सावन के प्रमुख त्यौहार और यात्रा
Sawan ke Pramukh Tyohar and Yatra सावन का महीना, जिसे श्रावण मास भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह महीना भगवान शिव की भक्ति और आराधना के लिए समर्पित है। रिमझिम फुहारों के बीच प्रकृति की हरियाली के साथ-साथ यह मास कई प्रमुख त्योहारों और तीर्थयात्राओं का भी साक्षी बनता है, जो भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को दर्शाते हैं। इस दौरान कांवड़ यात्रा, हरियाली तीज, नाग पंचमी और रक्षा बंधन जैसे पर्व बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाए जाते हैं।
Kanwar Yatra: Itihas, Mahatva aur Niyam (कांवड़ यात्रा: इतिहास, महत्व और नियम)
Kanwar Yatra Kya Hai aur Yeh Kyun Ki Jaati Hai? (कांवड़ यात्रा क्या है और यह क्यों की जाती है?)
कांवड़ यात्रा एक प्राचीन हिंदू तीर्थयात्रा है, जिसमें श्रद्धालु, जिन्हें कांवड़िया कहा जाता है, भगवा वस्त्र धारण कर पवित्र नदियों, विशेषकर गंगा का जल लेकर सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं। इस पवित्र जल से वे अपने निवास स्थान के पास स्थित शिवालयों में श्रावण मास की चतुर्दशी के दिन भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। यह यात्रा भगवान शिव के प्रति अटूट आस्था, तपस्या और समर्पण का प्रतीक है।
इतिहास और पौराणिक महत्व:
कांवड़ यात्रा की उत्पत्ति के संबंध में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की थी। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लाकर बागपत के पास ‘पुरा महादेव’ में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था।
एक अन्य कथा का संबंध समुद्र मंथन से है। जब समुद्र मंथन से विष निकला, तो भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए उसे अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे ‘नीलकंठ’ कहलाए। विष के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए, उनके भक्त रावण ने कांवड़ में गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया था, जिससे उन्हें राहत मिली।
कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत त्रेता युग में श्रवण कुमार ने की थी। उन्होंने अपने नेत्रहीन माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया था। इसे सेवा और समर्पण का प्रतीक भी माना जाता है।
Kanwadiyon ke liye Kya Niyam Hote Hain? (कांवड़ियों के लिए क्या नियम होते हैं?)
कांवड़ यात्रा अत्यंत कठिन होती है और इसके कुछ कठोर नियम हैं, जिनका पालन करना हर कांवड़िये के लिए अनिवार्य होता है:
- सात्विकता: यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा, मदिरा, मांस और तामसिक भोजन (जैसे लहसुन-प्याज) पूरी तरह से वर्जित है।
- पवित्रता: कांवड़ यात्रा में शारीरिक और मानसिक स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। बिना स्नान किए कांवड़ को स्पर्श नहीं किया जाता।
- भूमि स्पर्श निषेध: कांवड़ को सीधे भूमि पर रखना वर्जित माना जाता है। यदि कांवड़िये को विश्राम करना हो तो कांवड़ को किसी ऊंचे स्थान या специально बने स्टैंड पर रखा जाता है।
- ब्रह्मचर्य का पालन: यात्रा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक होता है।
- अनुशासन: कांवड़ियों को यात्रा के दौरान अनुशासन बनाए रखना चाहिए और एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।
- अन्य नियम: यात्रा के दौरान चमड़े से बनी वस्तुओं का स्पर्श, चारपाई का उपयोग, और वृक्ष के नीचे कांवड़ रखना भी वर्जित माना गया है। यात्रा के दौरान बाल और दाढ़ी कटवाना भी मना है।
Hariyali Teej: Kyun aur Kaise Manaya Jaata Hai Yeh Parv? (हरियाली तीज: क्यों और कैसे मनाया जाता है यह पर्व?)
सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला हरियाली तीज का पर्व महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है और इसे सौभाग्य और समृद्धि के लिए मनाया जाता है।
Iski Katha, Puja Vidhi aur Mahilaon ke liye Iska Mahatva (इसकी कथा, पूजा विधि और महिलाओं के लिए इसका महत्व)
पौराणिक कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 जन्मों तक कठोर तपस्या की थी। उनके 108वें जन्म में, जब वे हिमालय पर घोर तप कर रही थीं, तब भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। जिस दिन यह शुभ मिलन हुआ, वह श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। इसीलिए, इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं।
पूजा विधि:
- इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और हरे रंग के वस्त्र धारण करती हैं, क्योंकि हरा रंग हरियाली, सौभाग्य और जीवन की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
- महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और निर्जला व्रत रखती हैं, जिसका अर्थ है कि वे दिन भर जल भी ग्रहण नहीं करती हैं।
- पूजा के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मिट्टी या धातु की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं।
- माता पार्वती को सुहाग की सामग्री जैसे चूड़ियां, बिंदी, सिंदूर, मेहंदी आदि अर्पित की जाती हैं।
- पूजा के दौरान हरियाली तीज की व्रत कथा सुनना अनिवार्य माना जाता है।
- पूजा के अंत में आरती की जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है। इस दिन झूला झूलने की भी विशेष परंपरा है।
2025 में हरियाली तीज:
वर्ष 2025 में हरियाली तीज का व्रत 27 जुलाई को रखा जाएगा। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 26 जुलाई को रात 10:41 बजे से शुरू होगी और 27 जुलाई को रात 10:41 बजे समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, यह पर्व 27 जुलाई को मनाया जाएगा।
Nag Panchami: Puja Vidhi, Katha aur Kalasarp Dosh se Mukti ke Upay (नाग पंचमी: पूजा विधि, कथा और कालसर्प दोष से मुक्ति के उपाय)
सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व नागों की पूजा के लिए समर्पित है, जिनका हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। भगवान शिव अपने गले में नाग देवता वासुकि को धारण करते हैं, जिससे इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है।
Nagon ki Puja Kyun ki Jaati Hai, Iski Kahani aur Puja ka Shubh Muhurat (नागों की पूजा क्यों की जाती है, इसकी कहानी और पूजा का शुभ मुहूर्त)
पौराणिक कथा: नाग पंचमी की सबसे प्रसिद्ध कथा महाभारत काल से जुड़ी है। राजा जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पमेध यज्ञ का आयोजन किया था, ताकि समस्त नागवंश का विनाश हो सके। तब आस्तिक मुनि ने नागों की रक्षा की थी। तभी से नागों के संरक्षण और सम्मान के प्रतीक के रूप में नाग पंचमी का पर्व मनाया जाने लगा। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी।
पूजा विधि:
- इस दिन घर के मुख्य द्वार पर या पूजा स्थल पर नाग देवता का चित्र बनाया जाता है या मिट्टी की मूर्ति स्थापित की जाती है।
- नाग देवता को हल्दी, कुमकुम, अक्षत, फूल, और दूब अर्पित की जाती है।
- उन्हें दूध, घी और चीनी का भोग लगाया जाता है।
- पूजा के दौरान नाग पंचमी की कथा सुनी जाती है और मंत्रों का जाप किया जाता है।
- इस दिन भूमि की खुदाई करना वर्जित माना जाता है।
2025 में नाग पंचमी:
वर्ष 2025 में नाग पंचमी का पर्व 29 जुलाई को मनाया जाएगा। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 05:56 बजे से 08:35 बजे तक रहेगा।
कालसर्प दोष से मुक्ति के उपाय:
ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प दोष को एक अशुभ योग माना जाता है, जिससे व्यक्ति के जीवन में कई बाधाएं आती हैं। नाग पंचमी का दिन इस दोष के निवारण के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
- इस दिन किसी शिव मंदिर में शिवलिंग पर चांदी या तांबे के नाग-नागिन का जोड़ा अर्पित करना चाहिए।
- कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए घर के मुख्य द्वार पर सर्पाकार बनाकर उसका अभिषेक करें और घी चढ़ाएं।
- नागराज के 12 नामों (अनंत, वासुकी, शेष, पद्म, कम्बल, कर्कोटक, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालिया, तक्षक और पिंगल) का जाप करें।
- इस दिन श्री सर्प सूक्त का पाठ करना भी लाभकारी माना जाता है।
- राहु और केतु के मंत्रों का जाप करने से भी इस दोष के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
Raksha Bandhan (Agar Sawan Mein Pad Raha Hai) (रक्षा बंधन (अगर सावन में पड़ रहा है))
रक्षा बंधन का पवित्र त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।
2025 में रक्षा बंधन:
वर्ष 2025 में रक्षा बंधन का त्योहार 9 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा। श्रावण पूर्णिमा तिथि 8 अगस्त को दोपहर 2:12 बजे से शुरू होकर 9 अगस्त को दोपहर 1:24 बजे समाप्त होगी। इस वर्ष रक्षा बंधन पर भद्रा का साया नहीं रहेगा, जिससे बहनें पूरे दिन अपने भाइयों को राखी बांध सकेंगी।
Iska Pauranik Mahatva aur Shubh Muhurat (इसका पौराणिक महत्व और शुभ मुहूर्त)
पौराणिक महत्व:
रक्षा बंधन से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं:
- कृष्ण और द्रौपदी: एक बार जब भगवान कृष्ण की उंगली कट गई, तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया। इस स्नेह के बदले में, कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन माना और चीरहरण के समय उनकी लाज की रक्षा की।
- रानी कर्णावती और हुमायूं: चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह के आक्रमण से अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर मदद मांगी थी। हुमायूं ने राखी का मान रखते हुए चित्तौड़ की रक्षा की थी।
- इंद्र और शची: एक अन्य कथा के अनुसार, जब देवता और असुरों में युद्ध हो रहा था और देवता हार रहे थे, तब इंद्र की पत्नी शची ने उनके हाथ में एक रक्षा सूत्र बांधा था, जिसके प्रभाव से इंद्र विजयी हुए।
शुभ मुहूर्त 2025:
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 9 अगस्त को सुबह 05:47 बजे से दोपहर 1:24 बजे तक रहेगा। इस दिन अभिजीत मुहूर्त, जो राखी बांधने के लिए सबसे शुभ माना जाता है, दोपहर 12:00 बजे से 12:53 बजे तक रहेगा।
सावन का महीना केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें प्रकृति से जुड़ने, रिश्तों को मजबूत करने और अपनी आस्था को नवीनीकृत करने का अवसर प्रदान करता है।
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FAQs
Kanwar Yatra ke dauran kin baaton ka dhyan rakhna chahiye?
Kanwar Yatra ke dauran saaf-safai, sharirik aur mansik pavitrata, nasha na karna, aur sattvik bhojan karna anivarya hai. Kanwar ko kabhi bhi zameen par nahi rakha jaata hai.
Hariyali Teej ka vrat kaun rakh sakta hai?
Vivahit mahilayein apne pati ki lambi umar ke liye aur avivahit kanyaayein manchahe var ki prapti ke liye Hariyali Teej ka vrat rakhti hain.
Nag Panchami ke din kya nahi karna chahiye?
Nag Panchami ke din zameen ki khudai karna, saag todna aur jeevit saap ko pareshan karna varjit maana jaata hai.
Kalasarp Dosh kya hai aur iske nivaran ke liye Nag Panchami kyun mahatvapurna hai?
Kalasarp Dosh kundli ka ek aisa yog hai jo jeevan mein pareshaniyan la sakta hai. Nag Panchami ka din nagon ki puja ke liye shreshth hai, isliye is din kiye gaye upay is dosh ke prabhav ko kam karne mein madad karte hain.
2025 mein Raksha Bandhan par Bhadra hai ya nahi?
Nahi, saal 2025 mein Raksha Bandhan ke din Bhadra ka saaya nahi hai. Isliye behnein poore din apne bhaiyon ko rakhi baandh sakti hain.
Sawan ke mahine ko itna pavitra kyu maana jaata hai?
Maanayata hai ki Sawan ke mahine mein hi samudra manthan hua tha aur Bhagwan Shiv ne vish paan karke srishti ki raksha ki thi. Saath hi, isi mahine mein Bhagwan Shiv aur Mata Parvati ka milan hua tha, isliye yeh mahina unki puja ke liye atyant shubh maana jaata hai.
Kya Kanwar Yatra sirf purush hi kar sakte hain?
Nahi, parampara ke anusar yeh yatra purush karte hain, lekin ab mahilayein bhi badi shraddha ke saath is yatra mein hissa leti hain.
Hariyali Teej par hare rang ka kya mahatva hai?
Sawan mein charo taraf hariyali hoti hai. Hara rang prakriti, saubhagya, aur navjeevan ka prateek hai. Isliye is din mahilayein hare rang ke vastra aur choodiyan pehankar prakriti ke saath ekatmata sthapit karti hain.
Ghar par Nag Panchami ki puja kaise karein?
Aap ghar ke darwaze par ya puja sthal par haldi ya chandan se naag devta ka chitra banakar unhe doodh, dhaan ka lawa, aur mithai arpit kar sakte hain aur Nag Panchami ki katha sun sakte hain.
Agar Raksha Bandhan ka shubh muhurat nikal jaye to kya karein?
Yadi aap shubh muhurat mein rakhi nahi baandh paate hain, to aap din ke kisi bhi samay, jab rahu kaal na ho, Bhagwan ka dhyaan karke bhai ki kalai par raksha sutra baandh sakte hain.
Sawan ke somvar vrat ka kya mahatva hai?
Somvar ka din Bhagwan Shiv ko samarpit hai. Sawan ke mahine mein somvar ka vrat rakhne se Bhagwan Shiv vishesh roop se prasann hote hain aur manovanchhit phal pradan karte hain.
Dak Kanwar kya hoti hai aur yeh samanya Kanwar se kaise alag hai?
Dak Kanwar mein kanwadiya yatra shuru karne se lekar jalabhishek tak lagatar bina ruke chalta rehta hai. Yeh yatra samanya Kanwar yatra se adhik kathin hoti hai aur ismein ek saathi kanwadiye ki madad ke liye saath chalta hai.






