दिवाली 2024: तारीख, महत्व और शुभ मुहूर्त

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दीपावली, जिसे आमतौर पर दिवाली के नाम से जाना जाता है, भारत के सबसे महत्वपूर्ण और लोकप्रिय त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार प्रकाश और अंधकार के बीच संघर्ष, अच्छाई और बुराई की विजय और नए आरंभों का प्रतीक है। दिवाली न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भी बहुत खास है। वर्ष 2024 में दिवाली का त्यौहार और भी खास होने वाला है क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा, पारिवारिक एकता और समृद्धि का संदेश लेकर आएगा।

दिवाली 2024 की तारीख और पंचांग अनुसार शुभ मुहूर्त

दिवाली पंचांग के अनुसार हर वर्ष कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। यह दिन हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान श्रीराम अयोध्या लौटे थे, और पूरे राज्य में दीप जलाए गए थे। इसके साथ ही, देवी लक्ष्मी की पूजा भी इसी दिन की जाती है।

वर्ष 2024 में दिवाली का पर्व 1 नवंबर 2024 (शुक्रवार) को मनाया जाएगा। यह दिन कार्तिक मास की अमावस्या तिथि के अंतर्गत आएगा। इस दिन को अत्यंत शुभ माना जाता है, और विशेष रूप से लक्ष्मी पूजा का आयोजन किया जाता है।

दिवाली 2024 की प्रमुख तिथियां

  • धनतेरस – 29 अक्टूबर 2024 (सोमवार)
  • नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) – 31 अक्टूबर 2024 (गुरुवार)
  • दीपावली/लक्ष्मी पूजा – 1 नवंबर 2024 (शुक्रवार)
  • गोवर्धन पूजा – 2 नवंबर 2024 (शनिवार)
  • भाई दूज – 3 नवंबर 2024 (रविवार)

दिवाली 2024 के लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त:

दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है। इस दिन मां लक्ष्मी की आराधना और पूजन के लिए शुभ मुहूर्त का चयन करना अत्यंत आवश्यक है। शुभ मुहूर्त में पूजा करने से सुख, समृद्धि और शांति का आगमन होता है।

चौघड़िया –
चंचल बेला प्रात: 6:50 से 8:15 तक
लाभ बेला प्रात: 8:15 से 9:45 तक
अमृत बेला प्रात: 9:45 से 11:00 तक
शुभ बेला दोप. 12:00 से 1:30 तक
चंचल बेला सांय 4:15 से 5:45 तक
लाभ बेला रात्रि 9:00 से 10:30
शुभ बेला रात्रि 12:00 से 1:30 तक
अमृत बेला रात्रि 1:30 से 3:00 तक

दिवाली का धार्मिक महत्व

दिवाली का महत्व केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में भी है। यह पर्व न केवल हिन्दू धर्म के लिए, बल्कि सिख, जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए भी महत्वपूर्ण है। अलग-अलग धर्मों में इस त्योहार को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है, लेकिन इसका मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि और आंतरिक आलोक का प्रकट होना होता है।

हिन्दू धर्म में दिवाली

दिवाली का सबसे बड़ा धार्मिक महत्व यह है कि यह दिन भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाया जाता है। जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे, तो नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। तभी से दीपावली को दीपों का त्यौहार कहा जाता है। इसके अलावा, इसी दिन देवी लक्ष्मी का जन्मदिन भी माना जाता है, और इसीलिए लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है।

जैन धर्म में दिवाली

जैन धर्म के अनुयायी इस दिन को भगवान महावीर की निर्वाण तिथि के रूप में मनाते हैं। जैन समुदाय के लिए यह दिन धार्मिक साधना, तप और आत्मशुद्धि का समय होता है।

सिख धर्म में दिवाली

सिख धर्म में दिवाली को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद जी ने मुगल कैद से अपने 52 साथी राजाओं को मुक्त कराया था।

दिवाली की तैयारी और परंपराएँ

दिवाली के दौरान घरों की साफ-सफाई, सजावट, और नए वस्त्रों की खरीदारी का विशेष महत्व होता है। लोग अपने घरों को साफ करके यह मानते हैं कि माँ लक्ष्मी स्वच्छता पसंद करती हैं और स्वच्छ घर में ही वास करती हैं। इसके बाद घरों को दीयों, रंगोली, और फूलों से सजाया जाता है ताकि माता लक्ष्मी का स्वागत धूमधाम से हो सके।

1. धनतेरस:

दिवाली के पांच दिवसीय उत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। इस दिन लोग नई वस्तुएँ जैसे बर्तन, आभूषण, और इलेक्ट्रॉनिक्स खरीदते हैं। माना जाता है कि धनतेरस के दिन नई वस्तुएं खरीदने से सालभर घर में समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है।

2. नरक चतुर्दशी:

दिवाली के दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, जिससे दुनिया को अधर्म और अत्याचार से मुक्ति मिली। इस दिन भी घरों में दीप जलाए जाते हैं और विशेष रूप से स्नान के बाद तिल का उबटन लगाया जाता है।

3. लक्ष्मी पूजा (मुख्य दिवाली):

दिवाली के तीसरे दिन मुख्य लक्ष्मी पूजा होती है। यह दिन सबसे महत्वपूर्ण होता है। लक्ष्मी पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश, और भगवान कुबेर की पूजा की जाती है। माँ लक्ष्मी को धन, वैभव और समृद्धि की देवी माना जाता है, और उनकी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है।

4. गोवर्धन पूजा:

दिवाली के चौथे दिन गोवर्धन पूजा या अन्नकूट मनाया जाता है। यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचाने की घटना को समर्पित है। इस दिन गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है और उन्हें रंग-बिरंगे वस्त्र पहनाकर सजाया जाता है।

5. भाई दूज:

दिवाली के पांचवें और अंतिम दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं, और भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं।

दिवाली के दौरान विशेष परंपराएँ

1. दीयों का महत्व:

दीपावली का असली अर्थ ही ‘दीपों की अवली’ यानी दीपों की पंक्ति है। दीप जलाना इस त्यौहार का अभिन्न अंग है, और यह अंधकार पर प्रकाश की जीत का प्रतीक है। दीयों को जलाने का उद्देश्य केवल प्रकाश फैलाना नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में ज्ञान और सत्य का प्रसार करना है।

2. रंगोली और सजावट:

दीपावली के दिन घरों के बाहर रंग-बिरंगी रंगोली बनाना एक पुरानी परंपरा है। रंगोली को सौभाग्य और स्वागत का प्रतीक माना जाता है। इसके साथ ही, फूलों और दीयों से घरों को सजाया जाता है।

3. मिठाइयों का महत्व:

दिवाली पर मिठाइयां बांटना भी एक प्रमुख परंपरा है। लोग अपने मित्रों, परिवार और पड़ोसियों के बीच मिठाइयाँ बांटते हैं। खासतौर पर, लड्डू, बर्फी, काजू कतली और गुलाब जामुन जैसी मिठाइयाँ दिवाली के खास स्वाद होते हैं।

4. पटाखे:

हालांकि पिछले कुछ वर्षों में पटाखों के उपयोग पर पर्यावरणीय कारणों से अंकुश लगाया गया है, फिर भी पटाखों का दिवाली से ऐतिहासिक संबंध है। माना जाता है कि पटाखों की आवाज़ से नकारात्मक ऊर्जा और बुरी आत्माओं का नाश होता है।

दिवाली की आर्थिक और सामाजिक भूमिका

दिवाली का अर्थ केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। इस समय कई उद्योग, विशेष रूप से वस्त्र, आभूषण, इलेक्ट्रॉनिक्स और मिठाई उद्योग, सालभर के सर्वाधिक लाभ अर्जित करते हैं। इसके अलावा, दिवाली के समय बड़े पैमाने पर उपहारों का आदान-प्रदान और सामूहिक भोज भी होते हैं, जिससे समाज में आपसी संबंध और स्नेह को बल मिलता है।

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दिवाली 2024: पर्यावरण-अनुकूल उत्सव

हाल के वर्षों में पर्यावरण और स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण-अनुकूल दिवाली मनाने का चलन बढ़ा है। इससे न केवल प्रदूषण कम होता है, बल्कि प्रकृति के प्रति हमारी जिम्मेदारी भी प्रदर्शित होती है। 2024 में, लोग अधिक से अधिक दीयों का उपयोग करने, इलेक्ट्रॉनिक पटाखों और सजावट का चयन करने, और कम प्रदूषण वाले साधनों से दिवाली मनाने पर ध्यान दे सकते हैं।

  • ईको-फ्रेंडली सजावट: मिट्टी के दीये, प्राकृतिक रंगों से रंगोली, और पुन: प्रयोग की जाने वाली सजावट सामग्रियों का प्रयोग करें।
  • प्रदूषण रहित पटाखे: इलेक्ट्रॉनिक पटाखों का उपयोग करके ध्वनि प्रदूषण को कम करें।
  • मिठाइयाँ: घर की बनी मिठाइयों का उपयोग करें, जो स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ-साथ बाजार में मिलने वाली मिठाइयों से अधिक ताजगी से भरपूर होती हैं।

निष्कर्ष

दिवाली 2024 सिर्फ एक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह एक अवसर है अपने जीवन में प्रकाश, ज्ञान और समृद्धि को आमंत्रित करने का। यह त्यौहार परिवार और मित्रों के साथ संबंधों को मजबूत करने का, आत्म-विश्लेषण का, और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को प्रदर्शित करने का समय है। शुभ मुहूर्त में की गई लक्ष्मी पूजा आपके जीवन में खुशहाली और समृद्धि लेकर आएगी।

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FAQs

दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?

लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त 1 नवंबर 2024 को शाम 06:03 बजे से रात 08:16 बजे तक है। इस समय के दौरान पूजा करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

दिवाली 2024 में किस दिन मनाई जाएगी?

दिवाली 2024 में 1 नवंबर 2024 (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। यह दिन कार्तिक मास की अमावस्या तिथि के अंतर्गत आता है।

दिवाली के मुख्य त्योहार कौन-कौन से हैं?

दिवाली के पांच मुख्य त्योहार होते हैं:
धनतेरस
नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली)
दीपावली (लक्ष्मी पूजा)
गोवर्धन पूजा
भाई दूज

दिवाली का धार्मिक महत्व क्या है?

दिवाली अच्छाई की बुराई पर विजय, प्रकाश की अंधकार पर जीत, और भगवान राम के अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाई जाती है। यह देवी लक्ष्मी की पूजा का भी पर्व है, जो समृद्धि और सुख का प्रतीक है।

क्या दिवाली सिर्फ हिन्दू धर्म का त्योहार है?

दिवाली मुख्यतः हिन्दू धर्म का त्योहार है, लेकिन यह जैन, सिख और बौद्ध धर्म में भी महत्वपूर्ण है। जैन धर्म में इसे भगवान महावीर की निर्वाण तिथि के रूप में मनाया जाता है, जबकि सिख धर्म में इसे ‘बंदी छोड़ दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

क्या दिवाली पर पटाखे जलाना जरूरी है?

परंपरागत रूप से दिवाली पर पटाखे जलाने का चलन है, लेकिन बढ़ते पर्यावरणीय चिंताओं के कारण अब अधिक लोग पर्यावरण-अनुकूल दिवाली मनाने के लिए दीयों, सजावट, और घर की मिठाइयों पर ध्यान दे रहे हैं।






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MEGHA PATIDAR

Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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