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43. पूतना-वध

पूतना

पूतना की प्राकृतिक रूप धारणा 

बन्दी गृह से छूटते ही वसुदेवजी नन्द जी के छकड़े के पास गये तो उन्हें इस समाचार से अत्यन्त प्रसन्न देखा कि ‘मेरे पुत्रका जन्म हुआ है’ ॥ तब वसुदेवजी ने भी उनसे आदरपूर्वक कहा- अब वृद्धावस्था में भी आपने पुत्र का मुख देख लिया यह बड़े ही सौभाग्य की बात है ॥ 

आपलोग जिसलिये यहाँ आये थे वह राजा का सारा वार्षिक कर दे ही चुके हैं। यहाँ धनवान् पुरुषों को और अधिक न ठहरना चाहिये ॥  आपलोग जिस लिये यहाँ आये थे वह कार्य पूरा हो चुका, अब और अधिक किसलिये ठहरे हुए हैं ? [यहाँ देरतक ठहरना ठीक नहीं है] अतः हे नन्दजी ! आप लोग शीघ्र ही अपने गोकुल को जाइये ॥  वहाँ पर रोहिणी से उत्पन्न हुआ जो मेरा पुत्र है उसकी भी आप उसी तरह रक्षा कीजियेगा जैसे अपने इस बालक की ॥

वसुदेवजी के ऐसा कहने पर नन्द आदि महाबलवान् गोपगण छकड़ो में रखकर लाये हुए भाण्डों से कर चुकाकर चले गये ॥ 

पूतना का बाल ग्रहण

उनके गोकुल में रहते समय बाल घातिनी पूतना ने रात्रि के समय सोये हुए कृष्ण को गोद में लेकर उनके मुख में अपना स्तन दे दिया ॥  रात्रि के समय पूतना जिस-जिस बालक के मुख में अपना स्तन दे देती थी उसीका शरीर तत्काल नष्ट हो जाता था ॥ 

पूतना का वध

कृष्णचन्द्र ने क्रोधपूर्वक उसके स्तन को अपने हाथों से खूब दबाकर पकड़ लिया और उसे उसके प्राणों के सहित पीने लगे ॥  तब स्नायु-बन्धनों के शिथिल हो जानेसे पूतना घोर शब्द करती हुई मरते समय महाभयंकर रूप धारणकर पृथिवीपर गिर पड़ी ॥  उसके घोर नादको सुनकर भयभीत हुए व्रजवासीगण जाग उठे और देखा कि कृष्ण पूतना की गोद में हैं और वह मारी गयी है ॥ 

 तब भयभीता यशोदा ने कृष्ण को गोद में लेकर उन्हें गौकी पूँछसे झाड़कर बालक का ग्रह-दोष निवारण किया ॥  नन्दगोप ने भी आगे के वाक्य कहकर विधिपूर्वक रक्षा करते हुए कृष्ण के मस्तक पर गोबर का चूर्ण लगाया ॥ 

नन्दगोप बोले- जिनकी नाभि से प्रकट हुए कमल से सम्पूर्ण जगत् उत्पन्न हुआ है वे सम्पूर्ण भूतों के आदि स्थान श्रीहरि तेरी रक्षा करें ॥  जिनकी दाढ़ों के अग्रभाग पर स्थापित होकर भूमि सम्पूर्ण जगत्को धारण करती है, वे वराह-रूप-धारी श्रीकेशव तेरी रक्षा करें ॥ 

जिन विभुने अपने नखाग्रों से शत्रु के वक्षःस्थल को विदीर्ण कर दिया था, वे नृसिंहरूपी जनार्दन तेरी सर्वत्र रक्षा करें ॥  जिन्होंने क्षणमात्र में सशस्त्र त्रिविक्रमरूप धारण करके अपने तीन पगोंसे त्रिलोकी को नाप लिया था, वे वामनभगवान् तेरी सर्वदा रक्षा करें ॥  गोविन्द तेरे सिरकी, केशव कण्ठकी, विष्णु गुह्यस्थान और जठर की तथा जनार्दन जंघा और चरणोंकी रक्षा करें ॥  तेरे मुख, बाहु, प्रबाहु,मन और सम्पूर्ण इन्द्रियोंकी अखण्ड-ऐश्वर्यसे सम्पन्न अविनाशी श्रीनारायण रक्षा करें ॥  तेरे अनिष्ट करनेवाले जो प्रेत, कूष्माण्ड और राक्षस हों वे शार्ङ्ग धनुष, चक्र और गदा धारण करनेवाले विष्णुभगवान्‌ की शंख-ध्वनि से नष्ट हो जायँ ॥ 

भगवान् वैकुण्ठ दिशाओं में, मधुसूदन विदिशाओं (कोणों)-में, हृषीकेश आकाशमें तथा पृथिवीको धारण करनेवाले श्रीशेषजी पृथिवीपर तेरी रक्षा करें ॥ इस प्रकार स्वस्तिवाचन कर नन्दगोप ने बालक कृष्ण को छकड़े के नीचे एक खटोले पर सुला दिया ॥  मरी हुई पूतना के महान् कलेवर को देखकर उन सभी गोपों को अत्यन्त भय और विस्मय हुआ ॥ 

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