MEGHA PATIDAR

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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

51. भविष्य में होने वाले राजाओं का वर्णन

भविष्य

भविष्य में होने वाले राजाओं का वर्णन  परीक्षित् के वंशज भविष्य में होने वाले राजाओं का वर्णन करता हूँ ॥  इस समय जो परीक्षित् नामक महाराज हैं इनके जनमेजय, श्रुतसेन, उग्रसेन और भीमसेन नामक चार पुत्र होंगे ॥ जनमेजय के…

मृत्यु होने पर शरीर का संस्कार

मृत्यु

मानव जीवन का अंतिम पड़ाव मृत्यु है। शास्त्रों में मृत्यु के उपरांत शरीर के संस्कार के बारे में विशेष निर्देश दिए गए हैं, विशेष रूप से जब यह किसी संन्यासी, यति, या परमहंस जैसे महात्मा का हो। सामान्यतः हम यह…

जीवन मुक्ति: आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग

जीवन मुक्ति

जीवन मुक्ति का अर्थ है जीते जी आत्मज्ञान प्राप्त करके संसार से मुक्ति। भारतीय वेदांत दर्शन में जीवन्मुक्ति को सर्वोच्च अवस्था मानी जाती है, जहां व्यक्ति सांसारिक बंधनों से परे हो जाता है और अद्वैत भाव में स्थित होता है।…

ब्रह्मस्वरूप

ब्रह्मस्वरूप

ब्रह्मस्वरूप सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि । समं पश्यन्नात्मयाजी स्वाराज्यमधिगच्छति ।।1।। पूर्व एकादश अध्याय में वेदरूप श्रुति से प्रतिपादित श्रौताद्वैत का कथन करा। अब द्वादश अध्याय में स्मृति पुराणों से प्रतिपादित स्मार्तकपौराणिकाद्वैत का कथन करते हैं। मनुस्मृति में मनु भगवान् ने…

अद्वैतज्ञान

अद्वैतज्ञान

अद्वैतज्ञान अद्वैतं नावमाश्रित्य जीवन्मुक्तत्वमाप्नुयात् ।।1।। गत अध्याय में यतियों के धर्म कथन से अनन्तर अब एकादश अध्याय में वेद- प्रतिपादित जीव ब्रह्म की एकता रूप अद्वैत का कथन करते हैं। सन्यासोपनिषद् में कहा है कि ब्रह्मात्म स्वरूप ज्ञानरूप नाव को…

धर्म का वर्णन

धर्म

धर्म का वर्णन ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिप्यते शान्तिः ||1|| सप्त ज्ञानभूमिका से अनन्तर अब दशमे अध्याय में यतियों के धर्म निरूपण करते हुए यजुर्वेद की ईशावास्योपनिषद् में वस्तु निर्देशरूप मंगल का बोधक शान्तिपाठरूप मंत्र का अर्थ…

सप्त ज्ञान भूमिका के लक्षण

सप्त ज्ञान

सप्त ज्ञान भूमिका के लक्षण स्थितः किं मृढ एवास्मि प्रेक्षेऽहं शास्त्रसज्जनैः ।। वैराग्यपूर्वमिच्छेति शुभेच्छेत्युच्यते बुधै ।।1।। महोपनिषद् में कहा कि पुरुष पूर्वजन्म के पुण्यपुञ्जप्रभाव से ऐसी इच्छा करता है कि मैं मनुष्य होकर संसार में मूढ प्राणियों के समान क्यों…

उद्दालक

उद्दालक

उद्दालक येनाश्रुतं श्रुतं भवत्यमतं मतमविज्ञातं विज्ञातमिति । कथं नु भगवः स आदेशो भवतीति ।।1।। अब आठवें अध्याय में उद्दालकादि ऋषियों का श्वेतकेतु पुत्रादि के साथ गुरुशिष्य रूप संवाद को कहते हैं। छांदोग्योपनिषद् में कहा है कि गुरु के पास से…

श्रवण आदि का कथन

श्रवण

श्रवण आदि का कथन कार्योपाधिरयं जीवः कारणोपाधिरीश्वरः । कार्यकारणतां हित्वा पूर्णबोधोऽवशिष्यते ।।1।। पूर्वगत अध्याय में विवेक आदि साधनचतुष्टय का कथन करा। अब इस सप्तमें अध्याय में ज्ञान के अतिअन्तरंग साधन रूप श्रवण आदि का कथन करते हैं। जीव ब्रह्म की…