MEGHA PATIDAR

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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

अतिथि पूजन

अतिथि पूजन

अतिथि पूजन अकृते वैश्वदेवेऽपि भिक्षौ च गृहमागते । उद्धत्य वैश्वदेवार्थं भिक्षां दत्त्वा विसर्जयेत् ||1|| पूर्व दशमें अध्याय में षट्कर्म कहे अब एकादश अध्याय में षट्कर्म अन्तर्गत अतिथि पूजन निरूपण करते हैं :- हारीतस्मृति में कहा है कि वैश्वदेव कर्म करने…

11. गृहस्थाश्रम के षट् कर्म

गृहस्थाश्रम के षट् कर्म

गृहस्थाश्रम के षट् कर्म (पाराशर स्मृ. अ. 1-श्लो. 39) संध्या स्नानं जपो होमो देवतानां च पूजनम् । आतिथ्यं वैश्वदेवं च षट् कर्माणि दिने दिने ।।1।। (दोहा) उठ के प्रातः काल में करो संध्या स्नान | गायत्री आदि मंत्र जपो देव…

10. विवाहरूप पाणिग्रहण विधि का कथन

विवाहरूप पाणिग्रहण विधिका कथन

विवाहरूप पाणिग्रहण विधि का कथन अनुकूलामनुवंशां भ्रात्रा दत्तामुपाग्निकाम् । परिक्रम्य यथा न्यायं भायां विन्देद्विजोत्तमः ।।1।। पूर्व अष्ठमें अध्याय के अन्त में जो त्रिवर्णिकों को अग्निहोत्र के लिए अनिआधान कर्म करना कहा है सो विधिपूर्वक विवाहितद्विजों के लिए कहा है। अब…

9. वर्णाश्रम के धर्म

वर्णाश्रम के धर्म

वर्णाश्रम के धर्म (शिवपु. संहिता 5 अ. 16 – श्लो. 24 ) वर्णाश्रमविरुद्धं च कर्म कुर्वन्ति ये नराः । कर्मणा मनसा वाचा निरये तू पतन्ति ते ।।1।। (पूर्व सप्तम अध्याय में श्रुति स्मृति पुराण इतिहासों के प्रमाणों से धर्म के…

8. धर्म के लक्षण

धर्म के लक्षण

धर्म के लक्षण चोदनालक्षणोऽर्थो धर्मः ||1|| पूर्व षष्ठे अध्याय में कहा है कि कृष्णचन्द्रजी अपने आत्म स्वरूप से प्रकट हुए सर्व के कल्याणकारी धर्म को स्थापन करने के लिए राम कृष्ण आदि नाना अवतारों को धारण करते हैं, तो अब…

चौबीस अवतार (24 अवतार)

चौबीस अवतार

मात्स्यं कूर्म च वाराहं नारसिंह च वामनम् । रामं रामं च कृष्णं च बुद्धं कल्किं नमामितान् || नारायणं च नारदं कौमारं नौमि कपिलम् । ऋषभं यज्ञपुरूषं दत्तात्रेयं पृथुं तथा || धान्वन्तरिं च हंसं च मोहिनीं व्यासमेव च । हयग्रीवं हरिं…

6. भक्ति की महिमा

भक्ति की महिमा

भक्ति की महिमा प्रथम अध्याय में शास्त्र महिमा और शास्त्रों का श्रवण साधु महात्माओं से कहा क्योंकि गृहस्थ कैसा भी विद्वान हो तो भी संसार सम्बन्धी ही वार्ता करेगा और साधु महात्मा थोड़ा पढ़ा हुआ भी ईश्वर सम्बन्धी ही वार्ता…

5. चार पुरुषार्थ

चार पुरुषार्थ

चार पुरुषार्थ संसारेऽस्मिन्क्षणार्धोऽपि सत्संगःशेवधिर्नृणाम् । यस्मादवाष्यते सर्व पुरुषार्थचतुष्टयम् ।।1।। गत तृतीय अध्याय में दुर्जनों के लक्षण कहे और दुर्जनों का संग चार पुरुषार्थों का घातक होने से सर्वथा त्याज्य कहा, तब चार पुरुषार्थों की प्राप्ति के लिए पुरुष को किसका…

4. दुर्जनों के लक्षण

दुर्जनों के लक्षण

दुर्जनों के लक्षण (माघ. सर्ग – 16- श्लो. 23-29) परितप्यत एव नोत्तमः परितप्तोऽप्यपर सुसंवृत्तिः । परवृद्धिभिराहितव्यथः स्फुटनिर्भिन्नदुराशयोऽधमः ||1|| सहजान्धद्दशः स्वदुर्नये परदोषेक्षणे दिव्यचक्षुषः । स्वगुणोच्चगिरो मुनिव्रताः परवर्णग्रहणेष्वसाधवः ||2|| द्वितीय अध्याय में साधु महिमा और साधु लक्षण कहे, अब दुर्जनों के लक्षण…