MEGHA PATIDAR

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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

दशामाता व्रत कथा

दशामाता व्रत कथा विधि

दशामाता व्रत विधि: यह व्रत घर की दशा के लिए किया जाता है। यह व्रत चैत्र मास के प्रारंभ की दशमी को किया जाता है। सुहागन औरतें इस दिन ब्राह्मण से डोरा लेकर छोड़ती है। एक समय भोजन करती हैं…

सहज मार्ग

सहज मार्ग

हर मनुष्य प्रवृत्ति, स्वभाव, रुचि और व्यवहार के आधार पर दूसरे मनुष्य से भिन्न है। मनुष्य की प्रत्येक प्रवृत्ति किसी एक जन्म का अभ्यास नहीं है, अपितु यह उसके अतीत के कई जन्मों की कर्मसमष्टि का परिणाम है। अनेक जन्मों…

सबसे दुर्लभ शरीर

सबसे दुर्लभ शरीर

सबसे दुर्लभ शरीर मनष्यों का है। यह शरीर चौरासी लाख योनियों को पार करने के बाद प्राप्त होता है। मनुष्य के समान कोई शरीर नहीं है। मनुष्य शरीर की विशेषता चर- अचर सभी जीव इसकी उसकी याचना करते हैं। यह…

दान और यज्ञ का महत्त्वपूर्ण स्थान

दान और यज्ञ

दान और यज्ञ का भारतीय संस्कृति में अत्यधिक महत्त्व है। दान को धर्म और कर्तव्य का एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है, जो समाज में समानता और सद्भावना को बढ़ावा देता है। यज्ञ, जो कि एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, न…

दान देने का सर्वश्रेष्ठ समय

दान

दान देने का सर्वश्रेष्ठ समय वैसे तो शुभ कार्य करने के लिए हर समय शुभ ही होता है। किंतु शिवपुराण के अनुसार दान के कुछ सर्वश्रेष्ठ समय है। सूर्य-संक्रांति सूर्य-संक्रान्ति के दिन किया हुआ सत्कर्म, पूर्ववोक्त शुद्ध दिन की अपेक्षा…

1. भागवतानन्दिनी

भागवतानन्दिनी 1. अनिवार्यता पातालमाविशतु यातु सुरेन्द्रलोकमा- रोहतु क्षितिधराधिपति च मेरुम् । मन्त्रौषध प्रहरणैश्चकरोतु रक्षां- यद्भावि तद्भवति नान विचारहेतुः ॥१॥ अर्थ- पातालमाविशत्वित-चाहे पाताल में जाकर छिप जावो, चाहे इन्द्रपुरी में चले जाओ, चाहे सुमेरु पर्वत पर चढ जावो, और चाहे अपनी…

2. हितैषिण और मनीषिण

हितैषिण और मनीषिण के बीच अंतर हितैषिणः सन्ति न ते मनीषिणो मनीषिणः सन्ति न ते हितैषिणः । सुहृच्च विद्वानपि दुर्लभो जनो यथौषधं स्वादु च रोगहारि च ॥१॥ अर्थ – हितैषिण इति हित चिन्तन करने वाले विद्वान नहीं मिलते और जो…

3. क्रोध, मोह, और ज्ञान

क्रोध

1. क्रोध, मोह, और ज्ञान नास्ति क्रोध समौ व्याधिर्नास्ति मोह समो रिपुः । नास्ति क्रोध समो वह्निर्नास्ति झान समं सुखम् ।१। अर्थ – नास्तीति काम के समान रोग, मोह के समान शत्रु, क्रोध तुल्य अग्नि और ज्ञान के समान अन्य…

4. पापों का वर्णन

पापों का वर्णन

पापों का वर्णन 1. पापों का वर्णन और उनके परिणाम द्यूतं च मद्यपिशितं च वेश्या पापद्धचौर्य परदार सेवा एतानि सप्तव्यसनानि लोके, घोरातिघोरं नरकं नयंति ॥१॥ अर्थ —जुआ, मद्य [ शराब] ,मांस, वेश्या, हिसा, चोरी और पर स्त्री सेवा यह सात…