ययातिके प्रथम पुत्र यदुके वंशका वर्णन करता हूँ , जिसमें कि मनुष्य , सिद्ध , गन्धर्व , यक्ष , राक्षस , गुह्यक , किंपुरुष , अप्सरा , सर्प , पक्षी , दैत्य , दानव , आदित्य , रुद्र , वसु , अश्विनीकुमार , मरुद्गण , देवर्षि , मुमुक्षु तथा धर्म , अर्थ , काम और मोक्षके अभिलाषी पुरुषोंद्वारा सर्वदा स्तुति किये जानेवाले , अखिललोक – विश्राम आद्यन्तहीन भगवान् विष्णुने अपने अपरिमित महत्त्वशाली अंशसे अवतार लिया था । इस विषयमें यह श्लोक प्रसिद्ध है — ॥ ‘ जिसमें श्रीकृष्ण नामक निराकार परब्रह्मने अवतार लिया था , उस यदुवंशका श्रवण करनेसे मनुष्य सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त हो जाता है ‘ ॥
यदुके चार पुत्र
- सहस्रजित्
- क्रोष्टु
- नल
- नहुष
सहस्रजितके वंशज
- सहस्रजितके पुत्र: शतजित्
शतजित्के पुत्र:
- हैहय,
- हेहय,
- वेणुहय
हैहयके वंशज
- हैहयके पुत्र: धर्म
- धर्मके पुत्र: धर्मनेत्र
- धर्मनेत्रके पुत्र: कुन्ति
- कुन्तिके पुत्र: सहजित्
- सहजित्के पुत्र: महिष्मान् , जिसने माहिष्मतीपुरीको बसाया ॥
महिष्मान्के वंशज
-
- महिष्मान्के पुत्र: भद्रश्रेण्य
- भद्रश्रेण्यके पुत्र: दुर्दम
- दुर्दमके पुत्र: धनक
- धनकके पुत्र: कृतवीर्य, कृताग्नि, कृतधर्म, कृतौजा नामक चार पुत्र हुए|
कृतवीर्यके पुत्र
कृतवीर्यके सहस्त्र भुजाओंवाले सप्तद्वीपाधिपति अर्जुनका जन्म हुआ ॥
अर्जुनका वर्णन
सहस्रार्जुनने अत्रिकुलमें उत्पन्न भगवदंशरूप श्रीदत्तात्रेयजीकी उपासना कर ‘ सहस्र भुजाएँ , अधर्माचरणका निवारण , स्वधर्मका सेवन , युद्धके द्वारा सम्पूर्ण पृथिवीमण्डलका विजय , धर्मानुसार प्रजा – पालन , शत्रुओंसे अपराजय तथा त्रिलोकप्रसिद्ध पुरुषसे मृत्यु – ऐसे कई वर माँगे और प्राप्त किये थे ॥ अर्जुनने इस सम्पूर्ण सप्तद्वीपवती पृथिवीका पालन तथा दस हजार यज्ञोंका अनुष्ठान किया था ॥ उसके विषयमें यह श्लोक आजतक कहा जाता है— ‘ यज्ञ , दान , तप , विनय और विद्यामें कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुनकी समता कोई भी राजा नहीं कर सकता ‘ ॥ उसके राज्यमें कोई भी पदार्थ नष्ट नहीं होता था ॥ इस प्रकार उसने बल , पराक्रम , आरोग्य और सम्पत्तिको सर्वथा सुरक्षित रखते हुए पचासी हजार वर्ष राज्य किया ॥
सहस्रार्जुनका अंत
एक दिन जब वह अतिशय मद्य पानसे व्याकुल हुआ नर्मदा नदीमें जल – क्रीडा कर रहा था , उसकी राजधानी माहिष्मतीपुरीपर दिग्विजयके लिये आये हुए सम्पूर्ण देव , दानव , गन्धर्व और राजाओंके विजयमदसे उन्मत्त रावणने आक्रमण किया , उस समय उसने अनायास ही रावणको पशुके समान बाँधकर अपने नगरके एक निर्जन स्थानमें रख दिया ॥ इस सहस्रार्जुनका पचासी हजार वर्ष व्यतीत होनेपर भगवान् नारायणके अंशावतार परशुरामजीने वध किया था ॥
सहस्रार्जुनके सौ पुत्र
इसके सौ पुत्रोंमेंसे शूर , शूरसेन , वृषसेन , मधु और जयध्वज- ये पाँच प्रधान थे ॥
जयध्वजके वंशज
जयध्वजका पुत्र तालजंघ हुआ और तालजंघके वीतिहोत्र तालजंघ नामक सौ पुत्र हुए इनमें सबसे बड़ा तथा दूसरा भरत था ॥
भरतके वंशज
भरतके वृष , वृषके मधु और मधुके वृष्णि आदि सौ पुत्र हुए ॥
वंशका नामकरण
वृष्णिके कारण यह वंश वृष्णि कहलाया ॥
मधुके कारण इसकी मधु – संज्ञा हुई ॥
और यदुके नामानुसार इस वंशके लोग यादव कहलाये ॥