Purnabrahma Stotram

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Purnabrahma Stotram, “पूर्णब्रह्म स्तोत्रम्” एक अत्यंत भक्तिपूर्ण और भावपूर्ण स्तुति है, जिसे भक्त श्री कृष्णदास जी द्वारा रचित किया गया है। यह स्तोत्र भगवान जगन्नाथ स्वामी की महिमा, सौंदर्य, दिव्यता, और उनके ब्रह्मरूप का सुंदर वर्णन करता है।

इस स्तोत्र में कुल 9 श्लोक हैं, जो भगवान जगन्नाथ के:

  • दिव्य स्वरूप,
  • नीलवर्णी तेज,
  • कृपालु स्वभाव,
  • अद्भुत लीलाओं,
  • दशावतार रूपों,
  • राधा-कृष्ण स्वरूप,
  • भक्तवत्सलता,
  • और पूर्ण ब्रह्म के रूप में स्थिति

को अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ प्रस्तुत करते हैं।

यह स्तोत्र हमें यह स्मरण कराता है कि भगवान जगन्नाथ केवल मूर्ति नहीं, अपितु संपूर्ण ब्रह्माण्ड के आधार, भक्तों के जीवन का सार और सच्चे प्रेम के प्रति उत्तरदाता हैं।

अंत में रचयिता कृष्णदास यह विनती करते हैं कि प्रभु उनकी भावनाओं को स्वीकार करें और उन्हें सदा के लिए अपना दास बना लें।

पूर्णब्रह्म स्तोत्रम्

पूर्णचन्द्रमुखं निलेन्दु रूपम्
उद्भाषितं देवं दिव्यं स्वरूपम्
पूर्णं त्वं स्वर्णं त्वं वर्णं त्वं देवम्
पिता माता बंधु त्वमेव सर्वम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ १ ॥

अर्थ:
जिनका मुख पूर्ण चंद्रमा के समान है, जो नीलवर्णी और चंद्र जैसे शांत हैं,
जो दिव्य तेज से प्रकाशित हैं, जो संपूर्ण हैं, स्वर्ण जैसे कान्तिमान हैं,
जो मेरे लिए पिता, माता, बंधु, सब कुछ हैं—
ऐसे भक्तों के प्रेम को स्वीकार करने वाले प्रभु जगन्नाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ।

कुंचितकेशं च संचितवेशम्
वर्तुलस्थूलनयनं ममेशम्
पिनाकनीनाका नयनकोशम्
आकृष्ट ओष्ठं च उत्कृष्ट श्वासम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ २ ॥

अर्थ:
जिनके बाल घुंघराले हैं, वस्त्र सुंदर ढंग से धारण किए हुए हैं,
जिनकी बड़ी और गोल नेत्र हैं, जो मेरे ईश्वर हैं,
जिनकी आँखें धनुष के समान लंबी हैं, होंठ आकर्षक हैं,
और श्वास गहराई लिए हुए है—
ऐसे जगन्नाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ।

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नीलाचले चंचलया सहितम्
आदिदेव निश्चलानंदे स्थितम्
आनन्दकन्दं विश्वविन्दुचंद्रम्
नंदनन्दनं त्वम् इन्द्रस्य इन्द्रम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ३ ॥

अर्थ:
जो नीलाचल (पुरी) में लक्ष्मी जी के साथ विराजमान हैं,
जो आदिदेव हैं और अचल आनन्द में स्थित हैं,
जो आनन्द के मूल हैं, विश्व के केंद्र और चंद्र के समान शांत हैं,
जो नंदनंदन हैं और इन्द्रों के भी इन्द्र हैं—
ऐसे जगन्नाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ।

सृष्टि स्थिति प्रलय सर्वमूळम्
सूक्ष्मातिसुक्ष्मं त्वं स्थूलातिस्थूलम्
कांतिमयानन्तम् अन्तिमप्रान्तम्
प्रशांतकुन्तळं ते मूर्त्तिमंतम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ४ ॥

अर्थ:
जो सृष्टि, स्थिति और प्रलय के मूल कारण हैं,
जो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और स्थूल से भी स्थूल हैं,
जो अनंत प्रकाशमय हैं, अंतिम सीमा हैं,
जिनके बाल शांत भाव में लहराते हैं और जो मूर्तिमान हैं—
ऐसे जगन्नाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ।

यज्ञ तप वेद ज्ञानात् अतीतम्
भावप्रेमछंदे सदावशित्वम्
शुद्धात् शुध्दं त्वं च पूर्णात् पूर्णम्
कृष्णमेघतुल्यम् अमूल्यवर्णम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ५ ॥

अर्थ:
जो यज्ञ, तप, वेद और ज्ञान से भी परे हैं,
जो भाव और प्रेम के छंद में सदैव वशीभूत रहते हैं,
जो शुद्धता के भी परे हैं, पूर्णता के भी पार हैं,
जो कृष्ण मेघ के समान गहरे और अमूल्य वर्ण वाले हैं—
ऐसे जगन्नाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ।

विश्वप्रकाशं सर्वक्लेशनाशम्
मन बुद्धि प्राण श्वासप्रश्वासम्
मत्स्य कूर्म नृसिंह वामनः त्वम्
वराह राम अनंत अस्तित्वम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ६ ॥

अर्थ:
जो सम्पूर्ण सृष्टि को प्रकाश देते हैं और सभी दुखों का नाश करते हैं,
जो मन, बुद्धि, प्राण और श्वास के भी नियंत्रण में हैं,
जो मत्स्य, कूर्म, नृसिंह, वामन,
वराह, राम और अनंत रूपों में प्रकट हुए—
ऐसे जगन्नाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ।

ध्रुवस्य विष्णु त्वं भक्तस्य प्राणम्
राधापति देव हे आर्त्तत्राणम्
सर्व ज्ञान सारं लोक आधारम्
भावसंचारम् अभावसंहारम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ७ ॥

अर्थ:
जो ध्रुव के विष्णु हैं, भक्तों के प्राणस्वरूप हैं,
जो राधा के पति और दुखियों के रक्षक हैं,
जो सम्पूर्ण ज्ञान का सार और लोकों का आधार हैं,
जो भाव की अभिव्यक्ति और अभाव का संहार करने वाले हैं—
ऐसे जगन्नाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ।

बलदेव सुभद्रा पार्श्वे स्थितम्
सुदर्शन संगे नित्य शोभितम्
नमामि नमामि सर्वांगे देवम्
हे पूर्णब्रह्म हरि मम सर्वम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ८ ॥

अर्थ:
जो बलराम और सुभद्रा जी के साथ विराजते हैं,
जो सुदर्शन चक्र के साथ सदा शोभायमान रहते हैं,
जिनके अंग-अंग में दिव्यता है,
जो पूर्ण ब्रह्म और हरि हैं, मेरे लिए सर्वस्व हैं—
ऐसे जगन्नाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ।

कृष्णदासहृदि भाव संचारम्
सदा कुरु स्वामी तव किंकरम्
तव कृपा विन्दु हि एक सारम्
अन्यथा हे नाथ सर्व असारम्
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम् ॥ ९ ॥

अर्थ:
हे प्रभु! अपने भक्त कृष्णदास के हृदय में प्रेम का संचार करो,
मुझे सदैव अपना सेवक बना लो,
आपकी कृपा की एक बूंद ही जीवन का सार है,
अन्यथा यह संसार व्यर्थ और निरर्थक है—
ऐसे जगन्नाथ स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ।

॥ इति श्री कृष्णदासः विरचित पूर्णब्रह्न स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

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FAQs-

Purnabrahma Stotram kisne likha hai?

Is stotram ko Shri Krishnadas ji ne rachit kiya hai.

Ye stotram kis devta ko samarpit hai?

Ye Bhagwan Jagannath Swami ko samarpit hai.

Purnabrahma Stotram mein kul kitne shlok hain?

Is mein 9 shlok hain.

Jagannath Swami kaun hote hain?

Jagannath Swami Bhagwan Vishnu ke roop hain, jinke saath Subhadra ji aur Balram ji bhi virajmaan hote hain.

Is stotram ka paath kab karna chahiye?

Iska paath subah ya shaam ko, shuddh man se kiya ja sakta hai – khaaskar Rath Yatra ke samay ya kisi bhi Vishnu tithi par.

Kya is stotram se koi laabh hota hai?

Haan, is stotram ke paath se bhakti, shanti, kripa aur bhagwan ke darshan ka bhaav jagrit hota hai.

Kya isme Bhagwan ke roopon ka varnan hai?

Haan, isme Bhagwan ke divya swaroop, dashaavataar, brahm tatva aur bhakta ke saathi hone ka varnan hai.

Kya iska paath koi bhi kar sakta hai?

Haan, koi bhi bhakt, chahe kisi bhi varg ya umra ka ho, shraddha se iska paath kar sakta hai.

Is stotram ka arth (meaning) kya hai?

Is mein Bhagwan Jagannath ko poorn brahm, karuna ke sagar, sabka sahara aur prem ke patra ke roop mein samarpan diya gaya hai.

Kya iska paath karne se mann shaant hota hai?

Bilkul, iska ucharan mann aur hriday mein bhakti ka anand deta hai.

Kya ye stotram Rath Yatra ke liye vishesh hai?

Haan, Rath Yatra ke dauraan iska paath bahut pavitra aur mahatvapurn mana jata hai.

Is stotram ko yaad kaise karein?

Roz ek-ek shlok ka paath aur arth samajhkar yaad karne se kuch dinon mein yaad ho jata hai.

Purnabrahma ka arth kya hota hai?

Purnabrahma ka arth hai – jo sampoorna, anant aur adwait tattva hai – yaani bhagwan ka asli roop.

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Deepika Patidar
Deepika Patidar

Deepika patidar is a dedicated blogger who explores Hindu mythology through ancient texts, bringing timeless stories and spiritual wisdom to life with passion and authenticity.

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