46. भगवान्‌ श्री विष्णु का गर्भ-प्रवेश तथा देवगण द्वारा देवकी की स्तुति

भगवान्‌ श्री विष्णु का अवतार और योगमाया का कार्य 

भगवान्‌ श्री विष्णु  ने जैसा कहा था उसके अनुसार  जगद्धात्री योगमाया ने छः गर्भोको देवकीके उदरमें स्थित किया और सातवेंको उसमेंसे निकाल लिया ॥  इस प्रकार सातवें गर्भके रोहिणीके उदरमें पहुँच जानेपर श्रीहरिने तीनों लोकोंका उद्धार करनेकी इच्छासे देवकीके गर्भमें प्रवेश किया ॥ भगवान् परमेश्वर के आज्ञानुसार योगमाया भी उसी दिन यशोदाके गर्भ में स्थित हुई ॥ 

भगवान्‌ श्री विष्णु के आगमन पर शुभ संकेत

 विष्णु- अंशके पृथिवीमें पधारनेपर आकाशमें ग्रहगण ठीक- ठीक गति से चलने लगे और ऋतुगण भी मंगलमय होकर शोभा पाने लगे ॥ उस समय अत्यन्त तेजसे देदीप्यमाना देवकीजीको कोई भी देख न सकता था। उन्हें देखकर [ दर्शकोंके] चित्त थकित हो जाते थे ॥

देवताओं की स्तुति

तब देवतागण अन्य पुरुष तथा स्त्रियोंको दिखायी न देते हुए, अपने शरीरमें [गर्भरूपसे] भगवान् विष्णु को धारण करनेवाली देवकीजी की अहर्निश स्तुति करने लगे ॥

देवता बोले- हे शोभने! तू पहले ब्रह्म- प्रतिबिम्बधारिणी मूलप्रकृति हुई थी और फिर जगद्विधाताकी वेदगर्भा वाणी हुई ॥ हे सनातने! तू ही सृज्य पदार्थोंको उत्पन्न करनेवाली और  सृष्टिरूपा है; तू ही सबकी बीज-स्वरूपा यज्ञमयी वेदत्रयी। हुई है ॥  तू ही फलमयी यज्ञक्रिया और अग्नि- मयी अरणि है तथा तू ही देवमाता अदिति और दैत्यप्रसू दिति है ॥ 

तू ही दिनकरी प्रभा और ज्ञानगर्भा गुरुशुश्रूषा है तथा तू ही न्यायमयी परमनीति और विनयसम्पन्ना लज्जा है ॥  तू ही काममयी इच्छा, सन्तोषमयी तुष्टि, बोधगर्भा, प्रज्ञा और धैर्यधारिणी धृति है ॥ ग्रह, नक्षत्र और तारागणको धारण करनेवाला तथा [वृष्टि आदिके द्वारा इस अखिल विश्वका] कारणस्वरूप आकाश तू ही है। हे जगद्धात्रि ! हे देवि! ये सब तथा और भी सहस्रों और असंख्य विभूतियाँ इस समय तेरे उदरमें स्थित हैं ॥ 

देवकी जी के गर्भ में भगवान विष्णु का स्थित होना

हे शुभे ! समुद्र, पर्वत, नदी, द्वीप, वन और नगरोंसे सुशोभित तथा ग्राम, खर्वट और खेटादिसे सम्पन्न समस्त पृथिवी, सम्पूर्ण अग्नि और जल तथा समस्त वायु, ग्रह, नक्षत्र एवं तारागणोंसे चित्रित तथा सैकड़ों विमानोंसे पूर्ण सबको अवकाश देनेवाला आकाश, भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक तथा मह, जन, तप और ब्रह्मलोकपर्यन्त सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तथा उसके अन्तर्वर्ती देव, असुर, गन्धर्व, चारण, नाग, यक्ष, राक्षस, प्रेत, गुह्यक, मनुष्य, पशु और जो अन्यान्य जीव हैं, हे यशस्विनि! वे सभी अपने अन्तर्गत होनेके कारण जो श्री अनन्त सर्वगामी और सर्वभावन हैं तथा जिनके रूप, कर्म, स्वभाव तथा [बालत्व महत्त्व आदि] समस्त परिमाण परिच्छेद (विचार) – के विषय नहीं हो सकते वे ही श्रीविष्णुभगवान् तेरे गर्भ में स्थित हैं ॥  तू ही स्वाहा, स्वधा, विद्या, सुधा और आकाशस्थिता ज्योति है।

देवताओं की प्रार्थना

सम्पूर्ण लोकोंकी रक्षाके लिये ही तूने पृथिवीमें अवतार लिया है ॥  हे देवि! तू प्रसन्न हो। हे शुभे ! तू सम्पूर्ण जगत्का कल्याण कर। जिसने इस सम्पूर्ण जगत्‌को धारण किया है उस प्रभुको तू प्रीतिपूर्वक अपने गर्भमें धारण कर ॥ 

MEGHA PATIDAR
MEGHA PATIDAR

Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

Articles: 300