MEGHA PATIDAR

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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

74. श्राद्धकर्म में विहित और अविहित वस्तुओं का विचार

श्राद्धकर्म

श्राद्धकर्म में तृप्तिदायक पदार्थ हवि , मत्स्य , शशक ( खरगोश ) , नकुल , शूकर , छाग , कस्तूरिया मृग , कृष्ण मृग , गवय ( वनगाय ) और मेषके मांसोंसे तथा गव्य ( गौके दूध – घी आदि…

75. श्राद्ध विधि

श्राद्ध

श्राद्धकर्म में योग्य ब्राह्मण श्राद्धकाल में जैसे गुणशील ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये वह बतलाता हूँ , सुनो । त्रिणाचिकेत १ , त्रिमधुर , त्रिसुपर्ण ३ , छहों वेदांगों के जानने वाले , वेदवेत्ता , श्रोत्रिय , योगी और ज्येष्ठसामग…

76. श्राद्ध – प्रशंसा , श्राद्ध में पात्रापात्र का विचार

श्राद्ध

श्राद्धकर्म के महत्त्व और विधि श्रद्धासहित श्राद्धकर्म करनेसे मनुष्य ब्रह्मा , इन्द्र , रुद्र , अश्विनीकुमार , सूर्य , अग्नि , वसुगण , मरुद्गण , विश्वेदेव , पितृगण , पक्षी , मनुष्य , पशु , सरीसृप , ऋषिगण तथा भूतगण…

77. आभ्युदयिक श्राद्ध , प्रेतकर्म तथा श्राद्धादि का विचार

आभ्युदयिक श्राद्ध

पुत्र के जन्म के समय के कर्म पुत्र के उत्पन्न होनेपर पिताको सचैल ( वस्त्रोंसहित ) स्नान करना चाहिये । उसके पश्चात् जातकर्म – संस्कार और आभ्युदयिक श्राद्ध करने चाहिये ॥ फिर तन्मयभावसे अनन्यचित्त होकर देवता और पितृगणके लिये क्रमशः…

78. गृहस्थसम्बन्धी सदाचार का वर्णन

गृहस्थसम्बन्धी

गृहस्थसम्बन्धी नित्य कर्तव्य और पूजा-पाठ गृहस्थ पुरुष को नित्यप्रति देवता , गौ , ब्राह्मण , सिद्धगण , वयोवृद्ध तथा आचार्यकी पूजा करनी चाहिये और दोनों समय सन्ध्यावन्दन तथा अग्निहोत्रादि कर्म करने चाहिये ॥ गृहस्थ पुरुष सदा ही संयमपूर्वक रहकर बिना…

79. गृहस्थसम्बन्धी सदाचार का वर्णन

गृहस्थसम्बन्धी

 गृहस्थसम्बन्धी सदाचारी पुरुष और उनका जीवन सदाचारी पुरुष इहलोक और परलोक दोनों ही को जीत लेता है ॥ ‘ सत् ‘ शब्दका अर्थ साधु है , और साधु वही है जो दोषरहित हो । उस साधु पुरुष का जो आचरण…

80. जातकर्म , नामकरण और विवाह – संस्कार की विधि

जातकर्म

जातकर्म और श्राद्ध पुत्र के उत्पन्न होने पर पिता को चाहिये कि उसके जातकर्म आदि सकल क्रियाकाण्ड और आभ्युदयिक श्राद्ध करे ॥ पूर्वाभिमुख बिठाकर ब्राह्मणोंको भोजन करावे तथा द्विजातियोंके व्यवहारके अनुसार देव और पितृपक्षकी तृप्तिके लिये श्राद्ध करे ॥ प्रसन्नतापूर्वक…

81. ब्रह्मचर्य आदि आश्रमोंका वर्णन

ब्रह्मचर्य

ब्रह्मचर्य आश्रम बालकको चाहिये कि उपनयन संस्कारके अनन्तर वेदाध्ययनमें तत्पर होकर ब्रह्मचर्यका अवलम्बन कर , सावधानतापूर्वक गुरुगृहमें निवास करे ॥ वहाँ रहकर उसे शौच और आचार – व्रतका -शुश्रूषा करनी चाहिये तथा पालन करते हुए गुरुकी सेवा व्रतादिका आचरण करते…

82. भगवान विष्णु आराधना और चातुर्वर्ण्य – धर्मका वर्णन

विष्णु

भगवान विष्णु की आराधना और उसके फल विष्णु की आराधना से प्राप्त फल भगवान् विष्णुकी आराधना करनेसे मनुष्य भूमण्डल – सम्बन्धी समस्त मनोरथ , स्वर्ग , स्वर्गसे भी श्रेष्ठ ब्रह्मपद और परम निर्वाण – पद भी प्राप्त कर लेता है…

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