देवकीजी का गर्भ धारण और श्री जनार्दन का जन्म
देवताओं से स्तुति की जाती हुई देवकी जी ने संसार की रक्षा के कारण भगवान् पुण्डरीकाक्ष को गर्भ में धारण किया ॥ तदनन्तर सम्पूर्ण संसाररूप कमल को विकसित करनेके लिये देवकी रूप पूर्व सन्ध्या में महात्मा अच्युतरूप सूर्यदेव का आविर्भाव हुआ ॥ चन्द्रमा की चाँदनी के समान भगवान् का जन्म-दिन सम्पूर्ण जगत् को आह्लादित करने वाला हुआ और उस दिन सभी दिशाएँ अत्यन्त निर्मल हो गयीं ॥
श्री जनार्दन जन्म के समय की घटनाएँ
श्रीजनार्दन के जन्म लेने पर सन्तजनों को परम सन्तोष हुआ, प्रचण्ड वायु शान्त हो गया तथा नदियाँ अत्यन्त स्वच्छ हो गयीं ॥
समुद्रगण अपने घोष से मनोहर बाजे बजाने लगे, गन्धर्वराज गान करने लगे और अप्सराएँ नाचने लगीं ॥ श्री जनार्दन के प्रकट होने पर आकाशगामी देवगण पृथिवी पर पुष्प बरसाने लगे तथा शान्त हुए यज्ञाग्नि फिर प्रज्वलित हो गये ॥ अर्द्धरात्रि के समय सर्वाधार भगवान् जनार्दन के आविर्भूत होने पर पुष्पवर्षा करते हुए मेघगण मन्द मन्द गर्जना करने लगे ॥
श्री जनार्दन का प्रकट रूप और वसुदेवजी की स्तुति
उन्हें खिले हुए कमलदलकी-सी आभावाले, चतुर्भुज और वक्षःस्थल में श्रीवत्स-चिह्नसहित उत्पन्न हुए देख आनकदुन्दुभि वसुदेव जी स्तुति करने लगे ॥ महामति वसुदेवजी ने प्रसादयुक्त वचनों से भगवान्की स्तुति कर कंस से भयभीत रहने के कारण इस प्रकार निवेदन किया ॥
वसुदेवजी बोले- हे देवदेवेश्वर ! यद्यपि आप [साक्षात् परमेश्वर] प्रकट हुए हैं, तथापि हे देव! मुझपर कृपा करके अब अपने इस शंख-चक्र-गदाधारी दिव्य रूपका उपसंहार कीजिये ॥ हे देव! यह पता लगते ही कि आप मेरे इस गृहमें अवतीर्ण हुए हैं, कंस इसी समय मेरा सर्वनाश कर देगा ॥
देवकी जी का निवेदन
देवकीजी बोलीं- जो अनन्तरूप और अखिल- विश्वस्वरूप हैं, जो गर्भ में स्थित होकर भी अपने शरीर से सम्पूर्ण लोकोंको धारण करते हैं तथा जिन्होंने अपनी मायासे ही बालरूप धारण किया है वे देवदेव हमपर प्रसन्न हों ॥ हे सर्वात्मन्! आप अपने इस चतुर्भुज रूपका उपसंहार कीजिये। भगवन्! यह राक्षसके अंशसे उत्पन्न कंस आपके इस अवतारका वृत्तान्त न जानने पावे ॥
श्रीभगवान् बोले- हे देवि ! पूर्वजन्ममें तूने जो पुत्रकी कामनासे मुझसे [ पुत्ररूपसे उत्पन्न होनेके लिये] प्रार्थना की थी। आज मैंने तेरे गर्भ से जन्म लिया है-इससे तेरी वह कामना पूर्ण हो गयी ॥ ऐसा कहकर भगवान् मौन हो गये तथा वसुदेवजी भी उन्हें उस रात्रिमें ही लेकर बाहर निकले ॥ वसुदेवजीके बाहर जाते समय कारागृहरक्षक और मथुरा के द्वारपाल योगनिद्राके प्रभाव से अचेत हो गये ॥
वसुदेवजी का यमुनाजी पार करना
उस रात्रिके समय वर्षा करते हुए मेघों की जलराशि को अपने फण से रोककर श्रीशेष जी आनकदुन्दुभिके पीछे- पीछे चले ॥ भगवान् विष्णुको ले जाते हुए वसुदेवजी नाना प्रकारके सैकड़ों भँवरों से भरी हुई अत्यन्त गम्भीर यमुनाजीको घुटनोंतक रखकर ही पार कर गये ।। उन्होंने वहाँ यमुनाजीके तटपर ही कंसको कर देनेके लिये आये हुए नन्द आदि वृद्ध गोपोंको भी देखा ।। इसी समय योगनिद्राके प्रभावसे सब मनुष्योंके मोहित हो जानेपर मोहित हुई यशोदाने भी उसी कन्याको जन्म दिया ॥
वसुदेवजी का बालक और कन्या का अदलना
तब अतिशय कान्तिमान् वसुदेवजी भी उस बालक को सुलाकर और कन्याको लेकर तुरन्त यशोदाके शयन- गृहसे चले आये ॥ जब यशोदाने जागने पर देखा कि उसके एक नीलकमलदल के समान श्यामवर्ण पुत्र उत्पन्न हुआ है तो उसे अत्यन्त प्रसन्नता हुई ॥ इधर, वसुदेवजीने कन्या को ले जाकर अपने महल में देवकी के शयनगृह में सुला दिया और पूर्ववत् स्थित हो गये ॥
कन्या का कंस द्वारा पकड़ना
तदनन्तर बालक के रोने का शब्द सुनकर कारागृह रक्षक सहसा उठ खड़े हुए और देवकी के सन्तान उत्पन्न होने का वृत्तान्त कंस को सुना दिया ॥ यह सुनते ही कंसने तुरन्त जाकर देवकी के रुँधे हुए कण्ठ से ‘छोड़, छोड़’-ऐसा कहकर रोकने पर भी उस बालिका को पकड़ लिया और उसे एक शिलापर पटक दिया। उसके पटकते ही वह आकाशमें स्थित हो गयी और उसने शस्त्रयुक्त एक महान् अष्टभुजरूप धारण कर लिया ॥
देवी का आकाशमार्ग से प्रस्थान
तब उसने ऊँचे स्वर से अट्टहास किया और कंससे रोषपूर्वक कहा-‘ अरे कंस! मुझे पटकनेसे तेरा क्या प्रयोजन सिद्ध हुआ? जो तेरा वध करेगा उसने तो [ पहले ही] जन्म ले लिया है; देवताओंके सर्वस्व वे हरि ही तुम्हारे [ कालनेमिरूप] पूर्वजन्ममें भी काल थे। अतः ऐसा जानकर तू शीघ्र ही अपने हितका उपाय कर’ ।। ऐसा कह, वह दिव्य माला और चन्दनादिसे विभूषिता तथा सिद्धगणद्वारा स्तुति की जाती हुई देवी भोजराज कंसके देखते-देखते आकाशमार्ग से चली गयी ॥