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78. गृहस्थसम्बन्धी सदाचार का वर्णन

गृहस्थसम्बन्धी

गृहस्थसम्बन्धी नित्य कर्तव्य और पूजा-पाठ

गृहस्थ पुरुष को नित्यप्रति देवता , गौ , ब्राह्मण , सिद्धगण , वयोवृद्ध तथा आचार्यकी पूजा करनी चाहिये और दोनों समय सन्ध्यावन्दन तथा अग्निहोत्रादि कर्म करने चाहिये ॥ गृहस्थ पुरुष सदा ही संयमपूर्वक रहकर बिना कहींसे कटे हुए दो वस्त्र , उत्तम ओषधियाँ और गारुड ( मरकत आदि विष नष्ट करनेवाले ) रत्न धारण करे ॥ वह केशोंको स्वच्छ और चिकना रखे तथा सर्वदा सुगन्धयुक्त सुन्दर वेष और मनोहर श्वेतपुष्प धारण करे ॥

आचरण और व्यवहार

किसी का थोड़ा – सा भी धन हरण न करे और थोड़ा – सा भी अप्रिय भाषण न करे । जो मिथ्या हो ऐसा प्रिय वचन भी कभी न बोले और न कभी दूसरोंके दोषों को ही कहे ॥  दूसरों की स्त्री अथवा दूसरोंके साथ वैर करनेमें कभी रुचि न करे , निन्दित सवारीमें कभी न चढ़े और नदीतीरकी छायाका कभी आश्रय न ले ॥ बुद्धिमान् पुरुष लोकविद्विष्ट , पतित , उन्मत्त और जिसके बहुत – से शत्रु हों ऐसे परपीडक पुरुषों के साथ तथा कुलटा , कुलटा के स्वामी , क्षुद्र , मिथ्यावादी अति व्ययशील , निन्दापरायण और दुष्ट पुरुषोंके साथ कभी मित्रता न करे और न कभी मार्ग में अकेला चले ॥

शारीरिक संयम

जलप्रवाह के वेग में सामने पड़कर स्नान न करे , जलते हुए घरमें प्रवेश न करे और वृक्षकी चोटीपर न चढ़े ॥ दाँतोंको परस्पर न घिसे , नाकको न कुरेदे तथा मुखको बन्द किये हुए जमुहाई न ले और न बन्द मुखसे खाँसे या श्वास छोड़े ॥ बुद्धिमान् पुरुष जोर से न हँसे और शब्द करते हुए अधोवायु न छोड़े ; तथा नखों को न चबाव , तिनका न तोड़े और पृथिवीपर भी न लिखे ॥

विचक्षण पुरुष मूँछ – दाढ़ीके बालोंको न चबावे , दो ढेलोंको परस्पर न रगड़े और अपवित्र एवं निन्दित नक्षत्रोंको न देखे ॥ नग्न परस्त्री को और उदय अथवा अस्त होते हुए सूर्यको न देखे तथा शव और शव – गन्धसे घृणा न करे , क्योंकि शव – गन्ध सोमका अंश है ॥ चौराहा , चैत्यवृक्ष , श्मशान , उपवन और दुष्टा स्त्रीकी समीपता- इन सबका रात्रिके समय सर्वदा त्याग करे ॥ बुद्धिमान् पुरुष

सामाजिक और धार्मिक आचरण

अपने पूजनीय देवता , ब्राह्मण और तेजोमय पदार्थोंकी छायाको कभी न लाँघे तथा शून्य वनखण्डी और शून्य घर में कभी अकेला न रहे । केश , अस्थि , कण्टक , अपवित्र वस्तु , बलि , भस्म , तुष तथा स्नानके कारण भीगी हुई पृथिवीका दूरहीसे त्याग करे ॥ प्राज्ञ पुरुष को चाहिये कि अनार्य व्यक्ति का संग न करे , कुटिल पुरुष में आसक्त न हो , सर्पके पास न जाय और जग पड़ने पर अधिक देरतक लेटा न रहे ॥ हे नरेश्वर ! बुद्धिमान् पुरुष जागने , सोने , स्नान करने , बैठने , शय्यासेवन करने और व्यायाम करनेमें अधिक समय न लगावे ॥

हे राजेन्द्र ! प्राज्ञ पुरुष दाँत और सींगवाले पशुओंको , ओसको तथा सामनेकी वायु और धूपका सर्वदा परित्याग करे ॥ नग्न होकर स्नान , शयन और आचमन न करे तथा केश खोलकर आचमन और देव – पूजन न करे ॥ होम तथा देवार्चन आदि क्रियाओंमें , आचमनमें , पुण्याहवाचन में और जप में एक वस्त्र धारण करके प्रवृत्त न हो ॥ संशयशील व्यक्तियों के साथ कभी न रहे । सदाचारी पुरुषोंका तो आधे क्षणका संग भी अति प्रशंसनीय होता है ॥

बुद्धिमान् पुरुष उत्तम अथवा अधम व्यक्तियोंसे विरोध न करे । हे राजन् ! विवाह और विवाद सदा समान व्यक्तियोंसे ही होना चाहिये ॥ प्राज्ञ पुरुष कलह न बढ़ावे तथा व्यर्थ वैरका भी त्याग करे । थोड़ी – सी हानि सह ले , किन्तु वैरसे कुछ लाभ होता हो तो उसे भी छोड़ दे ॥

स्वच्छता और स्वास्थ्य

स्नान करनेके अनन्तर स्नानसे भीगी हुई धोती अथवा हाथोंसे शरीरको न पोंछे तथा खड़े – खड़े केश को न झाड़े और आचमन भी न करे ॥ पैरके ऊपर पैर न रखे , गुरुजनों के सामने पैर न फैलावे और धृष्टतापूर्वक उनके सामने कभी उच्चासनपर न बैठे ॥ देवालय , चौराहा , मांगलिक द्रव्य और पूज्य व्यक्ति- इन सबको बायीं ओर रखकर न निकले तथा इनके विपरीत वस्तुओंको दायीं ओर रखकर न जाय ॥

आत्मसंयम और ध्यान

चन्द्रमा , सूर्य , अग्नि , जल , वायु और पूज्य व्यक्तियोंके सम्मुख पण्डित पुरुष मल – मूत्र – त्याग न करे और न थूके ही ॥ खड़े – खड़े अथवा मार्ग में मूत्र त्याग न करे तथा श्लेष्मा ( थूक ) , विष्ठा , मूत्र और रक्तको कभी न लाँघे ॥ भोजन , देव – पूजा , मांगलिक कार्य और जप – होमादिके समय तथा महापुरुषों के सामने थूकना और छींकना उचित नहीं है ॥ बुद्धिमान् पुरुष स्त्रियोंका अपमान न करे , उनका विश्वास भी न करे तथा उनसे ईर्ष्या और उनका तिरस्कार भी कभी न करे ॥

परोपकार और समाज सेवा

सदाचार परायण प्राज्ञ पुरुष मांगलिक द्रव्य , पुष्प , रत्न , घृत और पूज्य व्यक्तियोंका अभिवादन किये बिना कभी अपने घरसे न निकले ॥ चौराहों को नमस्कार करे , यथासमय अग्निहोत्र करे , दीन – दुःखियों का उद्धार करे और बहुश्रुत साधु पुरुषोंका सत्संग करे ॥ जो पुरुष देवता और ऋषियोंकी पूजा करता है , पितृगणको पिण्डोदक देता है और अतिथिका सत्कार करता है वह पुण्यलोकोंको जाता है ॥ जो व्यक्ति जितेन्द्रिय होकर समयानुसार हित , मित और प्रिय भाषण करता है , है राजन् ! वह आनन्दके हेतुभूत अक्षय लोकोंको प्राप्त होता है ॥ बुद्धिमान् , लज्जावान् , क्षमाशील , और करे ॥ आस्तिक और विनयी पुरुष विद्वान् और कुलीन पुरुषों के योग्य उत्तम लोकोंमें जाता है ॥

अकाल मेघगर्जनके समय , पर्व- दिनोंपर , अशौच कालमें तथा चन्द्र और सूर्यग्रहणके समय बुद्धिमान् पुरुष अध्ययन न करे ॥ जो व्यक्ति क्रोधित को शान्त करता है , सबका बन्धु है , मत्सरशून्य है , भयभीतको सान्त्वना देनेवाला है और साधु – स्वभाव है उसके लिये स्वर्ग तो उसके लिये स्वर्ग तो बहुत थोड़ा फल है ॥ जिसे शरीर – रक्षाकी इच्छा हो वह पुरुष वर्षा और धूप में छाता लेकर निकले , रात्रिके समय और वनमें दण्ड लेकर जाय तथा जहाँ कहीं जाना हो सर्वदा जूते पहनकर जाय ॥

बुद्धिमान् पुरुषको ऊपरकी ओर , इधर – उधर अथवा दूरके पदार्थोंको देखते हुए नहीं चलना चाहिये , केवल युगमात्र ( चार हाथ ) पृथिवीको देखता हुआ चले ॥ सदाचारी जो जितेन्द्रिय दोषके समस्त हेतुओंको त्याग देता । है उसके धर्म , अर्थ और कामकी थोड़ी – सी भी हानि । जय और क नहीं होती ॥ जो विद्या – विनय – सम्पन्न , प्राज्ञ पुरुष पापी के प्रति पापमय व्यवहार नहीं करता , कुटिल पुरुषोंसे प्रिय भाषण करता है तथा जिसका अन्तःकरण मैत्रीसे द्रवीभूत रहता है , मुक्ति उसकी मुट्ठीमें रहती है ॥

व्यवहारिक बुद्धिमानी

जो वीतरागमहापुरुष कभी काम , क्रोध और लोभादिक वशीभूत नहीं होते तथा सर्वदा सदाचार में स्थित रहते हैं उनके प्रभावसे ही पृथिवी टिकी हुई है ॥ अतः प्राज्ञ पुरुषको वही सत्य कहना चाहिये जो दूसरोंकी प्रसन्नताका कारण हो । यदि किसी सत्य वाक्यके कहनेसे दूसरोंको दुःख होता जाने तो मौन रहे ॥ यदि प्रिय वाक्यको भी अहितकर समझे तो उसे न कहे ; उस अवस्थामें तो हितकर वाक्य ही कहना अच्छा है , भले ही वह अत्यन्त अप्रिय क्यों न हो ॥ जो कार्य इहलोक और परलोकमें प्राणियोंके हितका साधक हो मतिमान् पुरुष मन , वचन और कर्मसे उसीका आचरण करे ॥

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