116. लक्ष्मीजी की सर्वव्यपकता का वर्णन

 

लक्ष्मीजी का जन्म और महत्व

भृगुके द्वारा ख्यातिने धाता और विधातानामक दो देवताओंको तथा लक्ष्मीजीको जन्म दिया जो भगवान् विष्णुकी पत्नी हुईं । लक्ष्मीजी तो अमृत – मन्थनके समय क्षीर – सागरसे उत्पन्न हुई थीं , फिर आप ऐसा कैसे कहते हैं कि वे भृगुके द्वारा ख्यातिसे उत्पन्न हुईं ।

लक्ष्मीजी की नित्य और सर्वव्यापकता

 भगवान्का कभी संग न छोड़नेवाली जगज्जननी लक्ष्मीजी तो नित्य ही हैं और जिस प्रकार श्रीविष्णुभगवान् सर्वव्यापक हैं वैसे ही ये भी हैं । विष्णु अर्थ हैं और ये वाणी हैं , हरि नियम हैं और ये नीति हैं , भगवान् विष्णु बोध हैं और ये बुद्धि हैं तथा वे धर्म हैं और ये सत्क्रिया हैं ।

भगवान् विष्णु और लक्ष्मीजी के विभिन्न रूप

भगवान् जगत्के स्रष्टा हैं और लक्ष्मीजी सृष्टि हैं , श्रीहरि भूधर ( पर्वत अथवा राजा ) हैं और लक्ष्मीजी भूमि हैं तथा भगवान् सन्तोष हैं और लक्ष्मीजी नित्य तुष्टि हैं । भगवान् काम हैं और लक्ष्मीजी इच्छा हैं , वे यज्ञ हैं और ये दक्षिणा हैं , श्रीजनार्दन पुरोडाश हैं और देवी लक्ष्मीजी आज्याहुति ( घृतकी आहुति ) हैं ।

संपूर्ण जगत में विष्णु-लक्ष्मी का संबंध

 मधुसूदन यजमानगृह हैं और लक्ष्मीजी पत्नीशाला हैं , श्रीहरि यूप हैं और लक्ष्मीजी चिति हैं तथा भगवान् कुशा हैं और लक्ष्मीजी इध्मा हैं । भगवान् सामस्वरूप हैं और श्रीकमलादेवी उद्गीति हैं , जगत्पति भगवान् वासुदेव हुताशन हैं और लक्ष्मीजी स्वाहा हैं ।  भगवान् विष्णु शंकर हैं और श्रीलक्ष्मीजी गौरी हैं तथा श्रीकेशव सूर्य हैं और कमलवासिनी श्रीलक्ष्मीजी उनकी प्रभा हैं । श्रीविष्णु पितृगण हैं और श्रीकमला नित्य पुष्टिदायिनी स्वधा हैं , विष्णु अति विस्तीर्ण सर्वात्मक अवकाश हैं और लक्ष्मीजी स्वर्गलोक हैं । भगवान् श्रीधर चन्द्रमा हैं और श्रीलक्ष्मीजी उनकी अक्षय कान्ति हैं , हरि सर्वगामी वायु हैं और लक्ष्मीजी जगच्चेष्टा ( जगत्की गति ) और धृति ( आधार ) हैं ।

श्रीगोविन्द समुद्र हैं और  लक्ष्मीजी उसकी तरंग भगवान् मधुसूदन देवराज इन्द्र हैं और लक्ष्मीजी इन्द्राणी हैं । चक्रपाणि भगवान् यम हैं और श्रीकमला यमपत्नी धूमोर्णा हैं , देवाधिदेव श्रीविष्णु कुबेर हैं और श्रीलक्ष्मीजी साक्षात् ऋद्धि हैं । श्रीकेशव स्वयं वरुण हैं और महाभागा लक्ष्मीजी गौरी हैं , हे द्विजराज ! श्रीहरि देवसेनापति स्वामिकार्तिकेय हैं और श्रीलक्ष्मीजी देवसेना हैं। हे द्विजोत्तम ! भगवान् गदाधर आश्रय हैं और लक्ष्मीजी शक्ति हैं , भगवान् निमेष हैं और लक्ष्मीजी काष्ठा हैं , वे मुहूर्त हैं और ये कला हैं । सर्वेश्वर सर्वरूप श्रीहरि दीपक हैं और श्रीलक्ष्मीजी ज्योति हैं , श्रीविष्णु वृक्षरूप हैं और जगन्माता श्रीलक्ष्मीजी लता हैं । चक्रगदाधरदेव श्रीविष्णु दिन हैं और लक्ष्मीजी रात्रि हैं।

वरदायक श्रीहरि वर हैं और पद्मनिवासिनी श्रीलक्ष्मीजी वधू हैं । भगवान् नद हैं और श्रीजी नदी हैं , कमलनयन भगवान् ध्वजा हैं और कमलालया लक्ष्मीजी पताका हैं । जगदीश्वर परमात्मा नारायण लोभ हैं और लक्ष्मीजी तृष्णा हैं तथा हे मैत्रेय ! रति और राग भी साक्षात् श्रीलक्ष्मी और गोविन्दरूप ही हैं । अधिक क्या कहा जाय ? संक्षेपमें , यह कहना चाहिये कि देव , तिर्यक् और मनुष्य आदिमें पुरुषवाची भगवान् नहीं है । हरि हैं और स्त्रीवाची श्रीलक्ष्मीजी , इनके परे और कोई नही है।

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