Deepika Patidar

Deepika Patidar

Deepika patidar is a dedicated blogger who explores Hindu mythology through ancient texts, bringing timeless stories and spiritual wisdom to life with passion and authenticity.

कार्य का आनंद

कार्य

कार्य और जीवन के प्रति दृष्टिकोण प्रत्येक व्यक्ति का कार्य करने, सोचने-समझने का तरीका अलग होता है। कुछ लोग तुरत कदम उठा लेते हैं, तो कुछ लोग बहुत सोच-विचार के उपरांत आगे बढ़ते हैं। किस परिस्थिति में हम कैसी प्रतिक्रिया…

जीवन में दुखों से मुक्ति

जीवन

जीवन में सुख और दुख का समीकरण जीवन सुख और दुख दोनों का मिश्रण है, परंतु सुख की अवस्था में मनुष्य उसके मद में उन्मुक्त रहत्ता है और दुख की स्थिति में ही विश्लेषण के लिए उन्मुख होता है। दुख…

ईश्वर का महत्व

ईश्वर

आम सोच है कि मेहनत से ही सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। कुछ यह भी कहते हैं कि ईश्वर की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है। अब प्रश्न उठता है कि तब हम क्या करते हैं?…

जीवन एक यात्रा – युवा मन

जीवन

जीवन यदि एक यात्रा है तो इसमें नित नए पडावों से साक्षात्कार होना स्वाभाविक है। नई परिस्थितियां नए संघर्षों को आयात करती हैं। जो मनुष्य नवीन संघर्षों के समक्ष आसानी से समर्पण नहीं करते, वे प्रतिदिन कुछ सीखकर अपना एक…

मानवता का कर्तव्य

मानवता

प्रत्येक मानव का कर्तव्य है कि वह दूसरे मानव की रक्षा करे। मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है। मानव विकास प्राथमिक कर्मयोग है। विश्व में अशांति आज विश्व मैं हाहाकार मचा है। मानव ही मानव के रक्त का प्यासा बन…

जीवन का वास्तविक अर्थ

जीवन

हमारे अमूल्य जीवन का मूल्य ब्रह्मांड में उपलब्ध किसी भी मूल्यवान वस्तु से नहीं आंका जा सकता। जीवन वास्तव में समय की पटरी पर चलने वाली एक ऐसी गाड़ी है, जिसमें गंतव्य तक पहुंचने का आनद भी है तो कहीं…

क्रोध और मौन

क्रोध और मौन

अज्ञान और ज्ञान क्रोध और ईर्ष्या अज्ञान के कारक हैं, जबकि मौन और तप ज्ञान के। ज्ञानी और अज्ञानी व्यक्ति का व्यवहार ज्ञानी व्यक्ति दूसरे को सुख देकर स्वयं आनंदित होता है। वहीं अज्ञानी व्यक्ति दूसरों को सता कर, पीड़ा…

संत और असंत

संत

संतों के मिलने के समान जगत् में सुख नहीं है। मन, वचन और शरीर से परोपकार करना, यह संतों का सहज स्वभाव है। संत दूसरों की भूलाई के लिए दुःख सहते हैं और असंत दूसरों को दुःख पहुँचाने के लिए…

विराट्‌ भक्तिहीन पुरुषों की गति

विराट्‌

विराट्‌ पुरुष से उत्पन्न वर्णों की उत्पत्ति विराट्‌ पुरुष के मुख से सत्त्वप्रधान ब्राह्मण, भुजाओं से सत्त्व- रजप्रधान क्षत्रिय, जांघो से रज- तमप्रधान वैश्य और चरणों से तमः प्रधान शूद्र की उत्पत्ति हुई है। आश्रमों की उत्पत्ति उन्हीं की जांघों…