगर इसको पकड़ कर गहरे पानी में ले गया। इस समाचार को सुनकर पुत्र दुःख से दुःखी रानी सुवर्णा ने क्रोध के मारे धाय के पुत्र को जलती अग्नि में फेंक दिया और फेंकने के बाद अपने पुत्र को याद करती हुई बड़ा विलाप कर रही थी।
राजा भी दुःख से व्याकुल होकर प्राण देने को उद्यत हो गया। धाय पुत्र शोक से दुःखी, व्याकुल होकर जंगल में चली गई और कुशा और परास से पूर्ण जंगल में मध्याह्न के समय शिवजी की पूजा करने लगी। उसने वहाँ प्राणियों से वर्जित सुनसान मंदिर मे महादेवजी, कार्तिकेय भगवान, पार्वती तथा गणेशजी की पूजा की। धाय प्रतिदिन ध्यानपूर्वक इन देवताओं का पूजन करती थी तथा तृण, धान्य और महबें का भोजन करती थी।
उसके इस प्रकार करते हुए-हे युधिष्ठिर! भादों के महीने के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को नगर में अद्भुत दर्शन हुआ उस धाय का अति सुंदर पुत्र भाड़ में से (जीता) निकल आया। इस घटना को देखकर राजा, रानी तथा अन्य बड़े आश्चर्य में पड़ गए। धाय के पुत्र को जीवित देखकर चिंता से व्याकुल होकर लोगों ने ब्रह्मज्ञानी पंडितों से इसका कारण पूछा।
इसी समय शिवजी के अंशरूपी दुर्वासा नाम के महर्षि उनकी आज्ञा से राजा को हित उपदेश करने के लिए वहाँ पर आए। शिव स्वरूप दुर्वासा ऋषि का शरीरधारी कल्याण का मनोरथ जान राजा ने आए हुए ऋषि का अर्घ्य इत्यादि से पूजन किया और उनको बारम्बार नमस्कार करके अपनी शंका अर्थात् धाय के पुत्र को जलते भाड़ में से जीवित निकलने के विषय में पूछा।
दुर्वासा ऋषि ने कहा- “हे राजन् ! जो धाय आपके भय से जंगल में चली गई हैं। वहाँ पर उसने महादेवजी, पार्वती, कार्तिकेय भगवान तथा गणेशजी की पूजा की है, उसी का ऐसा फल है। हे राजा! आप दोनों को भी वहीं पर आज चले जाना चाहिए।
वहाँ जाकर हे महापाल! आप इस व्रत के महाफल को ग्रहण कीजिए।” हे महाराज! उन दोनों राजा-रानी ने इस प्रकार भली-भाँति संतुष्ट होकर पहले ऋषि को जंगल भेजा और उनसे सब वार्ता सुनकर राजा और रानी भी उस बड़े जंगल में स्वयं गए। दुर्वासा इत्यादि ब्राह्मणों के साथ आनंदपूर्वक वहाँ उन्होंने पलास के वृक्ष के नीचे कुश पर धाय को आश्वासन देकर उसके पुत्र से मिला दिया।
तब धाय ने आनंदयुक्त होकर राजा के व्रत के विषय में सब कुछ निवेदन किया। धाय कहने लगी-“हे राजन! मैं आपके भय से जबसे यहाँ आई हूँ, तब से वायु भोजन करती हुई शिवजी तथा पुत्रों सहित पार्वती का पूजन कर रही हूँ। आधी रात को स्वप्न में आनंददाता शिवजी को पार्वती के दोनों पुत्रों सहित बैल पर चढ़े हुए कुश और पलास के वृक्षों के नीचे देखा, उन्होंने कहा तेरा पुत्र जीवित हो।
तूने हम दोनों का व्रत किया है, अतएव तेरा पुत्र अवश्य जीयेगा और रानी भी विधिपूर्वक इस उत्तम व्रत को करे, इससे उसका पुत्र जीयेगा और वह अनेक पुत्र वाली होगी। इस व्रत की विधि दुर्वासा ऋषि बतलाएँगे।” दुर्वासा ऋषि ने कहा- “हे राजन! भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी आने पर उस दिन नियमपूर्वक प्रातःकाल स्नान करके मनुष्य व्रत करे।
क्रोध और लोभ को त्यागकर इस व्रत के नियम का पालन करते हुए जब तक व्रत करें, तब तक किसी प्राणी की हिंसा न करें तथा व्रत सम्पूर्ण करने के निमित्त जीवों की पद्धति अर्थात् उसके मार्ग को लाँघे और मध्यान्तर के समय मित्रों के साथ पुत्र युक्त होने की मन में अभिलाषा करते हुए पलास और कुश के नीचे शिवजी, पार्वती, गणेश तथा स्वामी कार्तिक इन चारों देवताओं की मूर्ति बनाकर नीचे लिखे मंत्रों से इसका पूजन करें और भक्ति भाव चित्त से इनका सब देवताओं का नाना प्रकार की धूप तथा उसके उत्पन्न पुष्पों से पूजन करें।
हलछठ व्रत के देवता
(१) शिवजी की प्रार्थना मंत्र का भावार्थ : सौम्य रूप धारण करने वाले, पाँच मुख वाले, त्रिशूल धारण करने वाले तथा मदि, भृगि महाकाल इत्यादि गुणों से युक्त शम्भु शिवजी को नमस्कार।
(२) पार्वती की प्रार्थना के मंत्र का अर्थ : शिवा, हरकान्ता, प्रकृति श्रेष्ठ हेतु, सुख और सौभाग्यदायिनी गौरी और धात्री को नमस्कार।
(३) स्वामी कार्तिक की प्रार्थना के मंत्र का अर्थ : मोर पर सवारी वरने वाले देवता को क्रौंच पक्षी को विदीर्ण करने वाले, कुमार, विशाक और स्कन्द को नमस्कार।
(४) गणेशजी की प्रार्थना के मंत्र का अर्थ : मूसे पर सवारी करने वाले देवता को, लम्बे उदर वाले, सुन्दर सूंडवाले, एक दन्त वाले तथा विघ्न को नाश करने वाले देवता को नमस्कार।
व्रत में क्या खाएं और क्या न खाएं?
दीपक, चंदन, धूप तथा नाना प्रकार के नैवेद्य से पूजन करके, गाजे-बाजे से ब्राह्मणों के साथ घर पर आवें तथा उस दिन महुवे के फूलों के साथ समां का चावल भोजन करे और भैंस का दूध, दही, मट्ठा तथा घृत विशेष का भोजन करें।
हलछठ व्रत के लाभ
इस व्रत की ऐसी ही विधि है। जो मनुष्य ऐसा करता है, वह पुत्र-पौत्र से युक्त शीघ्र ही सुख को प्राप्त करता है।” दुर्वासा ऋषि के वचन को सुनकर राजा ने इस व्रत को किया, तब मगर के बिल में से शीघ्र ही निकलकर राजकुमार ने माता-पिता तथा दुर्वासा ऋषि के चरणों पर गिरकर प्रणाम किया और बोलने लगा। इस व्रत के फल से राजा के दीर्घायु, बड़े पराक्रमी, बलवान तथा सद्गुण सम्पन्न अनेक पुत्र उत्पन्न हुए। इससे उसके राज्य में ईति अर्थात् अतिवृष्टि तथा महामारी और दुर्भिक्ष की शांति हुई और राजा ने अनेक वर्ष तक सुखपूर्वक राज्य किया।
श्रीकृष्ण भगवान ने कहा- “यह बरथारर्णी उत्तरा इसी व्रत को करे।” केशव भगवान के वचन को सुनकर राजा युधिष्ठिर कृतार्थ हो गए। अश्वत्थामा से हत (दग्ध) उत्तरा का गर्भ शीघ्र ही जीवित हो गया। इस व्रत के प्रभाव से संतति स्थिर हो जाती है। व्रत करने के बाद शास्त्रोक्त रीति से विधिपूर्वक उद्यापन करें, सुवर्णा बैल, भैंस, गाय तथा वस्त्र ब्राह्मणों के सहित इनका पूजन करें।
विधि जानने में श्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर ने इस व्रत को उत्तरा से कराया, जिससे अश्वत्थामा से इसका गर्भ रक्षित हुआ। इस व्रत के प्रभाव से उत्तरा के उदर का गर्भ उसी क्षण जीवित गतिमान तथा प्रसव हुआ। “हे राजन! जो कोई इस अपूर्व व्रत को इस प्रकार से करता है, वह सम्पूर्ण पापों को त्यागकर सूर्य की महिमा को प्राप्त करता है।” श्रीकृष्ण तथा युधिष्ठिर के संवाद में कुल पलाश नाम की हलषष्ठी व्रत की कथा समाप्त हुई।
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FAQs–
हलछठ (देवछट) व्रत क्या है?
हलछठ व्रत, जिसे देवछट भी कहते हैं, भगवान बलदेवजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत संतान सुख और संतति रक्षा के लिए किया जाता है।
हलछठ व्रत में हल का प्रयोग क्यों वर्जित है?
हलछठ व्रत में हल से जुड़ी खाद्य सामग्री का सेवन इसलिए वर्जित है क्योंकि इस दिन हल से जुताई किए गए अनाज का उपयोग शुभ नहीं माना जाता।
हलछठ व्रत की पूजा विधि क्या है?
हलछठ व्रत में शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है। धूप, दीप, अक्षत, पुष्प और नैवेद्य से इन देवताओं का पूजन किया जाता है।
हलछठ व्रत में कौन सा भोजन किया जाता है?
हलछठ व्रत में महुवा के फूल और समां के चावल का सेवन किया जाता है। भैंस का दूध, दही, मट्ठा और घी का भी सेवन किया जा सकता है।
हलछठ व्रत करने से क्या लाभ होते हैं?
हलछठ व्रत करने से संतान सुख प्राप्त होता है। यह व्रत संतान शोक से मुक्ति दिलाता है और संतान की दीर्घायु के लिए भी लाभकारी होता है।
हलछठ व्रत की कथा क्या है?
हलछठ व्रत की कथा राजा युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण के संवाद से जुड़ी है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने संतान सुख और गर्भ रक्षा के लिए इस व्रत की महिमा बताई।