Bhisma Ashtmi 2025 : भीष्म अष्टमी 2025:भीष्म अष्टमी का क्या महत्व है?

Advertisements

Bhisma Ashtmi 2025 भीष्म अष्टमी हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण तिथि है, जिसे महाभारत के महान योद्धा भीष्म पितामह की स्मृति में मनाया जाता है। यह दिन माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है। मान्यता है कि इसी दिन गंगा पुत्र भीष्म ने अपनी इच्छा मृत्यु के वरदान के कारण स्वेच्छा से शरीर त्याग कर परमधाम की यात्रा की थी।

भीष्म अष्टमी और पितृ दोष निवारण

जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष होता है, उनके लिए भीष्म अष्टमी का दिन बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन गंगा में स्नान करके पितरों को तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

  1. भारत में भीष्म अष्टमी के प्रमुख उत्सव और आयोजन
  2. गंगासागर में स्नान और तर्पण
  3. वाराणसी और प्रयागराज में विशेष पूजा आयोजन
  4. मंदिरों में धार्मिक प्रवचन और यज्ञ

भीष्म अष्टमी की पौराणिक कथा

भीष्म पितामह का जन्म देवव्रत के रूप में हुआ था। वे महाराज शांतनु और देवी गंगा के पुत्र थे। उनकी माता गंगा ने उन्हें कई वर्षों तक स्वयं ही पाला और जब वे योग्य हो गए, तब उन्हें उनके पिता के पास छोड़ दिया।

देवव्रत को शिक्षा देने के लिए महान ऋषियों को नियुक्त किया गया। उन्होंने वेद, शास्त्र, धर्म, नीति और युद्धकला में महारत हासिल की। विशेष रूप से, उन्होंने भगवान परशुराम से शस्त्र विद्या प्राप्त की और अपने समय के सबसे शक्तिशाली योद्धा बने।

भीष्म प्रतिज्ञा और देवव्रत का “भीष्म” बनना

एक समय महाराज शांतनु को एक मछवाया कन्या सत्यवती से प्रेम हो गया, लेकिन उसके पिता ने यह शर्त रखी कि सत्यवती के पुत्र ही हस्तिनापुर के सिंहासन के उत्तराधिकारी बनेंगे। महाराज शांतनु इस शर्त को स्वीकार नहीं कर सके, लेकिन इस प्रेम के कारण वे दुखी रहने लगे।

जब देवव्रत को अपने पिता के दुःख का कारण पता चला, तो उन्होंने स्वयं सत्यवती के पिता से वचन दिया कि वे सिंहासन का त्याग करेंगे और सत्यवती के पुत्र को राजा बनाने में सहायक होंगे।

इसके बाद, सत्यवती के पिता ने यह आशंका जताई कि यदि देवव्रत के पुत्र हुए, तो वे सिंहासन का दावा कर सकते हैं। यह सुनकर देवव्रत ने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया। उनकी इस कठोर प्रतिज्ञा से देवता भी अचंभित हो गए और उन्हें “भीष्म” की उपाधि दी।

महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह की भूमिका

भीष्म पितामह ने अपनी पूरी निष्ठा के साथ हस्तिनापुर की सेवा की और हस्तिनापुर के राजाओं के सलाहकार बने। जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत युद्ध हुआ, तो उन्होंने हस्तिनापुर के प्रति अपनी निष्ठा के कारण कौरवों का साथ दिया।

युद्ध के दौरान, वे अजेय योद्धा के रूप में लड़े और पांडवों की सेना को भारी क्षति पहुंचाई। श्रीकृष्ण स्वयं भीष्म को रोकने के लिए सुदर्शन चक्र उठाने के लिए विवश हो गए, लेकिन अर्जुन ने उन्हें रोका।

Advertisements

भीष्म पितामह की बाणों की शय्या

महाभारत युद्ध के दसवें दिन, श्रीकृष्ण ने पांडवों को सुझाव दिया कि वे शिखंडी को आगे रखकर भीष्म पितामह पर आक्रमण करें। शिखंडी, जो पिछले जन्म में अम्बा थी, को भीष्म एक नारीस्वरूप योद्धा मानते थे और उस पर शस्त्र नहीं उठाना चाहते थे।

इसलिए जब शिखंडी के आड़ में अर्जुन ने भीष्म पर तीर चलाए, तो वे बाणों की शय्या पर गिर पड़े। लेकिन इच्छा मृत्यु के वरदान के कारण उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे और सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने की प्रतीक्षा की।

भीष्म पितामह का उत्तरायण में देह त्याग

भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शय्या पर लेटे रहे। जब सूर्य उत्तरायण में प्रवेश कर गया, तब उन्होंने श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर और अन्य पांडवों को धर्म, नीति, राज्य प्रशासन और जीवन के सिद्धांतों पर उपदेश दिया।

इसके बाद, उन्होंने माघ शुक्ल अष्टमी के दिन “ॐ नारायणाय नमः” कहते हुए अपने प्राण त्याग दिए। यह दिन ही भीष्म अष्टमी के रूप में मनाया जाता है।

भीष्म अष्टमी का धार्मिक महत्व

भीष्म अष्टमी को पितरों के मोक्ष के लिए विशेष माना जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने, श्राद्ध करने और तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।

इस दिन किए जाने वाले प्रमुख अनुष्ठान:

  1. गंगा स्नान: मोक्ष प्राप्ति के लिए गंगा, यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान किया जाता है।
  2. पितृ तर्पण और श्राद्ध: पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण और श्राद्ध किया जाता है।
  3. व्रत और उपवास: भीष्म पितामह के सम्मान में लोग व्रत रखते हैं और उनका ध्यान करते हैं।
  4. दान-पुण्य: ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान दिया जाता है।

निष्कर्ष

भीष्म अष्टमी का दिन त्याग, कर्तव्य और धर्मनिष्ठा की प्रेरणा देता है। यह दिन केवल भीष्म पितामह की स्मृति का नहीं, बल्कि पितरों की शांति और मोक्ष प्राप्ति का भी विशेष दिन है।

इस दिन श्रद्धा और भक्ति से किए गए अनुष्ठानों से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और पितरों की कृपा प्राप्त होती है।

READ ANOTHER POST- महाकुंभ प्रयागराज 2025: आस्था और संस्कृति का महासंगम

FAQs-

भीष्म अष्टमी कब मनाई जाती है?

भीष्म अष्टमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है।

भीष्म अष्टमी पर कौन से अनुष्ठान किए जाते हैं?

इस दिन गंगा स्नान, पितृ तर्पण, दान-पुण्य, और व्रत रखा जाता है।

क्या भीष्म अष्टमी का संबंध पितृ दोष से है?

हाँ, इस दिन किए गए श्राद्ध और तर्पण से पितृ दोष की शांति होती है।

भीष्म अष्टमी पर गंगा स्नान क्यों महत्वपूर्ण है?

गंगा स्नान करने से पापों का नाश होता है और पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।

क्या महिलाएँ भीष्म अष्टमी पर व्रत रख सकती हैं?

हाँ, महिलाएँ भी इस दिन उपवास और पूजा कर सकती हैं।

भीष्म अष्टमी पर कौन-से मंत्र का जाप करें?

इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “भीष्म स्तोत्र” का पाठ करना शुभ होता है।

Advertisements
Deepika Patidar
Deepika Patidar

Deepika patidar is a dedicated blogger who explores Hindu mythology through ancient texts, bringing timeless stories and spiritual wisdom to life with passion and authenticity.

Articles: 142
error: Content is protected !!