अनु वंश का विस्तार
अनु के पुत्र
ययाति के चौथे पुत्र अनुके सभानल , चक्षु और परमेषु नामक तीन पुत्र थे ।
सभानल का वंश
सभानल का पुत्र कालानल हुआ तथा कालानल के संजय , संजयके पुरंजय , पुरंजयके जनमेजय ,जनमेजयके महाशाल , महाशालके महामना और महामनाके उशी नर तथा तितिक्षु नामक दो पुत्र हुए ॥
उशीनर के पुत्र
उशीनर के शिबि , नृग , नर , कृमि और वर्म नामक पाँच पुत्र हुए ॥
शिबि का वंश
उनमें से शिबि के पृषदर्भ , सुवीर , केकय और मद्रक- ये चार पुत्र थे ॥
तितिक्षु का वंश
तितिक्षुका पुत्र रुशद्रथ हुआ । उसके हेम , हेमके तथा सुतपा के बलि नामक पुत्र हुआ ।
बलि का वंश
इस बलि के क्षेत्र ( रानी ) -में दीर्घतमा नामक मुनिने अंग , वंग , कलिंग , सुह्म और पौण्ड्र नामक पाँच वालेय क्षत्रिय उत्पन्न किये ॥ इन बलिपुत्रों की सन्तति के नामानुसार पाँच देशोंके भी ये ही नाम पड़े ॥
अंग का वंश
इनमें से अंगसे अनपान , अनपान से दिविरथ , दिविरथसे धर्मरथ और धर्मरथ से चित्ररथ का जन्म हुआ जिसका दूसरा नाम रोमपाद था । इस रोमपाद के मित्र दशरथजी थे , अजके पुत्र दशरथजी ने रोमपाद को सन्तानहीन देखकर उन्हें पुत्रीरूपसे अपनी शान्ता नाम की कन्या गोद दे दी थी ॥
रोमपाद का वंश
रोमपाद का पुत्र चतुरंग था । चतुरंग के पृथुलाक्ष तथा पृथुलाक्ष के चम्प नामक पुत्र हुआ जिसने चम्पा नाम की पुरी बसायी थी ॥
चम्प का वंश
चम्प के हर्यंग नामक पुत्र हुआ , हर्यंगसे भद्ररथ , भद्ररथसे बृहद्रथ , बृहद्रथसे बृहत्कर्मा बृहत्कर्मा से बृहद्भानु , बृहद्भानु से बृहन्मना , बृहन्मना से जयद्रथ का जन्म हुआ ॥
जयद्रथ का वंश
जयद्रथ की ब्राह्मण और क्षत्रिय के संसर्ग से उत्पन्न हुई पत्नी के गर्भ से विजय नामक पुत्र का जन्म हुआ ॥ विजय के धृति नामक पुत्र हुआ , धृतिके धृतव्रत , धृतव्रतके सत्यकर्मा और सत्यकर्माके अतिरथ का जन्म हुआ जिसने कि [ स्नानके लिये ] गंगाजीमें जानेपर पिटारी में रखकर पृथा द्वारा बहाये हुए कर्ण को पुत्ररूप से पाया था ।
कर्ण का वंश
इस कर्ण का पुत्र वृषसेन था ।