नित्य पठनीय पाँच श्लोक (Nitya pathniya panch shlok)
भगवद्गीता, सनातन धर्म का पवित्र ग्रंथ, जीवन जीने की कला और आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्रदान करता है। यहाँ हम भगवद्गीता के नित्य पठनीय पाँच श्लोक का वर्णन कर रहे हैं, जो आपकी दैनिक साधना और जीवन की चुनौतियों को संतुलित करने में सहायक हैं।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकीपरमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥
वसुदेव के पुत्र, कंस और चाणूर के संहारक, देवकी के परम आनंदस्वरूप और जगतगुरु भगवान श्रीकृष्ण को नमन करता हूँ।
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ।।
मैं अजन्मा और अविनाशी-स्वरूप होते हुए भी तथा सम्पूर्ण प्राणियोंका ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृतिको अधीन करके अपनी योगमायासे प्रकट होता हूँ।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
हे भरतवंशी अर्जुन ! जब-जब धर्मकी हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने-आपको साकाररूपसे प्रकट करता हूँ।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
साधुओं (भक्तों) की रक्षा करनेके लिये, पापकर्म करनेवालोंका विनाश करनेके लिये और धर्मकी भलीभाँति स्थापना करनेके लिये मैं युग-युगमें प्रकट हुआ करता हूँ।
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ।
हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य हैं। इस प्रकार (मेरे जन्म और कर्मको) जो मनुष्य तत्त्वसे जान लेता है अर्थात् दृढ़तापूर्वक मान लेता है, वह शरीरका त्याग करके पुनर्जन्मको प्राप्त नहीं होता, प्रत्युत मुझे प्राप्त होता है।
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः ।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ।।
राग, भय और क्रोधसे सर्वथा रहित, मुझमें तल्लीन, मेरे ही आश्रित तथा ज्ञानरूप तपसे पवित्र हुए बहुत-से भक्त मेरे स्वरूपको प्राप्त हो चुके हैं।
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