हलछठ (देवछट) व्रत कथा

संतान सुख और शोक से मुक्ति दिलाने वाला व्रत

BY MEGHA PATIDAR

हलछठ व्रत: बलदेवजी के जन्म का पावन पर्व 

हलछठ व्रत, जिसे उबछट या ललई छट भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेवजी के जन्म दिवस पर मनाया जाता है।

हल का प्रयोग क्यों वर्जित है? 

हलछठ व्रत में हल से जोते गए धान का सेवन वर्जित है। ऐसा माना जाता है कि हल बलरामजी का प्रतीक है, इसलिए इस दिन हल का उपयोग नहीं किया जाता।

हलछठ की पूजा विधि

इस दिन शिव, पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है। धूप, दीप, अक्षत, पुष्प और नैवेद्य से देवताओं का पूजन किया जाता है।

हलछठ व्रत के देवता 

इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, और गणेशजी की पूजा होती है। इन देवताओं की पूजा करने से सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

हलछठ व्रत की पौराणिक कथा 

महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने राजा युधिष्ठिर को बताया कि इस व्रत के करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। सुभद्रा रानी ने यह व्रत करके अपने पुत्र की जान बचाई थी।

क्या खाएं और क्या न खाएं 

व्रत के दौरान हल से उत्पन्न अनाज का सेवन नहीं किया जाता। इस दिन समां के चावल, महुए के फूल, और गाय के दूध से बने पदार्थों का सेवन करना शुभ माना जाता है।

हलछठ व्रत के लाभ 

इस व्रत के करने से संतान सुख, स्वास्थ्य और लंबी आयु की प्राप्ति होती है। राजा युधिष्ठिर की संतति भी इसी व्रत के प्रभाव से पुनः जीवित हो उठी थी।

उत्तरा का व्रत और संतति का पुनर्जन्म 

भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा को हलछठ व्रत करने की सलाह दी, जिसके फलस्वरूप उनके मरे हुए गर्भ को नया जीवन मिला।

व्रत करने की विधि 

भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को सुबह स्नान करके, शांतिपूर्वक व्रत का पालन करें। इस दिन हिंसा से बचें और भगवान शिव, पार्वती, गणेशजी, और कार्तिकेय की मूर्तियों का पूजन करें।

हलछठ व्रत का समापन 

व्रत की समाप्ति पर शिवजी, पार्वती, गणेशजी, और कार्तिकेय का ध्यान करते हुए ब्राह्मणों को वस्त्र और दान दें।