भाद्रपद शुक्ल पंचमी को किया जाने वाला व्रत, ऋषि पंचमी, पापों से मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है।
BY DEEPIKA PATIDAR
यह व्रत सप्त ऋषियों की पूजा और आत्मा की शुद्धि के लिए किया जाता है। व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
लटजीर, कुश, कलावा, गंगाजल, पंचगव्य, दीपक, चंदन, पुष्प, नैवेद्य, केले के पत्ते, सप्त ऋषियों की मूर्ति और पूजन सामग्री आवश्यक हैं।
प्रातः स्नान करें, सप्त ऋषियों की स्थापना करें, अष्टकमल दल बनाएं, पंचगव्य प्राशन करें, और विधिपूर्वक पूजा करें।
नदी या जलाशय में लटजीर की दातुन से दांत साफ करें और शरीर पर मिट्टी लगाकर स्नान करें। फिर पंचगव्य (गोमूत्र, गोबर, दूध, घी और दही) का प्राशन करें।
सप्त ऋषियों (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ) की पूजा चंदन, पुष्प, दीप और नैवेद्य से करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
राजा सुताश्व ने ब्रह्माजी से पाप नाश के व्रत के बारे में पूछा, तब ब्रह्माजी ने उन्हें ऋषि पंचमी व्रत की महिमा बताई।
विदर्भ देश की ब्राह्मण कन्या ने रजस्वला दोष के कारण पाप किया। ऋषि पंचमी व्रत के प्रभाव से उसे पापों से मुक्ति मिली और पुण्य की प्राप्ति हुई।
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि ऋषि पंचमी व्रत से रजस्वला दोष से मुक्ति मिलती है और स्त्रियाँ पवित्रता प्राप्त करती हैं।