Nitya stuti (नित्य स्तुति):- दैनिक प्रार्थना और भगवान की स्तुति के पवित्र श्लोक

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Nitya stuti (नित्य स्तुति)

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् |
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥

गजके आकारके समान बदनवाले, भूतगणोंसे सेवित कपित्थ और जम्बूके फलको भक्षण करनेवाले, उमा (पार्वती) के पुत्र, समस्त शोकोंको दूर करनेवाले, सम्पूर्ण विघ्नोंको नष्ट करनेवाले ! मंगल देनेवाले, सिद्धिदाता श्रीगणेशजी महाराजके पवित्र चरणकमलोंमें नमस्कार करता हूँ।

कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः ।
यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम् ॥

कायरतारूप दोषसे तिरस्कृत स्वभाववाला और धर्मके विषयमें मोहित अन्तःकरणवाला मैं आपसे पूछता हूँ कि जो निश्चित कल्याण करनेवाली हो, वह बात मेरे लिये कहिये। मैं आपका शिष्य हूँ। आपके शरण हुए मुझे शिक्षा दीजिये।

कविं पुराणमनुशासितार- मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः |
सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप- मादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ॥

जो व्यक्ति कवि (सर्वज्ञ), पुराण (प्राचीन और सनातन), अनुशासक (समस्त जगत को नियमों से संचालित करने वाले), अत्यंत सूक्ष्म (अणु से भी छोटा) और समस्त प्राणियों का धारण-पोषण करने वाले भगवान का ध्यान करता है, जो अद्भुत और अगम्य रूप वाले हैं, सूर्य के समान तेजस्वी हैं और अज्ञान रूपी अंधकार से परे हैं।

अमी हि त्वां सुरसङ्घा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति ।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्घाः स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः ॥

वे ही देवताओंके समुदाय आपमें प्रविष्ट हो रहे हैं। उनमेंसे कई तो भयभीत होकर हाथ जोड़े हुए आपके नामों और गुणोंका कीर्तन कर रहे हैं। महर्षियों और सिद्धोंके समुदाय ‘कल्याण हो ! मङ्गल हो!’ ऐसा कहकर उत्तम उत्तम स्तोत्रोंके द्वारा आपकी स्तुति कर रहे हैं।

रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या- विश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा- वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ॥

जो ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, आठ वसु, बारह साध्यगण, दस विश्वेदेव और दो अश्विनीकुमार तथा उनचास मरुद्गण, सात पितृगण तथा गन्धर्व, यक्ष, असुर और सिद्धोंके समुदाय हैं, (वे) सभी चकित होकर आपको देख रहे हैं।

वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्क: प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च ।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्त्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ॥

आप ही वायु, यमराज, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, दक्ष आदि प्रजापति और प्रपितामह (ब्रह्माजीके भी पिता) हैं। आपको हजारों बार नमस्कार हो ! नमस्कार हो ! और फिर भी आपको बार-बार नमस्कार हो ! नमस्कार हो !!

नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व ।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः ॥

हे सर्वस्वरूप ! आपको आगेसे भी नमस्कार हो और पीछेसे भी नमस्कार हो! आपको सब ओरसे (दसों दिशाओंसे) ही नमस्कार हो! हे अनन्तवीर्य ! असीम पराक्रमवाले आपने सबको (एक देशमें) समेट रखा है; अतः सब कुछ आप ही हैं।

सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं- हे कृष्ण हे यादव हे सखेति ।
अजानता महिमानं तवेदं- मया प्रमादात्प्रणयेन वापि ॥

आपकी इस महिमाको न जानते हुए ‘मेरे सखा हैं’ ऐसा भी मानकर मैंने प्रमादसे अथवा प्रेमसे भी हठपूर्वक (बिना सोचे-समझे) ‘हे कृष्ण ! हे यादव ! हे सखे !’ इस प्रकार जो कुछ कहा है|

यच्चावहासार्थमसत्कृतोऽसि विहारशय्यासनभोजनेषु
एकोऽथवाप्यच्युत तत्समक्षं- तत्क्षामये त्वामहमप्रमेयम् ।।

और हे अच्युत ! हँसी-दिल्लगीमें, चलते-फिरते, सोते- जागते, उठते-बैठते, खाते-पीते समय अकेले अथवा उन (सखाओं, कुटुम्बियों आदि) के सामने (मेरे द्वारा आपका) जो कुछ तिरस्कार (अपमान) किया गया है, हे अप्रमेयस्वरूप वह सब आपसे मैं क्षमा करवाता हूँ अर्थात् आपसे क्षमा माँगता हूँ।।

पितासि लोकस्य चराचरस्यत्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान् ।
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः कुतोऽन्यो- लोकत्रयेऽप्यप्रतिमप्रभाव॥

आप ही इस चराचर संसारके पिता हैं, आप ही पूजनीय हैं और आप ही गुरुओंके महान् गुरु हैं। हे अनन्त प्रभावशाली भगवन् ! इस त्रिलोकीमें आपके समान भी दूसरा कोई नहीं है, फिर अधिक तो हो ही कैसे सकता है।

तस्मात्प्रणम्य प्रणिधाय कायं प्रसादये त्वामहमीशमीड्यम् ।
पितेव पुत्रस्य सखेव सख्युः प्रियः प्रियायार्हसि देव सोढुम् ॥

इसलिये स्तुति करनेयोग्य आप ईश्वरको मैं शरीरसे लम्बा पड़कर, प्रणाम करके प्रसन्न करना चाहता हूँ। पिता जैसे पुत्रका, मित्र जैसे मित्रका और पति जैसे पत्नीका (अपमान सह लेता है), ऐसे ही (आप मेरे द्वारा किया गया अपमान) सहनेमें अर्थात् क्षमा करनेमें समर्थ हैं।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

हे प्रभो ! आप ही माता और आप ही पिता हैं, आप ही बन्धु और आप ही सखा हैं, आप ही विद्या और आप ही धन हैं; हे देवोंके देव! आप ही मेरे सर्वस्व हैं।

पञ्चामृत

हे नाथ! हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं।

१. हम भगवान्के ही हैं।

२. हम जहाँ भी रहते हैं, भगवान्‌के ही दरबारमें रहते हैं।

३. हम जो भी शुभ काम करते हैं, भगवान्‌का ही काम करते हैं।

४. शुद्ध, सात्त्विक जो भी पाते हैं, भगवान्‌का ही प्रसाद पाते हैं।

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५. भगवान्‌के दिये प्रसादसे भगवान्‌के ही जनोंकी सेवा करते हैं।

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FAQs

नित्य स्तुति क्या है?

नित्य स्तुति भगवान की दैनिक पूजा और प्रार्थना का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसमें भक्त हर दिन भगवान के प्रति अपनी भक्ति और आस्था व्यक्त करते हैं। इसमें विभिन्न श्लोकों और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।

नित्य स्तुति करने के लाभ क्या हैं?

नित्य स्तुति करने से आत्मिक शांति, मानसिक संतुलन और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। यह व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा से भरता है और जीवन में कठिनाइयों को पार करने की शक्ति प्रदान करता है।

नित्य स्तुति के कौन-कौन से श्लोक होते हैं?

नित्य स्तुति में विभिन्न श्लोक होते हैं, जिनमें प्रमुख भगवान के मंत्र, स्तोत्र और प्रार्थनाएँ शामिल हैं। इनमें से कुछ प्रसिद्ध श्लोकों में “श्री विष्णु सहस्रनाम”, “दिव्य महात्म्य” आदि आते हैं।

क्या नित्य स्तुति का कोई विशेष समय होता है?

नित्य स्तुति को प्रात:काल या संध्याकाल में किया जाता है। यह समय भक्त की मानसिक शांति के लिए सर्वोत्तम माना जाता है, लेकिन इसे किसी भी समय किया जा सकता है।

क्या नित्य स्तुति करने के लिए किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता होती है?

नित्य स्तुति के लिए विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि, साफ-सुथरे स्थान पर ध्यान केंद्रित करके और भगवान के चित्र के सामने शांति से बैठकर इसे करना अधिक प्रभावी होता है।

क्या नित्य स्तुति केवल हिंदू धर्म के अनुयायी करते हैं?

नहीं, नित्य स्तुति सभी धर्मों के अनुयायी अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार कर सकते हैं। यह भक्ति का एक रूप है, जो व्यक्ति को आत्मिक शांति और सच्चाई की ओर मार्गदर्शन करता है।


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Megha patidar is a passionate website designer and blogger who is dedicated to Hindu mythology, drawing insights from sacred texts like the Vedas and Puranas, and making ancient wisdom accessible and engaging for all.

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