राधाष्टमी

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राधारानी, प्रेम और भक्ति की प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं, और वे भक्तों के हृदय में विशेष स्थान रखती हैं। उनका जन्मदिवस, जिसे राधाष्टमी कहा जाता है, हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इस पवित्र पर्व को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो जन्माष्टमी (भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस) के 15 दिनों बाद आता है।

राधाष्टमी केवल देवी राधा के जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह पर्व उनके और श्रीकृष्ण के बीच के दिव्य प्रेम और राधा की अद्वितीय भक्ति को समझने का एक अवसर है। इस दिन, भक्तगण देवी राधा की पूजा करके अपनी भक्ति को प्रकट करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उपवास रखते हैं।

राधाष्टमी का महत्व

राधाष्टमी का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से गहरा महत्व है। देवी राधा को भगवान श्रीकृष्ण की शाश्वत संगिनी माना जाता है। वे प्रेम और भक्ति की चरम सीमा का प्रतिनिधित्व करती हैं, और उनका जीवन भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण और निष्ठा का प्रतीक है। इस दिन, भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के बीच के प्रेम और उनकी दिव्यता की विशेष पूजा की जाती है। भक्त यह मानते हैं कि राधा रानी की कृपा से भगवान कृष्ण की भक्ति और आशीर्वाद प्राप्त करना सरल होता है।

राधाष्टमी का उत्सव और परंपराएँ

राधाष्टमी के दिन देशभर के विभिन्न मंदिरों में भव्य उत्सवों का आयोजन किया जाता है, खासकर वृंदावन और बरसाना जैसे तीर्थस्थलों में। बरसाना, जो राधारानी का जन्मस्थान माना जाता है, इस अवसर पर विशेष रूप से सजाया जाता है। भक्तगण राधा-कृष्ण की झांकियां सजाते हैं, भजन-कीर्तन का आयोजन होता है, और मंदिरों में विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

इस दिन उपवास रखने की परंपरा भी प्रचलित है। भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और रात्रि में केवल फलाहार या सात्विक भोजन करते हैं। इसके साथ ही देवी राधा की विशेष पूजा की जाती है और भक्त अपने परिवार के कल्याण और सुख-समृद्धि के लिए उनकी कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं।

राधाष्टमी और वृंदावन की विशेषता

वृंदावन, जो श्रीकृष्ण और राधा रानी की लीलाओं का प्रमुख स्थल माना जाता है, राधाष्टमी के अवसर पर भक्तों से खचाखच भरा रहता है। इस पावन भूमि में भक्तगण राधा-कृष्ण की दिव्य लीलाओं का स्मरण करते हैं और इस दिन विशेष उत्सवों का आयोजन किया जाता है। वृंदावन के मंदिर, जैसे श्री राधावल्लभ मंदिर और श्रीबांके बिहारी मंदिर, राधाष्टमी के दिन विशेष रूप से सजाए जाते हैं और यहां अद्भुत झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं।

निष्कर्ष

राधाष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रेम, भक्ति और भगवान के प्रति निस्वार्थ समर्पण का उत्सव है। इस दिन, भक्त देवी राधा की कृपा प्राप्त करने के लिए पूजा-अर्चना करते हैं और श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते हैं। राधारानी के जन्मदिवस का यह पावन पर्व हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और प्रेम से जीवन में आध्यात्मिक उन्नति संभव है।

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FAQs

राधाष्टमी कब मनाई जाती है?

राधाष्टमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है, जो जन्माष्टमी के 15 दिन बाद आती है।

राधाष्टमी कब है?

2024 में राधाष्टमी का पर्व 11 सितंबर को मनाया जाएगा। अष्टमी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर की रात 11:11 बजे से होगी और इसका समापन 11 सितंबर की रात 11:46 बजे होगा। पूजा के लिए मध्यान्ह (दोपहर) का समय 11:04 AM से 1:33 PM के बीच रहेगा |

राधाष्टमी का धार्मिक महत्व क्या है?

राधाष्टमी देवी राधा के जन्म का उत्सव है, जो भगवान श्रीकृष्ण की शाश्वत संगिनी मानी जाती हैं और प्रेम व भक्ति की प्रतीक हैं।

राधाष्टमी पर कौन-कौन से अनुष्ठान किए जाते हैं?

इस दिन भक्त देवी राधा की विशेष पूजा, व्रत और भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं। वृंदावन और बरसाना में विशेष अनुष्ठान होते हैं।

क्या राधाष्टमी पर उपवास रखने का नियम है?

हाँ, राधाष्टमी पर भक्तगण पूरे दिन उपवास रखते हैं और रात्रि में फलाहार करते हैं।

राधाष्टमी का पर्व किन स्थानों पर विशेष रूप से मनाया जाता है?

वृंदावन, बरसाना, और गोवर्धन जैसे तीर्थस्थलों पर राधाष्टमी का विशेष उत्सव मनाया जाता है।

राधाष्टमी का संबंध श्रीकृष्ण से क्यों है?

राधारानी को भगवान श्रीकृष्ण की शाश्वत संगिनी माना जाता है। उनकी भक्ति के बिना भगवान की पूजा अधूरी मानी जाती है।

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Deepika Patidar
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Deepika patidar is a dedicated blogger who explores Hindu mythology through ancient texts, bringing timeless stories and spiritual wisdom to life with passion and authenticity.

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